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तोड़ने को 90 दिनों का था समय, कार्रवाई के बदले निगम ने मार्किंग कर छोड़ दिया

पटना : शहर में इनकम टैक्स के किदवईपुरी स्थित होटल नेश इन पर नगर निगम की सुस्त कार्रवाई से मामला पेंचीदा हो गया है. कोर्ट स्तर से लगातार फैसला आने के बावजूद नगर निगम की कार्रवाई से बचने के कारण ही मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. ऐसे में एक तरफ कोर्ट के आदेश का […]

पटना : शहर में इनकम टैक्स के किदवईपुरी स्थित होटल नेश इन पर नगर निगम की सुस्त कार्रवाई से मामला पेंचीदा हो गया है. कोर्ट स्तर से लगातार फैसला आने के बावजूद नगर निगम की कार्रवाई से बचने के कारण ही मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. ऐसे में एक तरफ कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ.
वहीं दूसरी तरफ होटल के अवैध निर्माण पर कार्रवाई नहीं होने से होटल नेश इन का व्यापार बढ़िया चल रहा है और होटल की कमाई मजे में चल रही है. हाईकोर्ट की डबल बेंच का फैसला बिल्डर के खिलाफ आने के बाद भी 90 दिनों के भीतर नगर निगम ने तोड़ने की कार्रवाई नहीं की.
सिर्फ लाल रंग की मार्किंग की गयी. बाद में बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट से मामले में स्टे ले लिया है. गौरतलब है कि लगातार विभिन्न स्तर से फैसला आने के बाद भी निगम कार्रवाई के बदले इस बात का इंतजार करता रहा कि निर्माणकर्ता इससे ऊपरी अदालत में अपील करेगा, फिर वहां से निर्णय आने के बाद देखा जायेगा. निगम के सुस्त रवैये से अवैध निर्माण करने वालों का हौसला बुलंद हो रहा है.
30 दिनों में था तोड़ने का आदेश
आयकर गोलंबर के पास अपार्टमेंट के नक्शा पर होटल का निर्माण मामले पर नगर निगम ने संज्ञान लेते हुए निगरानीवाद 139 ए/2013 दायर किया गया था. जांच में नक्शा से लेकर सहकारी गृह निर्माण समिति की भूमि पर बहुमंजिली इमारत बनाने का मामला आया.
वहीं अपार्टमेंट की जगह होटल (नेश इन) बनाने का मामला भी बना. इसकी सुनवाई करते हुए नगर आयुक्त कोर्ट ने जुलाई, 2014 में निर्माण कार्य तत्काल रोकते हुए ऊपरी दो तल्ले व सेटबैक विचलन को 30 दिनों के भीतर तोड़ने का आदेश दिया था. बाद में मामला ट्रिब्यूनल में गया. वहां भी अवैध हिस्से को तोड़ने का आदेश बहाल रखा गया.
कार्रवाई करने से हर बार बचता रहा निगम
नगर आयुक्त के कोर्ट के फैसले के बाद मामला ट्रिब्यूनल से होते हुए हाईकोर्ट तक पहुंच गया. इसके बाद बीते वर्ष जुलाई माह में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नगर आयुक्त के कोर्ट के फैसले को वैध ठहराया. हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी नगर निगम ने निर्माण के अवैध हिस्से को तोड़ने की कार्रवाई शुरू नहीं की.
इस बीच मामला डबल बेंच में गया. फिर वर्ष 2016 के नवंबर माह में हाईकोर्ट की डबल बेंच का फैसला आया. डबल बेंच ने भी पूर्व के न्यायालयों के फैसले को बरकरार रखा. बावजूद इसके निगम ने अवैध हिस्से को तोड़ने की कार्रवाई शुरू नहीं की. फिर इसके बाद बिल्डर से हाईकोर्ट के फैसले पर रिव्यू करने की अपील की, लेकिन कोर्ट ने रिव्यू करने से इन्कार कर दिया. इसके बाद भी निगम ने रहते समय में कार्रवाई नहीं की.

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