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खिलाड़ियों को पैदा करनेवाली मिट्टी का दर्द समझनेवाला कोई नहीं
हरिश्चंद्र स्टेडियम. खिलाड़ियों ने राज्य से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जिले की मिट्टी की खुशबू फैलायी पैवेलियन के नीचे गाय भैंस व सूअरों का रहता है जमावड़ा शाम होते ही असामाजिक तत्वों का बन जाता अड्डा लंबे अरसे से परेशान हैं खिलाड़ी व खेलप्रेमी नवादा कार्यालय * 26 जनवरी 1973 को जिला बने नवादा को तत्कालीन […]
हरिश्चंद्र स्टेडियम. खिलाड़ियों ने राज्य से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जिले की मिट्टी की खुशबू फैलायी
पैवेलियन के नीचे गाय भैंस व सूअरों का रहता है जमावड़ा
शाम होते ही असामाजिक तत्वों का बन जाता अड्डा
लंबे अरसे से परेशान हैं खिलाड़ी व खेलप्रेमी
नवादा कार्यालय * 26 जनवरी 1973 को जिला बने नवादा को तत्कालीन सरकार ने सर्वांगीण विकास के लिए तमाम आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करायी. शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल के साथ क्षेत्र के लोगों के लिए खेल के लिए बड़ा प्ले ग्राउंड भी मुहैया कराने की कवायद की गयी. परिणामस्वरूप जिला स्थापना के कुछ ही माह बाद तत्कालीन प्रथम सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस एसएन लाल गुप्ता ने खेल प्रतिभाओं को हरिश्चंद्र स्टेडियम का उद्घाटन कर एक नायाब तोहफा दिया. जीवन में खेल की अहमियत को समझते हुए जिला के खेलप्रेमी विभिन्न खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवाले प्रतिभाओं को उभारने में लग गये.
इनके प्रशिक्षण व कड़ी मेहनत से तैयार खिलाड़ियों ने राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिले की मिट्टी की सुंगध को फैलाया. लेकिन, इन खिलाड़ियों को पैदा करनेवाली मिट्टी के दर्द को कोई नहीं समझ पाया. अपने नींव पड़ने के साढ़े चार दशक बाद भी जिला मुख्यालय का एकमात्र खेल मैदान हरिश्चंद्र स्टेडियम बदहाली का दंश झेल रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ियों को पहचान दिलानेवाले इस स्टेडियम की वर्तमान झलक पर मनमोहन कृष्ण की रिपोर्ट :-
जीर्णोद्धार के लिए करोड़ों रुपये हो चुके है खर्च: सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत हरिश्चंद्र स्टेडियम के जीर्णोद्धार के लिए करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं. इसमें जिला शहरीकरण योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2010-11 में फुटपाथ सह नाली, समेकित कार्य योजना के तहत 2013-14 में पैवेलियन सह गैलरी व 2015-16 में जिमखाना का निर्माण करवाया गया. इन योजनाओं के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये. लेकिन पर्याप्त निगरानी व रखरखाव के अभाव में फुटपाथ व नाली पूरी तरह खराब हो चुके हैं. पैवेलियन के नीचे गाय, भैंस व सूअरों का जमावड़ा रहता हैं. जिमखाना की देखरेख अभी नवादा क्रिकेट अकादमी के सदस्य करते हैं. स्टेडियम में जिला के एथलेटिक्स, वॉलीबॉल, हैंडबॉल, ताइक्वांडो, खो-खो, कबड्डी, क्रिकेट जैसे खेलों के खिलाड़ी अभ्यास करते हैं. सुबह व शाम में लोग वाक करने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं.
सुविधाओं की कमी से उपेक्षित है स्टेडियम : स्टेडियम के नाम पर चहारदीवारी से घिरे एक बड़े से मैदान के अलावा यहां कुछ नहीं दिखता. इसमें भी पूर्वी हिस्से की चहारदीवारी के ढह जाने से बरसात में तालाब का पानी पूरे स्टेडियम में भर जाता है.
इसको लेकर खिलाड़ियों ने सितंबर के पहले सप्ताह में डीएम मनोज कुमार के समक्ष प्रदर्शन भी किया. लेकिन मैदान के उत्तरी हिस्से में जमीन की समतलीकरण कर खानापूर्ति कर दी गयी. स्टेडियम में दक्षिणी व पश्चिमी चाहरदीवारी में एक एक बड़ा दरवाजा हैं. उत्तरी पश्चिमी कोने पर एक छोटा निकास भी है. लेकिन, दरवाजे के अभाव में यह खुला रहता हैं. इससे आसपास के पशु मैदान में घूमते रहते हैं. लोग मैदान को आम रास्ते की तरह उपयोग करते हैं. शाम होते ही यह असामाजिक तत्वों का अड्डा बन जाता है. नगर पर्षद के कूड़ा डंपिंग भी कुछ भाग में होता है. पेयजल योजना के तहत पाइप लाइन के लिए आये पाइपों को भी यहीं डाल दिया गया है. पास की झुग्गी झोंपड़ी के लोगों द्वारा शौच के लिए भी उपयोग में लाया जाता है. ऐसे में स्टेडियम की स्थिति दयनीय हो गयी है.
लीज पर लेने की तैयारी कर रहा डीसीए
जिला क्रिकेट संघ द्वारा लगातार टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है. इससे मैदान व पिच के निर्माण में काफी रुपये खर्च होते हैं. रखरखाव के अभाव में बाहरी लोगों व जानवरों द्वारा खेल मैदान को खेलने लायक नहीं छोड़ा जाता. आर्थिक तंगी व जनसहयोग के अभाव में डीसीए टूर्नामेंट के आयोजन में काफी दिक्कतें झेलता हैं. डीसीए सचिव गोपाल बोहरा ने बताया कि 16 सितंबर को आयोजित बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की बैठक में संघ के अध्यक्ष सह राज्य सरकार के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने राज्य भर के स्टेडियम की दयनीय स्थिति पर चर्चा हुई. इसमें हरिश्चंद्र स्टेडियम को भी सरकार से डीसीए द्वारा मांग करने की बात कही गयी है. इसको लेकर जिला क्रिकेट संघ ने डीएम को आवेदन देकर 25 वर्षों तक लीज पर देने की मांग भी की गयी है.
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