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बिहार : फेंकी तो जरूर जाती हैं बेटियों, पर गोद लेने वालों की पहली पसंद भी बेटियां ही हैं

अनुपम कुमारी पटना : हमारे समाज में भले ही जन्म के बाद बेटियों को कभी सड़कों पर, कभी कूड़े के ढेर में, तो कभी झाड़ियों में फेंक दिया जाता है, लेकिन गोद लेने के मामले में इससे उलट स्थिति है. लोग बेटों की अपेक्षा बेटियों को गोद लेना अधिक पसंद कर रहे हैं. समाज कल्याण […]

अनुपम कुमारी
पटना : हमारे समाज में भले ही जन्म के बाद बेटियों को कभी सड़कों पर, कभी कूड़े के ढेर में, तो कभी झाड़ियों में फेंक दिया जाता है, लेकिन गोद लेने के मामले में इससे उलट स्थिति है. लोग बेटों की अपेक्षा बेटियों को गोद लेना अधिक पसंद कर रहे हैं. समाज कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार 22 जिलों में संचालित अनाथालयों में रह रहे कुल 212 बच्चों में 146 लड़कियां और 66 लड़के हैं. इनमें 64 बच्चे नि:शक्त (स्पेशल नीड) हैं. नि:शक्त बच्चों में भी लड़कियों की संख्या अधिक है.
इनमें 45 लड़कियां व 19 लड़के हैं. हालांकि, गोद लेने में स्थिति उलट है. वर्ष 2007 से अब तक 550 बच्चे गोद लिये गये. इनमें लड़कियों की संख्या 384 रही, जबकि लड़के सिर्फ 166 गोद लिये गये हैं.
खानदान को आगे बढ़ाने की परंपरा है दोषी
बेटियों को कम आंकने के कई मनोवैज्ञानिक पहलू हैं. पहला, बेटों को लोग वंश वृद्धि के रूप में मानते रहे हैं और बेटी को पराया धन. उसी के मुताबिक उनकी परवरिश भी करते हैं. यानी बेटी को दूसरे घर जाना है, तो उस पर अधिक पैसा खर्च कर क्या मिलेगा. दूसरा, उनकी सुरक्षा व उनकी शादी के लिए मोटी रकम जमा करने की बात है.
लड़कियों की शादी के लिए दहेज के रूप में पैसे जमा करने होते हैं. उनकी शिक्षा के साथ-साथ उनकी सुरक्षा भी जरूरी है. कई सामाजिक बुराइयों के कारण भी बेटी को सुरक्षित करने की चिंता माता-पिता के लिए बढ़ जाती है. हालांकि, धीरे-धीरे अब लोगों का सोच बदला है. पर, अब भी बेटों को वंश वृद्धि के रूप में ही देखा जाता है.
अमृता श्रुति, मनौवैज्ञानिक
क्या कहते हैं िवशेषज्ञ
गोद लेना आवश्यकताओं की पूर्ति करना है
जैविक संतान के रूप में लोग बेटों की ही चाहत रखते हैं. लेकिन, गोद लेते समय उनका नजरिया इतर होता है. तब उन्हें एक ऐसी संतान चािहए, जो उनका खालीपन दूर कर सके और उनकी छवि समाज में कायम रख सके. गोद लेते वक्त बच्चों के खानदान का पता नहीं होता.
ऐसे में जब वे लड़के को गोद लेते हैं, तो वे सोचते हैं कि कहीं वह क्रिमिनल बैकग्राउंड का तो नहीं. पर, लड़कियों के साथ ऐसी चिंता नहीं होती. दूसरा, बेटों से ज्यादा बेटियां केयरिंग होती हैं. शादी कर दूसरे घर चले जाने के बाद भी वे माता-पिता का केयर करती हैं. लोग लड़कों को उसके खानदान से जोड़ते और बेटियों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में.
रणधीर कुमार, समाजशास्त्री
निबंधित एजेंसियों में आने वाले बच्चों में ज्यादातर संख्या लड़कियों की होती हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे मिसिंग और फेंक दिये जाने वाले होते हैं. कुछ बच्चे अनाथ होते हैं. उनमें भी लड़कियों को ही लोग अनाथालय में डालना चाहते हैं. लेकिन, जब अभिभावक एजेंसी में बच्चों को गोद लेने आते हैं, तो लड़कियों को ही गोद लेना चाहते हैं.
ब्रजेश कुमार, बिहार राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन केंद्र

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