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बिहार : अवैध निर्माण में मददगार अफसरों को कब मिलेगी सजा!
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक पटना हाईकोर्ट के आदेश से फुलवारीशरीफ के अपार्टमेंट के अवैध हिस्से को तोड़ने का काम शुरू हो गया है. कहीं भी कोई ताजा निर्माण टूटते हुए देखना अच्छा नहीं लगता. टूटने से एक साथ कई लोगों का नुकसान जो हो जाता है! पर यदि निर्माण अवैध है तो उसे टूटना ही […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
पटना हाईकोर्ट के आदेश से फुलवारीशरीफ के अपार्टमेंट के अवैध हिस्से को तोड़ने का काम शुरू हो गया है. कहीं भी कोई ताजा निर्माण टूटते हुए देखना अच्छा नहीं लगता. टूटने से एक साथ कई लोगों का नुकसान जो हो जाता है! पर यदि निर्माण अवैध है तो उसे टूटना ही चाहिए.
कानून के शासन वाले राज्य में यह जरूरी है. आखिर ऐसी स्थिति आती ही क्यों है? दरअसल बिल्डरों के लोभ और खरीदारों की लापरवाही का यह नतीजा है. पर क्या सिर्फ वही लोग दोषी हैं? ऐसे अवैध निर्माण पूरे बिहार कौन कहे, पूरे देश में जहां-तहां होते रहते हैं.
अदालतें आदेश देकर उन्हें कहीं-कहीं तुड़वाती भी रहती हैं. मध्य पटना के बंदर बगीचा मुहल्ले में हाल में एक आलीशान अपार्टमेंट के अवैध हिस्से टूटे. यह अच्छी बात है कि उस मामले में दोषी बिल्डरों को सुप्रीम कोर्ट ने भी राहत नहीं दी. पर नगर निगम, नगर परिषद और पीआरडीए तथा इस तरह के अन्य निकाय के संबंधित अधिकारियों की ऐसे मामलों में कैसी भूमिका रहती है? जाहिर है कि वे आम तौर पर अवैध निर्माणकर्ताओं से मिले हुए होते हैं.
कारण सबको मालूम है. सारे अवैध निर्माणों की तरफ अदालतों की नजरें जा भी नहीं सकतीं. अब सवाल है कि किसी अपार्टमेंट के बन जाने के बाद नगर निकाय के संबंधित अफसर बिल्डर्स को अकुपेंसी सर्टिफिकेट यानी भोगाधिकार देते भी हैं क्या? क्या वे उससे पहले यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि निर्माण पास किये गये नक्शे के अनुकूल हुआ या विचलन है?
अधिकतर मामलों में अधिकारी ऐसा नहीं करते. फुलवारीशरीफ में जो अपार्टमेंट टूट रहे हैं, उनके बिल्डरों को संबंधित अफसर ने भोगाधिकार प्रमाणपत्र दिया था? क्या नगर निकाय के अफसरों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि निर्माण कार्य जारी रहते समय ही वे स्थल निरीक्षण करें? यदि वे अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते तो क्या उनके लिए सजा की सुनिश्चित व्यवस्था है?
यदि नहीं है तो वैसा प्रावधान किया जायेगा? दरअसल ऐसे मामलों में जब तक सभी संबंधित पक्षों को सबक सिखाने लायक सजा नहीं मिलेगी, तब तक अवैध निर्माण होते रहेंगे और उनमें से कुछ टूटते भी रहेंगे. सब तो कोर्ट नहीं जा सकते. इसलिए अपुष्ट खबर यह भी है कि पटना में ही अब भी जितने अपार्टमेंट नक्शे के अनुसार बने हैं, उससे कम विचलन करके नहीं बने हैं.
एनएच निर्माण में विलंब से शादियां रुकीं : पटना-कोइलवर नेशनल हाईवे के निर्माण का काम कई साल से लटका हुआ है. नतीजतन उस इलाके के किसान अपनी जमीन के भविष्य को लेकर असमंजस में हैं. यानी उन्हें यह पता ही नहीं चल रहा है कि उनका कौन सा भूखंड नेशनल हाईवे में जायेगा और कौन नहीं जायेगा. आम तौर पर किसानों को अपनी लड़कियों की शादियों के लिए अपनी जमीन बेचनी पड़ती है.
उसके सामने समस्या यह है कि वह कौन जमीन बेचें और कौन न बेचें. खरीदार भी असमंजस में हैं. प्रस्तावित नेशनल हाईवे के पास पड़ने वाले फुलवारीशरीफ अंचल के सिर्फ एक गांव में मेरी जानकारी के अनुसार एक दर्जन शादियां कुछ साल से रुकी हुई हैं. क्या सरकार इस मानवीय पक्ष पर विचार करते हुए हाईवे के लिए जमीन के अधिग्रहण के प्रस्ताव को जल्द मंजूरी देगी? या फिर हाईवे का स्थल बदलना है तो वह काम भी वह जल्द करेगी ताकि जरूरी शादियां तो शीघ्र संपन्न हो सके?
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना कितनी सफल : अस्सी के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यह स्वीकार किया था कि हम आपके विकास के सौ पैसे निर्धारित करते हैं तो उसमें से विकास पर वास्तव में 15 पैसे ही लग पाते हैं. यानी 85 पैसे बिचौलियों की जेबों में चले जाते हैं.
मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह दावा किया है कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना शुरू करके हमने बिचौलियों के काम तमाम कर दिये हैं. काश! मोदी जी का यह दावा सही होता. इस दावे के विपरीत सुदूर जगहों से मिल रही खबरों के अनुसार अनेक मामलों में सरकारी बैंक के अधिकारी बिचौलियों के जरिये अब भी लाभुकों से पहले ही एक खास राशि की उगाही करवा लेते हैं. तभी भुगतान होता है.
क्या यह खबर सही है? सही है तो कितने प्रतिशत की लूट अब भी हो रही है? उस लूट में कौन-कौन लोग शामिल हैं? क्या सरकार इस खबर की खुफिया जांच करवाएगी? आरोप सही पाये जाने पर दोषी लोगों को सजा देगी और दिलवाएगी? यदि सरकार ऐसा नहीं करेगी तो जिस चुनावी लाभ की कल्पना सत्ताधारी पार्टियां कर रही हैं, वह अनिश्चित हो जायेगा.
लोकल ट्रेन बढ़ने से घटेगा पटना में प्रदूषण : पटना के पास गंगा नदी पर रेल सह सड़क पुल बनाने का एक उद्देश्य यह भी रहा है कि इससे पटना पर आबादी का दबाव कुछ घटेगा. यानी पास के जिलों के मूल निवासी अपने ही जिले में अपना घर बनाएंगे और उससे राजधानी पर आबादी का बोझ कम होगा. आबादी का कम बोझ यानी महानगर में कम प्रदूषण.
पर इस दिशा में अधूरी कोशिश ही हो रही है. पटना से छपरा के बीच सिर्फ दो जोड़ी ही पैसेंजर ट्रेन उपलब्ध हैं. यदि ऑफिस आने-जाने के लिए सीवान और पटना के राजेंद्रनगर के बीच एक जोड़ी पैसेंजर ट्रेन चलायी जाये तो कुछ कर्मचारी पटना में अपना निजी मकान बनाने के बदले अपने मूल निवास में ही बस सकते हैं. दिल्ली में गैस चैंबर जैसे हालात हैं.
यदि हम प्रदूषण समस्या के प्रति लापरवाह रहे तो वैसी स्थिति पटना में आ जाने में देर नहीं लगेगी. हाल के वर्षों में मध्य पटना में कई बड़े निर्माण हुए हैं. बुद्ध स्मृति पार्क, कन्वेंशन सेंटर और बिहार म्युजियम. ये भीड़ बढ़ाने वाले स्थल हैं. अधिक भीड़ यानी अधिक गाड़ियां और अधिक प्रदूषण. इनका निर्माण नगर से बाहर होना चाहिए था.
पर, खैर अब तो हो गया. पर इस तरह का कोई अगला निर्माण मध्य पटना में होगा तो वह इस महानगर को गैस चैंबर बनाने में ही मददगार ही होगा.
जाति के नाम पर वोट मांगने पर कितनी कार्रवाइयां! : जन प्रतिनिधित्व कानून, 1952 की धारा – 123-3 में यह स्पष्ट प्रावधान है कि जो उम्मीदवार जाति, समुदाय, धर्म या भाषा के नाम पर वोट मांगेगा, विजयी होने पर उसका चुनाव रद्द हो जायेगा.
यदि यह काम उम्मीदवार की सहमति से उसका चुनाव एजेंट या कोई अन्य व्यक्ति भी करता है तो भी उस उम्मीदवार का चुनाव रद्द हो जायेगा. चुनाव आयोग के सूत्र बताते हैं कि ऐसे मामलों में चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के प्रतिनिधि जहां-तहां अनेक एफआईआर तो दर्ज करा देते हैं, पर चुनाव के बाद स्थानीय पुलिस उस पर कोई कार्रवाई ही नहीं करती. आयोग पुलिस को स्मार पत्र देते-देते थक जाता है, फिर भी कुछ नहीं होता.
कोई सजा नहीं होने के कारण भावनाएं उभारने वाले उम्मीदवार और उनके लोग फिर अगले चुनाव में भी वही काम करते हैं. क्या देश की सरकारें पुलिस से ऐसी प्राथमिकियोें के आंकड़े एकत्र करवा कर सजा दिलाने के लिए कुछ करेंगी?
और अंत में : कांग्रेस ने सरदार पटेल के साथ कैसा व्यवहार किया, उसका सबसे एक सबसे बड़ा उदाहरण जगजाहिर है.सरदार साहब को 1991 में ही ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा सका. जबकि, सरदार पटेल से पहले एमजीआर, कामराज, वीवी गिरि, बीसी राय, जीबी पंत, राज गोपालाचारी और डाॅ आम्बेडकर को भारत रत्न मिल चुका था. इन लोगों को बारी-बारी से सर्वोच्च सम्मान देते समय नेहरू-इंदिरा-राजीव को सरदार पटेल याद नहीं रहे. प्राथमिकताएं तो देखिए! अब इस बात पर शोर गुल क्यों कि सरदार की बड़ी मूर्ति कोई और क्यों बनवा रहा है? पटेल तो हमारे हैं.
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