हिसुआ : हिसुआ प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाका कृषि पर ही निर्भर है. ज्यादातर बड़े व मध्यवर्गीय किसान अपनी पूरी खेती स्वयं नहीं कर पाते हैं, वे अपनी खेतों को भूमिहीन किसानों से प्रति कट्ठा या एक मुश्त राशि पर खेती के लिए देते हैं. नोटबंदी के चलते ठेके या बटाईदार वाले किसान अपने उत्पाद की बिक्री उचित दामों पर नहीं कर पा रहे हैं.
खरीफ फसल की कटाई हो चुकी हैं. ठेके वाले किसान से पैसा वसूलने का दबाव बनाया जा रहा है. सही पैसा का आमद नहीं होना और रुपये लेन-देन को लेकर भू-स्वामी व किसान के बीच आये दिन तू-तू,मैं-मैं हो रही हैं. किसानों में पेसोपेश है कि कब नोटबंदी से उन्हें निजात मिलेगी. जब अपनी उपज लेकर बाजार जाते हैं तो उन्हें रुपये के बजाय दुकानदार द्वारा कहा जाता अभी पर्याप्त रुपये नहीं है. जरूर के हिसाब से पैसा ले लीजिए, बाद में बाकी दिया जायेगा. ऐसे में किसान करे तो क्या करे बस चुपचाप सब झेलने को विवश हैं.