पटना : जब से नीतीश कुमार ने महागंठबंधनछोड़ लालू प्रसाद यादव से नाता तोड़ा है,तबसे राजद प्रमुख लगातारशरदयादव कानाम लेरहेहैं.लालू प्रसाद यादव शरद को न सिर्फ अपनानेता बता रहे हैं बल्कि उनसे देश भर में नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की भी अपील कर रहे हैं. अाज रांची में भी लालू प्रसाद यादव ने शरद यादव का उल्लेख किया और कहा कि वे आठ अगस्त को पटना आ रहे हैं. लालू ने इससे पहलेबदलीहुई परिस्थितियों में पिछले सप्ताह शनिवार को शरद यादव को अपना नेता बताया था और उनसे खुद व अपने लोगों का नेतृत्व करने की अपील की थी. लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि शरदजी हमलोगों का नेतृत्व करें आैर देश भर की यात्रा करें. लालू प्रसाद यादव ने आज कहा है कि शरद यादव मूल रूप से एंटी भाजपा और एंटी आरएसएस हैं.
ध्यान रहे कि जनता दल में शरद यादव से अध्यक्ष पद का चुनाव हारने के बाद ही लालूप्रसादयादव नेदिल्ली से पटना लौट करराष्ट्रीय जनता दलकागठन किया था और तब शरद यादव पर आरोप लगायागया था कि कार्यकारिणी में उन्होंने अपने लोग भर रखे थे, इसलिएलालू चुनाव हार गये.ऐसे में यह समझना दिलचस्प है कि सीबीआइ, इडी और आइटी केरडारपर चढ़े लालू प्रसाद यादव को शरदयादवइतनेप्रासंगिक क्यों लग रहे हैं?
जेपी आंदोलन के दौरान लोकसभा के पहले उम्मीदवार बने थे शरद
पिछले ही महीने पहली जुलाई को 70 साल के हुए शरद यादव छात्र राजनीतिसे मुख्यधारा की राजनीति मेंआये.वेजबलपुरके इंजीनियरिंग कॉलेजकेछात्र व छात्रनेता रह चुकेथे और मीसामेंजेल भी जा चुके थे. उन्हें 1974 के उपचुनाव में जबलपुर से उम्मीदवार बनाया गया, जहां से शरद यादव जीत गये. तब जेपी आंदोलन उफान पर था और जेपी की पहल पर विपक्ष की ओर से सबसेपहलेउन्हें हीहलधर किसान चुनाव चिह्न से उम्मीदवारबनाया गया था.74की जीत के बाद शरदलगातारतेजीसे राजनीतिकसीढ़ियां चढ़ते गयेऔर 77 मेंछठीलोकसभा के लिए तो चुने ही गये,साथ ही युवा जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाये गये. औरसमाजवादीराजनीति के बड़े चेहरेबन गये. उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में अपने वरिष्ठ जार्ज को और कनिष्ठ लालू दोनों को हराया. कहते हैं कि बिहार की राजनीति में बतौर मुख्यमंत्री लालू की ताजपोशी के लिए केंद्रीय राजनीति में तानाबुना शरद ने ही बुना था. हालांकि समाजवादियों के बीच खटपट की पुरानी परंपरा के कारण बाद में दोनों अलग हुए और एक-दूसरे पर हमले भी किये.
राजनीति में शरद यादव की प्रयोगधर्मिता
शरद यादव राजनीति में प्रयोगधर्मी शख्स रहे हैं. भले उनका अपना वोट आधार नहीं हो, लेकिन अलग-अलग वोट आधार वाले समाजवादियों के साथ उन्होंने राजनीति में खूब प्रयोग किये हैं. लालू के जनता दल से अलग होने के बाद उन्होंने पासवान के साथ पार्टी चलायी. फिर बाद के दिनों में जार्ज-नीतीश की अगुवाई वाले समता व जनता दल का विलय होकर जनता दल यूनाइटेड बना. उधर, बाद में पासवान ने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी बना ली. जार्ज साहब जब राजनीति के नेपथ्य में चले गये तो जनता दल यूनाइटेड के दो बड़े चेहरे शरद यादव व नीतीश कुमार बने. अब नीतीश कुमार एनडीए के साथ गये हैं, तो कहा जा रहा है कि शरद यादव इससे नाराज हैं और फिर कोई नया प्रयोग कर सकते हैं और नया प्रयोग करने के लिए एक वोट आधार वाला राजनेता उन्हें लगातार ऑफर पर ऑफर दे ही रहे हैं. अब गेंद शरद यादव के पाले में है.
शरद पर जदयू में हलचल
शरद यादव के हर कदम पर उनकी पार्टी जदयू की नजर है. चाहे वह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात हो या लालू प्रसाद यादव से संभावित तालमेल या फिर बिहार के नये महागंठबंधन के प्रति नाराजगी. जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने आज पटना में कहा है पार्टी अध्यक्ष का फैसला सबको मानना चाहिए. शरदजी का भ्रष्टाचार से लड़ने का लंबा ट्रैक रिकार्ड रहा है और वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लिये गये फैसले को समझेंगे. वहीं, जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा है कि ऐसा नहीं लगता है कि शरदजी ने बगावत की है, 19 को पटना में जदयू की कार्यकारिणी की बैठक है, उसमें वे अपनी बात रख सकते हैं.हालकेराजनीतिक फैसले सबकी सहमति से लियेगये हैं.