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नये सफर पर बिहार के राज्यपाल : 10 बजे आया फोन, 5:17 बजे निकल गये दिल्ली

पटना : राज्यपाल रामनाथ कोविंद का सोमवार का रूटीन आम दिनों की तरह ही था. सुबह की घंटेभर की सैर के बाद जब वह अपने कार्यालय कक्ष पहुंचने ही वाले थे, कि दिल्ली की एक फाेन की घंटी ने उनकी दिनचर्या बदल दी. आम तौर पर राज्यपाल साढ़े 10 बजे राजभवन के पहले तल्ले पर […]

पटना : राज्यपाल रामनाथ कोविंद का सोमवार का रूटीन आम दिनों की तरह ही था. सुबह की घंटेभर की सैर के बाद जब वह अपने कार्यालय कक्ष पहुंचने ही वाले थे, कि दिल्ली की एक फाेन की घंटी ने उनकी दिनचर्या बदल दी. आम तौर पर राज्यपाल साढ़े 10 बजे राजभवन के पहले तल्ले पर स्थित अपने कक्ष में आ जाते थे. करीब 10 बजे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें फोन कर यह बताया कि आप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाये गये हैं.
अमित शाह ने उन्हें आज ही दिल्ली पहुंचने की सलाह दी. अमित शाह के फोन के बाद राज्यपाल ने अपने सचिव से सोमवार के निर्धारित कार्यक्रमों की जानकारी ली. कवि सत्यनारायण समेत करीब 10 लोगों से मुलाकात के उनके कार्यक्रम निर्धारित थे. राज्यपाल ने दिन के एक बजे तक सारे लोगों से मुलाकात की. तब तक शायद ही किसी को भनक तक लगी हो कि वह देश के भावी राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात हो रही है. दिन के एक बजे मुलाकातियों से मिल लेने के बाद उन्होंने मातहतों को बताया कि उन्हें दिल्ली जाना है.
जिस समय उन्हें दिल्ली से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाये जाने की सूचना मिली, उस समय उनके निकट उनके अपने सगे बड़े भाई मौजूद थे. राजभवन में इस समय लेडी गवर्नर सविता कोविंद मौजूद नहीं थीं. वे अभी दिल्ली में हैं. राज्यपाल के रूप में रामनाथ कोविंद रूटीन के बड़े पक्के थे. आम दिनों में वे दिन के साढ़े 10 बजे अपने कार्यालय कक्ष में पहुंच जाते थे.
नंदकिशोर बनेंगे प्रस्तावक, दिल्ली रवाना : वरिष्ठ भाजपा नेता और विधानसभा के लोक लेखा समिति के सभापति नंदकिशोर यादव एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नामांकन पत्र के प्रस्तावक बनेंगे. इसके लिए वे सोमवार की शाम दिल्ली के लिए रवाना हो गये.
शराबबंदी और दहेजमुक्त बिहार का किया समर्थन
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार घोषित किये गये बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद हमेशा कहते थे कि वे बिहार के हरदम कर्जदार रहेंगे. विवादों से कोसों दूर रहे राज्यपाल ने अपनी एक सभा में कहा था कि यदि वे बिहार नहीं आते तो उनका जीवन अधूरा रह जाता. उन्होंने कहा था कि बिहार के बारे में लोगों की अलग धारणा रही थी. लेकिन जब वे यहां आये तो उन्होंने बिल्कुल अलग बिहार देखा. यहां के लोग प्रतिभावान हैं, जिसे पसंद करते हैं उनके साथ दिल खोलकर होते हैं.

अपने 22 महीने के कार्यकाल में ही रामनाथ कोविंद ने अपने आप को एक बिहारी के रूप में ढालने की पूरी कोशिश की. उन्होंने कहा भी मैं भी बिहारी हूं. यहां आकर पूर्णतया बिहारवासी बन गया हूं. बोधगया से उनका खास लगाव रहा. शिक्षा के प्रति खास कर उच्च शिक्षा में बेहतरी के लिए उन्होंने कई प्रयास किये. उनके कार्यकाल में कुलपतियों के तीन सम्मेलन हुए.

सरकार की नीतियों का किया सपोर्ट
सरकार की नीतियों को राज्यपाल के रूप में उन्होंने हमेशा साथ दिया. राज्यपाल के तौर पर उन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी का पक्ष लिया. हाल के दिनों में उन्होंने जितनी भी सभाएं की, सबमें दहेजमुक्त विवाह और बाल विवाह की जोरदार वकालत की. सरकार के मुखिया के रूप में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्णयों को नैतिक रूप से सपोर्ट किया.
लोकायुक्त का बिल लौटाया
राज्यपाल के तौर पर उन्होंने सरकार के अच्छे कार्याें का समर्थन तो किया ही. साथ ही जिन कार्यों पर उन्हें तनिक भी असहमति लगी तो उसे जताया भी. राज्य के लोकायुक्त के कार्यकाल बढ़ाने संबंधी सरकार के विधेयक को उन्होंने पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया था. इसी प्रकार आर्यभट्ट नॉलेज विवि के कुलपति के कार्यकाल बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव को भी उन्होंने वापस किया था.
भभुआ पहला जिला जहां पहुंचे थे कोविंद
एक राज्यपाल के तौर पर किसी भी अन्य राज्यपाल से उन्होंने अधिक समारोहों में शिरकत की. राज्य का भभुआ ऐसा जिला है जहां इनसे पहले कोई राज्यपाल नहीं गया था. शायद ही कोई जिला हो जहां उन्होंने किसी समारोह को संबोधित नहीं किया हो. भगवान बुद्ध में उनकी असीम आस्था रही.
राजभवन को बनाया लोक भवन
राज्यपाल के तौर पर रामनाथ कोविंद ने राजभवन को लोकभवन के रूप में आम लोगों के लिए भी खोल दिया. राजभवन में कई समारोह आयोजित किये गये. राजभवन परिसर में उन्होंने कई पेड़ पौधे लगाये. विवि में नियमित दीक्षांत समारोह होने के वे हमेशा पक्षधर रहे.
राजभवन व सरकार में मधुर संबंध
यों तो बिहार में अक्सर राजभवन और सरकार के बीच टकराव चर्चा में रहा है, लेकिन रामनाथ कोविंद के कार्यकाल में एक बार भी एेसा वाकया सामने नहीं आया. चाहे विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति का मामला रहा हो या फिर विवि में शैक्षणिक माहाैल का मसला, कोविंद ने अपने अनुभवों से टकराव की स्थिति कभी बनने नहीं दी. राज्यसभा के दो बार सदस्य और इसके पहले भाजपा अनुसूचित जाति मोरचा के अध्यक्ष रह चुके कोविंद को बिहारवासी एक बेहतर राज्यपाल के रूप में याद करेंगे. राज्यपाल की पहल पर राजभवन में शैक्षणिक माहौल सुधरने के विषय पर लंबी बैठक हुई.
बिहार नहीं आता, तो जीवन अधूरा ही रहता
22 महीनों में शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब राज्यपाल बिहार के किसी समारोह में शामिल नहीं हुए हों. उन्होंने खुद ही स्वीकार किया कि यदि वह बिहार नहीं आते, तो उनका जीवन अधूरा ही रहता. प्रकाश पर्व हो या बाबा साहेब भीमराव अांबेदकर का जन्मदिन, रामनाथ कोविंद ने खुद को राज्यपाल से अलग जागरूक बिहार के प्रथम नागरिक के रूप में अपने को पेश किया. कोविंद के पहले जाकिर हुसैन ने भी बिहार में राज्यपाल रहे थे. लेकिन, बिहार के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे.
खास बातें
विधानसभा चुनाव के कुछ माह पूर्व ही बिहार आये रामनाथ कोविंद 1994 से 2006 तक लगातार दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे. वह 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के विशेष कार्य पदाधिकारी के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं. कोविंद कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए काम कर रही संस्था दिव्य प्रेम सेवा मिशन के आजीवन संरक्षक भी हैं.

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