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उधार की दाल अब नहीं खायेगा बिहार

खुशखबरी : मोकामा टाल में दलहन खासकर मसूर की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा, दलहनी फसलों के मामले में बिहार को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य दीपक कुमार मिश्रा पटना : बिहार दाल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा. अब सूबा आयातित दाल के भरोसे नहीं रहेगा. कृषि विभाग दाल उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनने की […]

खुशखबरी : मोकामा टाल में दलहन खासकर मसूर की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा, दलहनी फसलों के मामले में बिहार को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य
दीपक कुमार मिश्रा
पटना : बिहार दाल के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा. अब सूबा आयातित दाल के भरोसे नहीं रहेगा. कृषि विभाग दाल उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. इसके लिए दाल का कटोरा कहे जाने वाले मोकामा टाल में दाल खासकर मसूर की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा. इसके लिए एक बड़ी योजना पर काम चल रहा है.
कलस्टर बनाकर दाल की खेती होगी. पटना, लखीसराय, शेखपुरा और नालंदा जिले में फैले और मोकामा टाल के नाम से विख्यात एक लाख हेक्टेयर की जमीन दाल खासकर मसूर की खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है. वैसे चना की भी खेती होती है. यहां की मिट्टी और जलवायु दोनों दलहनी फसल के लिए बेहतर मानी जाती है. जानकार कहते हैं कि अगर वैज्ञानिक और उन्नत तरीके से खेती की जाये तो मोकामा टाल पूरे देश को दाल खिला सकता है. विदेशों से दाल को आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
कलस्टर बनाकर होगी खेती कृषि विभाग मोकामा टाल में फसल उत्पादन को तो बढ़ावा देगा ही साथ ही वहां की मिट्टी और जलवायु के अनुकूल मसूर का आधार बीज भी तैयार करेगा. अभी औसतन एक हेक्टेयर में 12 से 13 क्विंटल मसूर का उत्पादन होता है. मोकामा टाल विकास समिति के प्रखंड संयोजक ओमप्रकाश सिंह कहते हैं कि अगर पर्याप्त सरकारी सहायता मिले तो उत्पादन 20 क्विंटल तक पहुंच जायेगा. जानकार बताते हैं कि तीसरे रोडमैप में दलहनी फसलों के मामले में बिहार को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. बिहार चाहता है कि कम से कम 30 फीसदी दलहनी बीज का उत्पादन भी वह करे.
जलजमाव है, एक बड़ी समस्या
मोकामा टाल में दलहनी फसलों के लिए पानी अगर वरदान है तो यह एक बड़ी समस्या भी है. बरसात में पूरे टाल में पानी आ जाता है. किसान बताते हैं कि अगर जुलाई में टाल में पानी आ जाता है और सितंबर के अंत तक पानी निकल जाता है तो खेत बुआई के लिए 15 अक्तूबर तक तैयार हो जाता है. बुआई के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है. इससे फसल पर रस्ट (पाला) का खतरा कम हो जाता है और पैदावार भी बंपर होती है. बुआई में जितनी देरी होगी उत्पादन उतना ही कम होगा. सिंह कहते हैं कि टाल से पानी की निकासी की स्थायी और समुचित व्यवस्था होनी चाहिए.
अभी जिस पारंपरिक रास्ते हरोहर नदी के रास्ते निकलती है उससे पानी निकलने में काफी देरी होती है. पानी निकासी के लिए एक चैनल और बनना चाहिए.
कोट्स
मोकामा टाल में दलहनी फसल खासकर मसूर की खेती की काफी संभावना है. मोकामा टाल में मसूर की खेती को और बढ़ावा दिया जायेगा. इसके लिए व्यापक योजना बनायी जा रही है. बिहार दाल के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा.
हिमांशु राय, कृषि निदेशक, बिहार
मोकामा टाल में दलहनी फसल खासकर मसूर की खेती की काफी संभावना है. मोकामा टाल में मसूर की खेती को और बढ़ावा दिया जायेगा. इसके लिए व्यापक योजना बनायी जा रही है. बिहार दाल के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा.
हिमांशु राय, कृषि निदेशक, बिहार
मोकामा टाल में दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि विभाग तैयारी कर रही है. सरकार कलस्टर व्यवस्था को यहां बढ़ावा देगी. इससे लागत में कमी आयेगी. सिंचाई के लिए वहां बोरिंग और स्प्रिंकलर लगाने की योजना है. मसूर में अधिक पटवन भी हानिकारक हो जाता है.
इसके अलावा तकनीकी पदाधिकारियों की स्थायी तैनाती होगी जो किसानों को नवीनतम व वैज्ञानिक तरीके से खेती की जानकारी देंगे. बाजार उपलब्ध कराया जायेगा. किसानों को इ बाजार से जोड़ा जायेगा. अभी किसान स्थानीय व्यापारियों के हाथों मसूर बेचते हैं.

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