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10 जिलों में एचआइवी संक्रमितों के बीच काम ठप

एचआइवी संक्रमितों के बीच काम करनेवालों के सामने आर्थिक संकट पटना : राज्य में एचआइवी संक्रमितों की पहचान करना और उनके बीच में रहकर काम करना किसी जोखिम से कम नहीं है. इस तरह के जोखिम समूहों के साथ काम करनेवालों को सात माह से मेहनताना नहीं मिल रहा है. राज्य के दस जिलों में […]

एचआइवी संक्रमितों के बीच काम करनेवालों के सामने आर्थिक संकट
पटना : राज्य में एचआइवी संक्रमितों की पहचान करना और उनके बीच में रहकर काम करना किसी जोखिम से कम नहीं है. इस तरह के जोखिम समूहों के साथ काम करनेवालों को सात माह से मेहनताना नहीं मिल रहा है. राज्य के दस जिलों में एचआइवी संक्रमितों के बीच काम ठप है.
बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति (बीसैक्स) द्वारा समुदाय के अंदर रहनेवाले एचआइवी पॉजिटिव लोगों की सेवा के लिए दो दर्जन से अधिक संस्थाओं को जिम्मेवारी सौंपी गयी है. इन संस्थाओं को भुगतान नहीं किया गया है. इस कार्यक्रम की गंभीरता इससे भी पता चलता है कि पिछले 23 दिनों से बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति बिना परियोजना निदेशक के चल रहा है.
उच्च स्तर पर समिति में निर्णय लेनेवाला कोई नहीं है.नेशनल एड्स कंट्रोल सोसाइटी द्वारा 2008 में राज्य में एचआइवी संक्रमितों की मैपिंग करायी गयी थी. इसमें राज्य में एक लाख 27 हजार लोग संक्रमित है. राज्य में वर्तमान में 28 स्वयंसेवी संस्थाएं काम कर रही हैं जिनका औसतन बकाया प्रति संस्था 20 लाख हो गया है. बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति चिह्नित संस्थाओं के माध्यम से मुख्यत: चार समूहों के बीच काम कर रही है. इसमें पहला समूह महिला सेक्स वर्कर का है. इनकी संख्या राज्य में 18682 है.
इन समूहों के बीच जाकर एचआइवी का प्रचार-प्रसार करना, उनकी नियमित अंतराल पर जांच करना और संक्रमित होने के बाद उनके लिए काउंसेलिंग वर कैरियर काउंसेलिंग के माध्यम से इलाज की सुविधा उपलब्ध कराना है. महिला सेक्स वर्करों को साल में दो बार एचआइवी की जांच कराने की जिम्मेवारी भी निजी संस्थाओं को दी गयी है. तीसरा समूह ड्रग यूजर्स का है.
इनकी संख्या 7938 है. ऐसे लोग इंजेक्शन के माध्यम से मादक दवाओं का उपयोग करते हैं. उनके बीच पहुंचना और उनकी काउंसेलिंग और जांच कराना. चौथा प्रमुख समूह है ट्रक ड्राइवरों का है. इनकी संख्या राज्य में 15000 है. ये चारों समूह जोखिम वाले हैं. इनके बीच रहकर करीब 28 संस्थाएं काम कर रही है. इन संस्थाओं का पिछले सात माह से भुगतान नहीं किया जा रहा है.
हर संस्थान एक किराये के मकान में चलाया जाता है. इसके अलावा एक डॉक्टर को मानदेय के रूप में 15 हजार, एक मैनेजर को 15 हजार मासिक, एक काउंसेलर के 12 हजार मासिक, आउटरीच वर्कर को साढ़े सात हजार मासिक दिया जाता है. इन वर्करों को वर्तमान में राशि नहीं मिल रही है.
इन संस्थाओं ने सोमवार स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव आरके महाजन को पत्र देकर भुगतान कराने और समिति में परियोजना निदेशक की नियुक्ति की मांग की है.
संजय कुमार सिंह बने एड्स नियंत्रण समिति के पीडी
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया कि बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति के रिक्त परियोजना निदेशक (पीडी) के पद पर संजय कुमार सिंह की नियुक्ति कर दी गयी है.
नये पीडी के ऊपर बड़ी चुनौती होगी कि वह समिति के कार्यों को बेहतर तरीके से संचालित करें. समाज में एचआइवी संक्रमित लोगों को बेहतर सुविधा मिले और उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. उनको बेहतर इलाज की सुविधा मिले. उनकी काउंसेलिंग सही तरीके से हो. समिति की गतिविधियों को सशक्त बनाना है.इधर समिति के कार्यकारिणी सदस्य दीपक मिश्रा ने मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्री से मिलकर नये पीडी की नियुक्ति की मांग की थी.

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