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”सरकारी तोता” से उबरने का सीबीआइ के पास अच्छा मौका

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक कई साल पहले का एक मार्मिक दृश्य ! रांची की निचली अदालत का बरामदा. कमीश्नर स्तर का एक आइएएस अफसर बरामदे की दीवार से पीठ सटाकर जमीन पर बैठा है. उसकी टांगें आगे की ओर फैली हुई हैं. गंदे और फटे कपड़े में है. रद्दी अखबार में भुजा रख कर धीरे […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
कई साल पहले का एक मार्मिक दृश्य ! रांची की निचली अदालत का बरामदा. कमीश्नर स्तर का एक आइएएस अफसर बरामदे की दीवार से पीठ सटाकर जमीन पर बैठा है. उसकी टांगें आगे की ओर फैली हुई हैं. गंदे और फटे कपड़े में है. रद्दी अखबार में भुजा रख कर धीरे धीरे खा रहा है.
एक पत्रकार ने जब उसका हाल पूछा तो वह रूआंसा हो गया. इतना ही कहा कि ‘मेरी तो दुनिया ही बदल गयी. इससे अधिक वह कुछ बोल नहीं सका. वह चारा घोटाला केस में तारीख पर आया हुआ था. चारा घोटाला का एक आरोपी था. बिहार सरकार के एक कमिश्नर की रोब-दाब का अंदाजा लगा लीजिए.
वह पृष्ठभूमि और अब ताजा हाल-बेहाल ! : उस घटना का विवरण एक पत्रिका में पढ़कर मुझे लगा था कि अब कम से कम बड़े अफसर कोई घोटाला करने से पहले सौ बार सोचेंगे, पर ऐसा नहीं हो सका।
लालच जो न कराये ! : एक पर एक घोटाले होते जा रहे हैं. कारण यह है कि घोटालेबाज समझते हैं कि इसमें घाटा कम और मुनाफा अधिक है. क्यों न रिस्क लिया जाए. इसी पृष्ठभूमि में सृजन घोटाला सामने आया है.
क्या भ्रष्टाचारियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान करने के बारे में अब भी हमारे हुक्मरान नहीं सोचेंगे ?. सवाल है कि क्या शासन के विभिन्न संस्थानों के बड़े अफसरों की साठगांठ के बिना ताजा सृजन घोटाला संभव था . क्या केंद्र और राज्य सरकारें अब भी ‘भ्रष्टाचार को घाटा अधिक और मुनाफा कम’ का सौदा नहीं बनायेगी. यदि नहीं तो कभी चारा तो कभी सृजन घोटाले होते रहेंगे.
नीतीश सरकार ने सृजन घोटाले की जांच का भार सीबीआइ को सौंप कर अपनी ईमानदार मंशा का परिचय दिया है.पर इसके साथ यदि किसी तरह यह व्यवस्था भी हो जाए कि सीबीआइ जांच की निगरानी अदालत करे तो आम लोगों को उस जांच पर अधिक भरोसा होगा. वैसे सीबीआइ में जांच जाने से यह उम्मीद बंधी है कि सृजन घोटाले की जांच की गिरफ्त में अब बड़े-बड़े मगरमच्छ फंस सकते हैं. कई कारणों से उन्हें पकड़ना बिहार पुलिस के वश की बात थी भी नहीं. वैसे भी सृजन के दुर्जन एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं. उनके होश सीबीआइ ठिकाने ला सकेगी.
यह भी संकेत हैं कि अब कुछ बड़े और बड़बोले नेताओं के भी पसीने छूटेंगे. बड़े अफसर नामक ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ सकते हैं. यह आम धारणा है कि आइएएस अफसरों की सांठगांठ के बिना सृजन घोटाला जैसा घोटाला संभव ही नहीं था. अब तक मिली जानकारियों के अनुसार चारा घोटाला और हवाला घोटाले की तरह का ही है सृजन घोटाला. छोटे पैमाने पर या उनसे भी बड़े पैमाने पर . सीबीआइ जांच जब आगे बढ़ेगी तो इस सवाल का जवाब भी मिल जायेगा.
केंद्र सरकार को चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करे कि सीबीआइ सृजन घोटाले की जांच करने की बिहार सरकार की सिफारिश को अस्वीकार न करे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते रहते हैं.
उम्मीद है कि श्री मोदी यह बात महसूस करेंगे कि बिहार जैसे गरीब प्रदेश के भ्रष्टाचारियों को उनके असली मुकाम तक पहुंचाना सर्वाधिक जरूरी है. इस घोटाले में बड़ी -बड़ी हस्तियों के शामिल होने की संभावना बलवती है.
कल्पना कीजिए कि कुछ लोग करोड़ों रुपए लूट रहे हैं और प्रभावशाली लोगों के बीच उसमें से लाखों बांट रहे हैं. ऐसे में कितने अफसर, नेता और अन्य क्षेत्रों के प्रभावशाली लोग हैं जो पैसे ठुकरा देंगे. नब्बे के दशक के जैन हवाला कांड में तो उन हवाला कारोबारी जैन बंधुओं ने विभिन्न दलों के अनेक अत्यंत बड़ेे नेताओं को लाखों -लाख रुपए यूं ही दे दिए थे. उन्होंने वे पैसे स्वीकार भी कर लिये थे. यह और बात है कि उनमें से सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था सिर्फ शरद यादव ने.
शरद ने कहा था कि कोई जैन आया था और मुझे 3 लाख रुपये दे गया. अरे भई, आपने उससे पूछा क्यों नहीं कि किस खुशी में ये पैसे दे रहे हो. पर आज राजनीति का स्तर ही ऐसा है कि इस तरह के आसान पैसों की ही बड़े बड़े नेता प्रतीक्षा करते रहते हैं. याद रहे कि हवाला व्यापारी जैन बंधु कश्मीर के आतंकियों को भी विदेश से आये पैसे पहुंचाता था. उसने नेताओं को पैसे इसलिए बांटे थे कि कश्मीरी आतंकियों को पैसे देते यदि कभी वह पकड़ा जाए तो ये नेता उसे छुड़वा लेंगे.
सृजन घोटालाबाजों ने भी संरक्षक तैयार किये थे. इसीलिए यह घोटाला वर्षों तक निर्बाध चलता रहा और किसी का बाल बांका नहीं हुआ. इनके बड़े बड़े संरक्षक जो उपलब्ध थे. सृजन महिला विकास सहयोग समिति नामक एनज़ी़ओ़ के संचालकों की हमेशा चांदी रही.
क्योंकि उन्हें उच्चस्तरीय संरक्षण मिलता रहेगा. कम्युनिस्टों को छोड़ दें तो हवाला एक तरह से सर्वदलीय घोटाला था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीबीआइ ने तो उस मामले की ठीक से जांच ही नहीं की. करती कैसे. सत्ताधारी सहित विभिन्न दलों के इतने बड़े नेताओं को कैसे सजा दिलवाती ! चारा घोटाला भी बहुदलीय घोटाला रहा. उसकी सीबीआइ द्वारा ठीक से जांच हुई. देखना है कि सीबीआइ सृजन घोटाले की ईमानदारी से जांच कर पाती है या नहीं. यदि अदालती निगरानी की व्यवस्था हो जायेगी तो सही जांच होगी.
वैसे भी सही जांच की संभावना इसलिए भी है क्योंकि सृजन में उतने बड़े नेता नहीं फंसे हैं जितने हवाला और चारा घोटाले में फंसे थे. वैसे कुछ लोग यह शक जरूर जाहिर कर रहे हैं कि पता नहीं जांच निष्पक्ष हो पायेगी या नहीं. अदालती निगरानी हो पायेगी या नहीं. यह शक इसलिए भी जाहिर किया जा रहा है क्योंकि सृजन के दुर्जनों में कुछ वैसे नेताओं के भी नाम आ रहे हैं जिनके दल की केंद्र में सरकार है.
इस गरीब राज्य की जनता से वसूले गये टैक्स के पैसों को लूटा है सृजन के दुर्जनों ने. उन्हें ईश्वर तो माफ नहीं ही करेगा, सीबीआइ को भी चाहिए कि वह ठीक से जांच करे चाहे जो भी फंसता हो. चाहे अदालती निगरानी हो या नहीं. सीबीआइ के सामने यह अच्छा मौका है जब वह साबित कर सकती है कि वह अब सरकारी तोता नहीं रही.

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