मोकामा /पंडारक : टाल इलाके में नीलगायों की झुंड हरी फसलों को रौंद रही हैं. नीलगायों के आतंक को लेकर किसान कड़ाके की ठंड में भी रतजगा करने को विवश हैं. इसके बावजूद फसलों को बचा पाना मुश्किल हो रहा है. किसानों ने बताया कि शेखपुरा व जमुई के पहाड़ी इलाकों से नीलगायों का रुख टाल इलाके की ओर है. गत 15 दिनों में सैकड़ों एकड़ में लगी फसलें बर्बाद हो चुकी हैं.
हरी फसलों की बर्बादी देख कर किसानों का कलेजा फट रहा है. विपरीत मौसम में किसानों ने बुआई कर भरपूर मेहनत की. अब नीलगायों की वजह से उनके अथक परिश्रम पर पानी फिर रहा है. नीलगायों की एक झुंड में तकरीबन दो दर्जन मादा नीलगायें व चार-पांच नर शामिल होते हैं. नीलगायें सबसे ज्यादा मटर व धनिया की फसलों को चट कर रही हैं.
वहीं एक झुंड के बैठने के स्थान पर एक दिन में एक से डेढ़ कट्ठे में लगी फसल नष्ट हो जाती है. पूरे टाल में सैकड़ों नीलगायों की झुंडों का कहर बदस्तूर जारी है. रोकथाम के तमाम उपाय निरर्थक साबित हो रहे हैं. किसानों की मानें, तो पटाखे की आवाज से भी अब नीलगाय निडर हो चुकी हैं. वहीं, टाल इलाके से झुंडों को खदेड़ना भी मुश्किल है. नीलगायें एक खेत से खदेड़ने पर दूसरे खेतों में पहुंच जाती हैं.
किसानों ने अभी तक नहीं की है शिकायत
नीलगायों से निबटने के लिए सरकार कारगर कदम उठा रही है. बायो कॉस्टिक यंत्र पर किसानों को सब्सिडी मिल रही है ताकि हर तबके के किसान महंगे यंत्र खरीद सकें. हालांकि, टाल के किसानों ने इस बार नीलगायों से जुड़ी शिकायत नहीं की हैं. इसकी पड़ताल करायी जायेगी.
डॉ ब्रजेश, अनुमंडल कृषि पदाधिकारी
15 % फसल हो रहीं बर्बाद
हर वर्ष मोकामा टाल में तकरीबन 15 फीसदी फसलें नीलगायें बर्बाद कर देती हैं. इस पर रोक के लिए सरकार द्वारा कारगर कदम उठाये जा रहे हैं.
रवींद्र सिंह , प्रखंड कृषि पदाधिकारी, मोकामा
टाल की खेती हो रही प्रभावित
मोकामा टाल इलाका फतुहा तक तकरीबन एक लाख दस हजार हेक्टयर में फैला है. यहां मुख्य तौर पर दलहन की खेती होती है. एक अनुमान के मुताबिक टाल इलाके में नौ हजार नीलगायें मौजूद हैं. यहां 20 फीसदी तक फसलें नीलगायों से बर्बाद हो जाती हैं. टाल में बाढ़ आने पर नीलगायों की झुंड पहाड़ी इलाके की ओर पलायन कर जाती हैं. यह सिलसिला कई वर्षों से चल रहा है,
लेकिन अभी तक कारगर कदम नहीं उठाये जा सके हैं. दो वर्ष पहले हैदराबाद से आये शूटरों ने तकरीबन एक हजार नीलगायों का सफाया किया था. इससे नीलगायें भयभीत होकर दूसरे इलाकों में चली गयी थीं, लेकिन इससे किसानों को राहत चंद दिनों के लिए ही मिल सकी थी.
नीलगायों से परेशान किसानों ने सरकार से लगायी सुरक्षा की गुहार
किसानों ने सरकार से नीलगायों से सुरक्षा की मांग की है. बख्तियारपुर के रबाईच, नरौली, घोसवरी, अलीपुर आदि गांवों के आसपास नीलगायों की दर्जनों झुंड मौजूद हैं. वहीं, अथमलगोला टाल के साथ रामनगर दियारा में भी नीलगायों ने आतंक मचा रखा है. इधर, पंडारक में सरहन, बकमा, अजगरा, दर्वे, भदौर आदि इलाके में भी किसान परेशान हैं. किसान रामानंद सिंह, महेश प्रसाद सिंह, संजय यादव, मनोज सिंह आदि ने बताया कि नीलगायों का प्रजनन रोकना ही कारगर उपाय हो सकता है. इसके लिए सरकार की ओर से ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है. इधर, घोसवरी प्रखंड के शैलेंद्र प्रसाद, धर्मराज प्रसाद आदि ने कहा कि हर वर्ष किसानों को नीलगायों से नुकसान उठाना पड़ता है.
मोकामा प्रखंड के मोलदियार टोला निवासी विश्वनाथ सिंह उर्फ मुन्ना, विपिन सिंह, मरांची निवासी लूसी सिंह, ललन सिंह, चिंतामणिचक के भवेश कुमार, कन्हायपुर पैक्स अध्यक्ष उमेश शर्मा, सुल्तानपुर के पंकज सिंह आदि ने भी सरकार से विशेष पहल की गुजारिश की है.
परंपरागत तकनीक अपनाते हैं किसान
नीलगायों से बचाव के लिए यहां के किसान परंपरागत तकनीक अपनाते हैं. खेतों में मानव पुतला, खेत के कोने पर अलाव, पटाखे की आवाज, लहसुन, गोमुत्र का छिड़काव आदि से नीलगायों को भगाने का प्रयास किया जाता है. टाल इलाके में तार की घेराबंदी संभव नहीं है. हालांकि, शोर मचाने वाले यंत्र कारगर साबित हो सकते हैं. मोकामा बीएओ रवींद्र कुमार सिंह ने बताया कि बॉयो कॉस्टिक यंत्र सोलर प्लेट से चलता है. एक यंत्र तकरीबन पांच हेक्टयर जमीन को कवर करती है. इससे पचास तरह की आवाज निकलती हैं. इसमें लगा सेंसर पशु या पक्षियों की आहट से काम करने लगता है, लेकिन किसानों का कहना है कि एक यंत्र की कीमत 60 हजार रुपये है.
महंगे यंत्र को टाल इलाके में महफूज रखना किसानों के लिए संभव नहीं है. सरकारी शूटरों की मदद से नीलगायों का उन्मूलन ही संभव है. किसानों के पास शूट करने के लिए हथियार उपलब्ध नहीं हैं.