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राष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष : साइकिल चलाकर स्कूल जाती लड़कियां बिहार के विकास की असली तस्वीर हैं

पटना : पूरे देश में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. वैसे 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है. इस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी, इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का […]

पटना : पूरे देश में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है. वैसे 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है. इस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी, इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था. यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया था. आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग. राष्ट्रमंडल खेलों के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसीन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में लड़कियां समान रूप से भागीदारी ले रही है. राष्ट्रीय बालिका दिवस के आईने में बिहार की लड़कियों की तस्वीर जब सामने आती है, तो साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा लड़कियों और बालिकाओं के लिए किया गया प्रयास भी सामने आ जाता है. बिहार में बालिकाओं के लिए सरकार ने कई क्रांतिकारी योजनाओं का आगाज किया, जो आज की तारीख में बड़े गर्व से उन योजनाओं के बारे में बताया जाता है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से बालिकाओं के लिए शुरू की गयी योजनाओं ने समाज की मानसिकता में बदलाव ला दिया. लड़कियों को पढ़ने के साथ-साथ परिवार, राज्य एवं देश के लिये कुछ करने हेतु पंख लगे. आज से पंद्रह साल पहले जब गांव में कोई लड़की साइकिल चलाती थी, तो गांव वाले उसके पिता को बुलाकर कहते थे कि लड़की को संभालो, बिगड़ रही है. आज गांव ही नहीं शहरों में भी लड़कियां झुंड में साइकिल चलाकर स्कूल में पढ़ने जाती है तथा जुडो कराटे का प्रशिक्षण प्राप्त कर हर विपरित परिस्थिति का सामना करने के लिये तैयार रहती है, इसी परिवर्तन का आगाज भी मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की वजह से हुआ.

राज्य में मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना चल रही है. इस योजना की वजह से 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या काफी बढ़ गयी है. दो वर्ष पूर्व के आंकड़ों की मानें, तो 54 प्रतिशत लड़के एवं 46 प्रतिशत लड़कियां स्कूल जा रही थीं. अब, वह दिन दूर नहीं जब दोनों का प्रतिशत बराबर-बराबर हो जायेगा. बिहार में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से सभी स्वयं सहायता समूह की दीदीयों को बैंकों में खाता खुलवाया गया है. स्वयं सहायता समूह अपने आपको उत्पादन से भी जोड़ रही है. लड़कियों को सेनेटरी नैपकीन की राशि नगद देने के साथ सेल्फ हेल्फ ग्रुप को सेनेटरी नैपकीन बनाने के लिये प्रमोट करने की योजना चल रही है.

मुख्यमंत्री साइकिल योजना की शुरुआत 2007 से हुई थी. यह सिर्फ छात्राओं के लिए थी. पहले साल नौवीं में पढ़ने वाली सभी 1.63 लाख छात्राओं को राशि दी गयी थी. दो साल 2009 से नौवीं में
पढ़ने वाले छात्रों को भी इस योजना का लाभ दिया जाने लगा. शुरुआत में दो हजार रुपये साइकिल योजना के लिए छात्र-छात्राओं को दिये जाते थे. स्कूल में छात्र-छात्राओं के बीच राशि बांटी जाती थी. बाद में स्कूलों में कैंप लगाकर राशि बांटे जाने लगी. इस बार से सिर्फ बच्चों के बैंक के खाते में राशि जायेगी. सभी बच्चों का बैंक एकाउंट खोल दिये गये हैं और आधार कार्ड बनवा दिये गये है. बिहार की साइकिल योजना की चर्चा देश के दूसरे राज्यों और विदेशों में भी हुई. इसके सर्वे के लिए भी लोग आये. कुछ राज्यों व विदेशों में भी इसे लागू किया गया. राज्य सरकार ने साइकिल योजना को

बड़ी सामाजिक क्रांति के रूप में देखा है और नारी सशक्तिकरण के लिए बड़ा हथियार बताया है. हाइ स्कूलों में बढ़ी छात्राओं की संख्या : साइकिल योजना के बाद राज्य में हाइस्कूलों में छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इस योजना की शुरुआत 2007 में हुई थी. तो नौंवी में 1.63 लाख छात्राएं पढ़ती थी, वहीं 2015 में नौंवी क्लास की 8.15 लाख छात्राओं को इसका लाभ मिला था. इसे लेकर सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने 19 सितंबर 2013 को अपने ब्लॉग में लिखा था कि मेरे प्रिय मित्रों, आप सब से एक बार फिर मुखातिब होते हुए मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों के साथ अपने विचार साझा करना मुझे बहुत अच्छा लगता है. मुझे आपसे यह जानकारी बांटते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि बिहार में बालिका शिक्षा को और अधिक प्रोत्साहन देने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय किया गया है. और मुझे लगता है कि इस नए कदम के बारे में आपसे साझा करना सबसे सही रहेगा. इस साल पटना में गांधी मैदान में स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में बड़ी प्रसन्नता के साथ मैंने पूरे बिहार के विभिन्न सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली पहली से दसवीं कक्षा की सभी बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति की घोषणा की थी. इस निर्णय के बारे में जो बात सबसे अहम है वह यह है कि जाति, पंथ, समुदाय और आर्थिक पृष्ठभूमि से परे समाज के सभी वर्गों की छात्राओं को इससे लाभ मिलेगा। इसके लिए केवल एक ही शर्त है और वह यह कि लाभार्थी सरकारी स्कूल से होनी चाहिए. बस.

बिहार में बालिका शिक्षा के क्षेत्र में साइकिल योजना का कदम मील का पत्थर साबित हुआ है. साइकिल स्कीम सामाजिक क्रांति लेकर आई और साइकिल पर स्कूल जाती हुई छात्राओं को बदलते बिहार का सच्चा शुभंकर बना दिया, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में. इस स्कीम की सफलता इस तथ्य से मापी जा सकती है कि वर्ष 2012-13 में 4,92,899 बालिकाओं समेत कुल 9,61,109 विद्यार्थियों को इस से फायदा हुआ. 2007-08 में जब यह स्कीम लांच हुई थी तो केवल 1,56,092 लड़कियां इससे लाभान्वित हुई थी. बाद में इस स्कीम को लड़कों के लिए भी लागू किया गया. मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई की साइकिल स्कीम के लाभार्थियों की संख्या, पिछले वित्त वर्ष के अंत तक 47,44,966 पर पहुंच गई, जिनमें 24,57,539 लड़कियां हैं. जहां तक महिला सशक्तिकरण का संबंध है- साइकिल परियोजना ने वास्तव में बिहार प्रदेश के आंतरिक भागों में एक क्रांति का सूत्रपात किया है. इसने बालिकाओं में विश्वास की भावना जगाई है. गांवों में साइकिल पर अपने स्कूल जाती हुई लड़कियों का दृश्य इस बात का पर्याप्त साक्ष्य है. यह एक किस्म की सामाजिक क्रांति है जिसने बिहार की बालिकाओं की शिक्षा में ऐतिहासिक परिवर्तन किया है. मुझे यकीन है कि इस क्रांति का प्रभाव दीर्घकाल में महसूस किया जा सकेगा जब महिलाएं सही मायनों में सशक्त होंगी। सशक्त महिलाएं ही प्रखर समाज बनाती हैं.

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