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वेंटिलेटर की वेटिंग में थम रही हैं मरीजों की सांसें

आनंद तिवारी पटना : शहर में सरकारी अस्पताल तो कई हैं, लेकिन उनमें वेंटिलेटर की भारी कमी है. जहां हैं भी, इनमें अधिकतर खराब पड़े हैं. इससे ये अस्पताल गंभीर मरीजों के लिए सिर्फ रेफरल यूनिट बन कर रह गये हैं. प्रदेश भर के गंभीर मरीजों का भार पीएमसीएच जैसे संस्थान पर पड़ रहा है. […]

आनंद तिवारी
पटना : शहर में सरकारी अस्पताल तो कई हैं, लेकिन उनमें वेंटिलेटर की भारी कमी है. जहां हैं भी, इनमें अधिकतर खराब पड़े हैं. इससे ये अस्पताल गंभीर मरीजों के लिए सिर्फ रेफरल यूनिट बन कर रह गये हैं. प्रदेश भर के गंभीर मरीजों का भार पीएमसीएच जैसे संस्थान पर पड़ रहा है.
यहां वेंटिलेटर के लिए लंबी वेटिंग रहती है और वक्त पर इलाज न मिलने के कारण मरीजों की सांसें थम जाती हैं. पीएमसीएच के इमरजेंसी वार्ड में पिछले सप्ताह एक बच्चे की मौत हो गयी. उसके परिजनों के मुताबिक, बच्चे को वेंटिलेटर की सख्त जरूरत थी, लेकिन काफी इंतजार के बाद भी उसे वेंटिलेटर नहीं मिला और उसकी मौत हो गयी. इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं. जानकारों का कहना है कि वेंटिलेटर नहीं मिलने से राजधानी में रोजाना एक मरीज, जबकि एक महीने में करीब 30 की मौत हो जाती है.
शहर के चार अस्पतालों का हाल
शहर में चार छोटे अस्पताल हैं, इनमें गार्डिनर रोड अस्पताल, राजवंशी नगर हड्डी अस्पताल, गर्दनीबाग और राजेंद्र नगर नेत्रालय जैसे कई छोटे प्रमुख सरकारी अस्पताल हैं. सब मिला कर इन अस्पतालों में करीब 500 बेड हैं, लेकिन वेंटिलेटर की सुविधा किसी अस्पताल में नहीं है. ऐसे में परिजन अपने गंभीर मरीज को लेकर पीएमसीएच या फिर आइजीआइएमएस ही आते हैं. नतीजा मरीजों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
पीएमसीएच पर पूरे प्रदेश का बोझ : पीएमसीएच में पूरे प्रदेश के मरीज इलाज कराने आते हैं. राजधानी में भी किसी अस्पताल में वेंटिलेटर न होने के कारण हर मरीज को यहीं रेफर किया जाता है.
पीएमसीएच में कुल 32 वेंटिलेटर हैं, इनमें इमरजेंसी में 10, सर्जरी वार्ड में 10, बच्चा वार्ड में 5, गायनी में 5 और बर्न वार्ड में 2 वेंटिलेटर हैं. इनकी संख्या बेडों की संख्या के अनुपात में महज 2 फीसदी है. इसी वजह से यहां भी एक वेंटिलेटर के लिए हमेशा कम-से-कम तीन मरीजों की वेटिंग होती है. यहां कोई शुल्क न होने के कारण वेंटिलेटर पर अधिकांश गरीब मरीज भरती किये जाते हैं.
आइजीआइएमएस में भी नहीं मिलती राहत: आइजीआइएमएस में 18 वेंटिलेटर हैं. इनमें छह वेंटिलेटर इमरजेंसी व आइसीयू के लिए रिजर्व में रखे जाते हैं. यहां इतनी मारामारी रहती है कि एक वेंटिलेटर के लिए दो मरीजों की वेटिंग चलती है. यहां एक वेंटिलेटर के लिए 7 से 10 हजार रुपये प्रतिदिन शुल्क वसूला जाता है, जो प्राइवेट संस्थानों के मुकाबले आधा है.
इस कारण भी लोग मरीजों को आइजीआइएमएस लेकर आते हैं. एम्स अस्पताल में धूल फांक रहे वेंटिलेटर: पटना एम्स अस्पताल में मरीजों की संख्या व बेड के अनुसार वेंटिलेटर हैं, लेकिन यहां 12 ऐसे नये वेंटिलेटर हैं, जो आज भी धूल फांक रहे हैं. दरअसल यहां इमरजेंसी वार्ड शुरू करने के लिए एम्स प्रशासन ने वेंटिलेटर मंगाये थे, लेकिन विभागीय लापरवाही के चलते यहां न तो इमरजेंसी वार्ड शुरू हो पाया और न ही वेंटिलेटर का इस्तेमाल हो पा रहा है. यह स्थिति पटना एम्स में पिछले दो वर्षों से देखने को मिल रही है.
प्राइवेट में जाना मजबूरी: जिन मरीजों की हालत गंभीर होती है, उनके परिजन उन्हें मजबूरी में प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं. इन अस्पतालों में वेंटिलेटर के लिए 15 से 20 हजार रुपये रोजाना वसूला जाता है. ऐसे में हर मरीज यहां की सुविधा नहीं ले सकता. नतीजा गरीब मरीजों की या तो मौत हो जाती है या फिर सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर के लिए लंबी वेटिंग का इंतजार करते रहते हैं.
क्या है एमसीआइ का मानक: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के निर्धारित मापदंडों के अनुसार 11 सौ बेड के अस्पताल में न्यूनतम 50 वेंटिलेटर होने चाहिए. इस नियम का किसी अस्पताल में पालन नहीं हो रहा. शहर के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच, आइजीआइएमएस व एम्स में एमसीआइ की गाइड लाइन के अनुसार वेंटिलेटर काफी कम हैं.

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