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2000 एकड़ में लाल बालू के लिए होती है वर्चस्व की जंग

करीब 30 साल से बालू का हो रहा है खनन विवाद की शुरुआत साल 2007 से शुरू हुई पिछले दो साल में करीब दर्जन भर लोग गंवा चुके हैं जान पटना : पटना, भोजपुर व सारण जिले में लाल बालू के अवैध खनन के लिए करीब 2000 एकड़ के इलाके में वर्चस्व की जंग होती […]

करीब 30 साल से बालू का हो रहा है खनन
विवाद की शुरुआत साल 2007 से शुरू हुई
पिछले दो साल में करीब दर्जन भर लोग गंवा चुके हैं जान
पटना : पटना, भोजपुर व सारण जिले में लाल बालू के अवैध खनन के लिए करीब 2000 एकड़ के इलाके में वर्चस्व की जंग होती रहती है. पिछले दो साल में करीब दर्जनभर लोग जान गंवा चुके हैं.
इस इलाके में करीब 30 साल से बालू का खनन हो रहा है. विवाद की शुरुआत साल 2007 में तब हुई जब 85 एकड़ जमीन पर खनन के लिए बिहटा थाना के अमनाबाद व मनेर थाना के चौरासी गांव के लोग आमने-सामने आ गये. इस वजह से क्षेत्र में काफी तनाव आ गया. अमनाबाद के लोगों को उमाशंकर सिंह उर्फ फौजिया व चौरासी गांव के लोगों को उमाशंकर सिंह व सिपाही के गैंग ने मदद करनी शुरू की. यह विवाद वर्तमान में पटना जिले के बिहटा थाना क्षेत्र के महुई महाल मे बालू की खनन को लेकर शुरू हुआ.
बताया जाता है कि ग्रामीणों से इसका पट्टा शंकर सिंह ने करा लिया था और उस पर खनन करने लगे. जब चौरासी गांव के लोगों ने इसका विरोध किया तो उमाशंकर सिंह और सिपाही गुरुओं ने उनका साथ दिया बहुत दिनों तक यह इलाका पटना और भोजपुर जिले की सीमा विवाद में उलझा रहा. पिछले साल वहां गैंगवार हुआ जिसमें पटना के एसएसपी मनु महाराज ने वहां जाकर स्थिति संभाली. उन्होंने कई माफियाओं को गिरफ्तार किया. कई नावें जब्त की और करोड़ों रुपये की पोकलेन मशीन पकड़े गये.
1500 से 5000 रुपये तक की वसूली जाती है रंगदारी
महुई महाल इलाके से प्रतिदिन करीब 300 नाव बालू लेकर सारण जिले के डोरीगंज इलाके में जाते हैं. इनसे वर्चस्व प्राप्त गैंग रंगदारी वसूल करता है. प्रत्येक नाम से 1500 से 5000 रुपये तक वसूले जाते हैं. यह गैंग अत्याधुनिक हथियारों से लैस है. इसलिए बिना तैयारी की पुलिस इनसे मुकाबला करने से घबराती है. अवैध खनन का आलम यह है कि सोन नदी से सटे इस दियारा क्षेत्र में अंदर तक घाटों की खुदाई कर दी गयी है, जिससे कि नहरनुमा आकृति बन गयी है.
दरअसल सड़क से बालू लेकर जाने वाले ट्रकों को चालान भरना पड़ता है, लेकिन नदी से नाव पर बालू लेकर जाने वाले नाविकों को कहीं चालान देने की जरूरत नहीं पड़ती. इसलिए इससे रोजाना सरकार को लाखों रुपये के राजस्व की हानि होती है. इस क्षेत्र के नदी घाटों की बंदोबस्ती भी नहीं हुई है. इसलिए इस इलाके से निकलने वाले बालू को बेचने का फायदा केवल माफियाओं को होता है. स्थानीय लोगों की माने तो इस खेल में खादी व खाकी वाले जुड़े हैं. यह धंधा करोड़ों रुपये का है.

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