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बिहार : रोज नये रास्ते खोज रहा पानी खतरे में जिंदगानी…

बिहार के कई नये इलाकों में पानी घुसने लगा है. मुजफ्फरपुर शहर के निचले इलाकों में बूढ़ी गंडक का पानी भर गया है. सबसे ज्यादा आश्रमघाट मोहल्ला प्रभावित हुआ है. सीतामढ़ी में में पानी बढ़ा है, दरभंगा अौर मोतिहारी में भी सैकड़ों लोगों ने घर छोड़ दिया है. गोपालगंज में डूबने से छह लोगों की […]

बिहार के कई नये इलाकों में पानी घुसने लगा है. मुजफ्फरपुर शहर के निचले इलाकों में बूढ़ी गंडक का पानी भर गया है. सबसे ज्यादा आश्रमघाट मोहल्ला प्रभावित हुआ है. सीतामढ़ी में में पानी बढ़ा है, दरभंगा अौर मोतिहारी में भी सैकड़ों लोगों ने घर छोड़ दिया है. गोपालगंज में डूबने से छह लोगों की मौत हो गयी है.
उत्तर बिहार के कई नये इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया है, जिससे स्थिति और बिगड़ती जा रही है. मुजफ्फरपुर शहर के निचले इलाकों में बूढ़ी गंडक का पानी भर गया है. इससे सबसे ज्यादा आश्रमघाट मोहल्ला प्रभावित हुआ है.
सीतामढ़ी में लखनदेई में पानी बढ़ा है, जिससे रुन्नीसैदपुर व बैरगनिया में पानी का दबाव बढ़ा है. दरभंगा शहर में पानी आने से लोग सुरक्षित स्थानों पर जा रहे हैं. मोतिहारी शहर में भी पानी की वजह से सैकड़ों लोगों ने अपना घर छोड़ दिया है. ऊंचे स्थानों पर रह रहे हैं. इस बीच राहत की खबर ये है कि बागमती का जलस्तर लगातार कम हो रहा है, जिससे आनेवाले एक-दो दिन में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है.
बाढ़ राहत व बचाव के लिए सीतामढ़ी, मोतिहारी, बेतिया व मधुबनी में सेना की ओर से ऑपरेशन चलाया जा रहा है. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ व स्थानीय प्रशासन की ओर से भी बचाव का काम किया जा रहा है, लेकिन जिन इलाकों में कई दिनों से मदद नहीं पहुंची है, वहां के लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है. वह सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं, हालांकि प्रशासन पूरी तरह से एक्शन मोड में है.
अधिकारियों की ओर से बड़े पैमाने पर राहत व बचाव का काम किया जा रहा है, लेकिन बाढ़ से इतने ज्यादा लोग प्रभावित है कि सब तक राहत नहीं पहुंच पा रही है, जो गांव मुख्य सड़कों के किनारे हैं. वहां राहत की गाड़ियां पहुंच रही हैं. अंदर बसे गांवों में राहत नहीं पहुंची है. राहत के लिए निजी व स्वयंसेवी संगठन भी सामने आने लगे हैं. इनकी ओर से भी पीड़ितों की मदद की जा रही है.
मोतिहारी
मोतिहारी के सात वार्डों में पानी भर गया था. शुक्रवार को बेतिया व रक्सौल जानेवाली सड़क पर सुगौली के पास बूढ़ी गंडक का पानी चढ़ गया है, जबकि पकड़ीदयाल जानेवाली सड़क पर भी बूढ़ी गंडक के पानी का असर है. यह रास्ता भी बंद हो चुका है. अब इस इलाके का जिला मुख्यालय से संपर्क भंग हो चुका है. मोतिहारी शहर में राहत का काम चलाया जा रहा है. लोग ऊंचे स्थानों पर शरण लिये हुए हैं. प्रशासन की तरफ से यहां बचाव कार्य किये जा रहे हैं.
सीतामढ़ी
बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित सीतामढ़ी है. बांध टूटने से जो पानी बागमती से लखनदेई में पहुंचा था, वह अब नये इलाके में फैल रहा है. मुख्यालय के डुमरा के कुछ इलाकों में पानी आ गया है. यहीं पर जिला प्रशासन के कार्यालय हैं. रुन्नीसैदपुर के नये इलाकों में पानी भर गया है. लोगों को पैकेटों के जरिये राहत सामग्री पहुंचायी जा रही है, लेकिन यह इतनी कम है कि सब लोगों तक नहीं पहुंच रही है. मेडिकल कैंप भी लगाये जा रहे हैं. कई इलाकों में लोग घरों में कैद हो गये हैं.
मधुबनी
मधुबनी में बाढ़ से हालात में कोई बदलाव नहीं आया है. यहां भी बाढ़ राहत नाकाफी साबित हो रही है. बेनीपट्टी व झंझारपुर का इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित है. इन दोनों स्थानों पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है. यहां पर मेडिकल सुविधाएं भी नाकाफी हैं. जिन लोगों को बुखार है, उन्हें एक टाइम ही दवा मिल रही है. इससे लोगों में आक्रोश है. शिवहर में भी बाढ़ का पानी कम हुआ है, लेकिन यहां जो लोग प्रभावित हैं. उनकी परेशानी कम नहीं हो रही है.
बेतिया
बेतिया व बगहा के कई इलाकों से पानी उतर गया है. यहां लोगों की परेशानी कम नहीं हुई है. रामनगर और नरकटियागंज में भी पानी कम हुआ है. दरभंगा के दो दर्जन से ज्यादा मोहल्लों में बागमती का पानी प्रवेश कर गया है. शहर में जो नाला है. उसी पर नदी के पानी का दबाव बना और पानी शहर के विभिन्न मोहल्लों तक फैल गया. प्रशासन की ओर से यह इंतजाम किये जा रहे हैं कि और ज्यादा नये इलाकों में पानी नहीं फैले. दरभंगा इंजीनियरिंग कॉलेज का कैंपस बाढ़ के पानी से घिर गया है.
पूरे जिले में पिछले 24 घंटे में गंडक व बूढ़ी गंडक नदी के पानी का दबाव बढ़ा है. आश्रमघाट, शेखपुर, झील नगर जैसे इलाकों में बने घरों में पानी भर गया है. इनमें सैकड़ों घर ऐसे हैं, जो बांध के अंदर बने हैं.
प्रशासन इनको पहले से डूब का इलाका मानता रहा है, लेकिन यहां पर पीसीसी सड़क से लेकर सभी शहरी सुविधाएं दी गयी हैं. मुजफ्फरपुर से सटी कई पंचायतों में भी धीरे-धीरे पानी बढ़ता जा रहा है. साथ ही साहेबगंज व पारू जैसे इलाकों में बाढ़ प्रभावितों को दोनों टाइम कैंपों के जरिये भोजन कराया जा रहा है, जिसकी मॉनीटरिंग एसडीओ रंजीता खुद कर रही हैं.
गोपालगंज
यहां भूख से बिलख रहे हैं मासूम बच्चे
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जहां बड़ों को खाने के लिए भोजन नसीब नहीं हो पाता, वहां मासूम के लिए दूध कहां से आयेगा. कुछ इसी तरह का नजारा सिधविलया प्रखंड से महज चार किलोमीटर दूर सुपौली में देखने को मिला. यहां सरकार और सामजसेवियों द्वारा बाढ़पीड़ित लोगों के बीच भोजन परोसा जा रहा था. लेकिन मासूमों को पेट भरने के लिए कुछ भी नहीं दिया जा रहा था
दो-तीन महीने के नवजात बच्चे की मां और पिता का कहना था कि मां के दूध से ही पिछले कई दिनों से बच्चे की भूख मिटायी जा रही है, पर उचित व्यवस्था और भोजन नहीं मिलने के कारण अब वो भी जवाब देने लगा है. बच्चे की चिल्लाहट बताती है कि भूख की आहट पर हम सभी इस प्रलयंकारी भयानक बाढ़ के सामने मजबूर हैं. इस जगह बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे-बच्चियां हैं, जिनका जन्म एक से लेकर तीन महीने पहले हुआ है. फिलहाल ये बच्चे खाना बांट रहे लोगों को देखते हैं और कुछ नहीं मिलने पर मां की ओर देखकर रोने लगते हैं.
बाढ़ की पीड़ा
आश्रय स्थल बने हुए हैं एनएच-31 के डिवाइडर
जिले की नौ लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित है. एनएच 31 का डिवाइडर आश्रय स्थल बने हुए हैं. बायसी के इलाके में जलस्तर में कमी आयी है.
घटते जलस्तर के साथ लोगों को किसानी की चिंता भी सताने लगी है. कटारे हाट पर सिंघिया निवासी खालिद रजा से मुलाकात हुई. रजा को अब भविष्य की चिंता सता रही है. तीन बेटे दिल्ली और अलीगढ़ में पढ़ाई कर रहे हैं. बाढ़ में धान और पाट की फसल बरबाद हो गयी है. कहते हैं ‘ खेती से ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई चलती थी. हमारा इलाका आर्थिक रूप से अब 20 साल पीछे चला गया है ‘ .
गैस की किल्लत, दूध की किल्लत, गांवों में सब्जी की किल्लत, शुद्ध पेयजल को ले तरसते लोग, ये हालत है बाढ़ प्रभावित गांवों की.फारबिसगंज, नरपतगंज, जोकीहाट, जोगबनी, कुर्साकांटा, सिकटी के इलाकों में सड़कें टूट गयीं, बिजली नहीं है. मोबाइल का टॉवर जाते ही पिछले छह दिनों से गांव के लोगों का शहर से किसी भी प्रकार संपर्क नहीं हो रहा है. गैस की किल्लत बीते पांच वर्षों के बाद देखने को मिली. सब्जी की कमी को हर दिन पूरा करने वाला माणिकपुर, मुरबल्ला, समौल, बांसबाड़ी, मैसाकोल व मजगामा आदि गांव पानी से परेशान हैं.
महानंदा, कनकई, बूढ़ी कनकई, रतुआ, मेची, डोंक नदी के जलस्तर में कमी आने के बावजूद बाढ़ प्रभावित इलाकों में स्थिति गंभीर बनी हुई है.
महानंदा नदी से बचाव के लिए कमारमनी गांव के समीप मौजाबाड़ी खाड़ीबस्ती तटबंध पर पानी के दबाव के कारण 600 मीटर तक तटबंध कट गया, जिससे चार दर्जन परिवार का घर नदी में विलीन हो गया. किशनगंज-बहादुरगंज सड़क, ठाकुरगंज-किशनगंज पथ पर शरण लिए हुए हैं. इसके अलावा एनएच 327 ई के किनारे व अन्य ऊंचे स्थानों पर खुले आसमान के नीचे रहने को विवश हैं.
14 प्रखंड की 15 लाख से अधिक की आबादी बाढ़ से प्रभावित है. शुक्रवार को कटिहार-पूर्णिया सड़क राजवाड़ा से हसनगंज को जोड़ने वाली सड़क पर तेज बहाव होने के कारण सड़क व पुल पूरी तरह से बह गया.
इसके साथ ही फलका, मनिहारी, कोढ़ा प्रखंड के कई पंचायतों में शुक्रवार को नये क्षेत्र में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है, जबकि पूर्व से ही बारसोई, आजमनगर, कदवा, बलरामपुर, प्राणपुर हसनगंज, मनसाही, डंडखोरा, अमदाबाद प्रखंड पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में है. बाढ़ की वजह से पूरे जिले में त्राहिमाम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है.
विगत दो दिनों से मधेपुरा पूर्णिया NH 107 पर मीरगंज के पास उसी जगह पानी लगातार बह रहा है, जहां 2008 में पानी ने सड़क को भीषण रूप से काट दिया था. उधर आलमनगर और चौसा में कोसी अपना रौद्र रूप दिखा रही है. लगातार बढ़ता पानी लोगों को बेदम किए हुए है. अरबों खर्च कर बनाया गया बाढ़ आश्रय स्थल किसी को आसरा नहीं दे सका.
सात प्रखंड के 90 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं. अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है. जिला प्रशासन द्वारा कुल 133 सरकारी तथा 52 निजी नावों के अतिरिक्त दो मोटर वोट का भी परिचालन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कराया जा रहा है. एनडीआरएफ को भी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सहायतार्थ लगाया गया है.
सुरसर नदी उफनाने के बाद मुरलीगंज, ग्वालपारा के रास्ते बाढ़ का पानी सौरबाजार, सोनवर्षा, पतरघट, बनमा इटहरी व सलखुआ में घुस गया है. 2008 में आई बाढ़ के रास्ते ही इस बार भी इन क्षेत्रों में पानी प्रवेश कर रहा है. आवागमन अवरूद्ध हो रहा है. प्रशासन ने सलखुआ प्रखंड के चिड़ैया व बहोरवा, में राहत शिविर शुरू कर दिया है.

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