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बिहार : पांच साल बाद बिहार का हरित आवरण होगा 17%…जानिए झारखंड की तुलना में अभी क्‍या है स्थिति

कृष्ण कुमार पटना : साल 2000 में झारखंड से अलग होने के बाद बिहार के लिए हरित आवरण एक चुनौती थी. पर्यावरण संतुलन के लिए प्रदेश सरकार ने वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्राथमिकता से बढ़ावा दिया. इस समय यहां का हरित आवरण करीब 15 फीसदी है. इसे साल 2022 तक बढ़ाकर 17 फीसदी करने का लक्ष्य […]

कृष्ण कुमार
पटना : साल 2000 में झारखंड से अलग होने के बाद बिहार के लिए हरित आवरण एक चुनौती थी. पर्यावरण संतुलन के लिए प्रदेश सरकार ने वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्राथमिकता से बढ़ावा दिया. इस समय यहां का हरित आवरण करीब 15 फीसदी है.
इसे साल 2022 तक बढ़ाकर 17 फीसदी करने का लक्ष्य सरकार ने रखा है. वहीं, साल 1988 में बनी राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार भारत में मैदानी भागों के एक तिहाई हिस्से (33.33 फीसदी) में वन होना आवश्यक है. हालांकि, इस आंकड़े को छूने में भारत सरकार भी अभी पीछे है. भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वनावरण एरिया करीब 24.01 फीसदी है.
इस साल अगस्त के पहले सप्ताह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि 18 नवंबर, 2000 को झारखंड से अलग होने के बाद बिहार का हरित आवरण नौ प्रतिशत से भी कम रह गया था.
इसे गंभीरता से लेते हुए 2011 में हरियाली मिशन का शुभारंभ किया. सरकार ने 24 करोड़ वृक्ष लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया था. यह लक्ष्य करीब-करीब प्राप्त कर लिया गया है. उन्होंने कहा था कि इसी तरह आगे भी हरित क्षेत्र बनाने के 17 प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे.
राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार देश के एक-तिहाई अथवा 33.33% क्षेत्र में (पहाड़ी क्षेत्रों में दो-तिहाई अथवा 66.67% क्षेत्र में) वन अथवा वृक्षावरण होने आवश्यक हैं.इसकी तुलना में देश में कुल वनावरण एवं वृक्षावरण एरिया करीब 24.01% है. वहीं बिहार में हरित आवरण करीब 15% है.
बिहार में फसलों को नुकसान
झारखंड से अलग होने के पहले बिहार का हरित आवरण करीब 32 फीसदी था. झारखंड को इसका फायदा मिला. वहां औसत वर्षा की मात्रा ठीक रहने के कारण धान की पैदावार अच्छी होने लगी. वहीं, बिहार में औसत वर्षा की मात्रा में कमी आयी और इसका नुकसान फसलों की पैदावार को हुआ.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस मामले में दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो प्रधान पार्थसारथी ने कहा कि बिहार सरकार ने बहुत मंथन के बाद हरित आवरण का लक्ष्य 17 फीसदी रखा है. साल 2000 में यह नौ फीसदी था. उसके बाद से हर साल इसमें बढ़ोतरी हो रही है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की 76 फीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है. ऐसे में पर्यावरण के साथ ही अन्य चीजों में संतुलन कायम रखना आवश्यक है. इसलिए बिहार सरकार द्वारा साल 2022 तक के लिए 17 फीसदी हरित आवरण लक्ष्य उचित है.
अध्ययन के बाद लक्ष्य हुआ निर्धारित
इस मामले में पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि हर राज्य में उसकी जरूरत के अनुसार भूमि उपयोग करने का पैटर्न निर्धारित है. बिहार के मामले में इसके निर्धारण से पहले यहां की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या, कृषि भूमि, जनसंख्या घनत्व और उपलब्ध भूमि आदि का अध्ययन किया गया है. इसके आधार पर ही यहां 17 फीसदी हरित आवरण की जरूरत महसूस की गयी. सरकार ने इसी आधार पर अपनी नीति में इसे शामिल किया है.

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