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शहर के कारोबार में आधी आबादी ने भी बनायी अलग पहचान

शहर में कई महिलाएं अपनी मेहनत व जज्बे के बल पर खुद नाम कमा रही हैं, साथ ही परिवार का सहारा भी बनी हैं. व्यापार से लेकर शिक्षा जगत तक में पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. खुद सबल बन दूसरों को रोजगार भी दे रही हैं, जो अन्य महिलाओं के […]

शहर में कई महिलाएं अपनी मेहनत व जज्बे के बल पर खुद नाम कमा रही हैं, साथ ही परिवार का सहारा भी बनी हैं. व्यापार से लेकर शिक्षा जगत तक में पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. खुद सबल बन दूसरों को रोजगार भी दे रही हैं, जो अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा भी है़
नवादा : आजादी के समय समाज सुधारकों के प्रयास से भारतीय महिलाएं घरों से बाहर निकली. स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लीं. यही से सामाजिक जीवन का शुरुआत करके महिलाएं शिक्षा, चिकित्सा, वकालत, सेना सहित तमाम क्षेत्रों में कामयाबी का परचम लहरा रही हैं. आधुनिक युग में खुली अर्थव्यवस्था, आर्थिक उदारवाद व सूचना तकनीकी में व्यवसाय के कई नये क्षेत्र उभरकर सामने आये.
ऐसे में घरों की अर्थव्यवस्था संभालने वाली महिलाओं ने खुलकर व्यवसाय की ओर अपना रूख किया. समाज में महिलाओं के प्रति बदलता नजरिया, नयी चुनौतियां व परिवार में आर्थिक मदद पहुंचाने की जरूरत ने महिलाओं को उद्योग जगत की ओर आकर्षित किया. बड़े शहरों से प्रेरित होकर महिलाएं इन दिनों नवादा शहर के कारोबार में अपने हुनर की धमक फैला रही हैं.
कई महिलाएं व्यावसायिक क्षेत्र में तो कई आइटी, एजुकेशन सहित दुकानदारी संभालती महिलाएं आज अपना मुकाम बना रही है. श्रृंगार प्रसाधन, कपड़े, किराना, ब्यूटी पार्लर, सिलाई, कढ़ाई सहित हरेक क्षेत्र में महिलाएं रोजगार अपना कर आर्थिक रूप से सबल बन रही है. इन उद्यमी महिलाओं के जज्बे की कहानी.
परिवार के लिए अपनाया व्यवसाय : आशा
महिला सशक्तीकरण के दौर में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आकर काम कर रही है. लेकिन परिवार के विपत्तियों के दौर में घर से बाहर निकल कर दुधमुंहे बच्चों के लिए अनाज की व्यवस्था करना एक महिला के लिए बड़ी चुनौती का काम है.
शहर की कर्मठ महिला आशा देवी ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जो आज हर महिला के लिए गर्व की बात है. 1997 में पति की दुर्घटना के बाद घर से निकल कर बाजार में दुकानदारी एक बड़ी चुनौती थी. ऐसे में जिले की पहली महिला दुकानदार होने का गौरव आशा देवी को प्राप्त है. शहर के मेन रोड में श्रृंगार प्रसाधन की दुकान चला कर अपने बच्चों की परवरिश की और आज एक प्रतिष्टित महिला के रूप में समाज में गिनी जाती है.
एसकेएम कॉलेज से स्नातक आशा देवी बताती है कि पति की दुर्घटना के बाद पूरे परिवार ने हमलोगों से मुंह मोड़ लिया था. ऐसे में मुहल्लेवासियों ने 20 हजार रुपये चंदा करके पूंजी दी. सदर अस्पताल की एएनएम स्व मंजू देवी ने हिम्मत देकर श्रृंगार प्रसाधन का दुकान करवाया. इसी से अपनी मेहनत के दाम पर अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिया. बेटी की अच्छे घर में शादी की. बेटे को स्वरोजगार दिलाया. पति का इलाज भी करवा रही हूं. आज समाज के लोग काफी सम्मान देते हैं.
अच्छी शिक्षा देना है लक्ष्य : रानी
आज शिक्षा जगत भी व्यवसाय का एक क्षेत्र बनकर उभर रहा है. बड़े शहरों में लिट्रा वैली, किड्जी, सनबीम जैसे शिक्षा के क्षेत्र में नये नाम उभरे हैं. इस क्षेत्र को अपने व्यावसायिक क्षेत्र के रूप में चुनने का काम लॉ स्नातक रानी कुमारी ने किया. बचपन से ही व्यापारी परिवार में पली बढ़ी रानी के मन में कुछ हटकर व्यवसाय करने की इच्छा थी. उच्च शिक्षित रानी कुमारी ने शादी के बाद शिक्षा क्षेत्र को ही अपना मुकाम चुना. इसके लिए रानी ने जी ग्रुप के प्ले स्कूल किड्जी को चुना. शहर के भदौनी में रानी किड्जी का सफल संचालन कर रही है.
लॉ स्नातक रानी कुमारी बताती है कि व्यावसायिक वर्ग से होने के कारण शुरू से ही कुछ अलग करने की चाहत थी. पटना में परिवार के एक बच्चे की बेहतर स्कूलिंग देखकर अपने शहर में भी बच्चों के लिए एक स्कूल खोलने की इच्छा हुई. इस क्षेत्र में छोटे बच्चों के लिए प्ले स्कूल की बेहतर सुविधा देना एक बड़ी चुनौती थी. फिर भी इसकी शुरुआत की. इसमें पूरे परिवार का सहयोग मिला. आज सफलता पूर्वक स्कूल का संचालन कर रही हूं. इसमें चार शिक्षिकाओं व दो महिलाकर्मियों को भी रोजगार मिला है. क्षेत्र के लोगों का भी सहयोग मिल रहा है.
सफल उद्यमी बनने का था सपना : रेशमा
सूचना क्रांति के दौर में उद्योग जगत में मोबाइल व उससे जुड़े एसेसरीज का नया व्यवसाय उभर कर सामने आया. नया क्षेत्र व नयी चुनौतियों से भरा यह व्यवसाय उद्यमी रेशमा सिन्हा को काफी भाया. अपनी प्रबंधन व मार्केटिंग के हुनर पर जिले में इन्होंने मोबाइल क्रांति ला दी. हर तबके के लोगों के हाथों में मोबाइल होना इनकी व्यावसायिक कुशलता की पहचान है.
जिले में आइबॉल, लावा, विवो सहित मुख्य बाजार की टेलीनॉर एजेंसी की संचालिका रेशमा सिन्हा हैं. साथ ही एक्वागार्ड का प्यूरीफायर व वैक्यूम क्लीनर की एजेंसी भी उनके पास है. जिले के व्यवसाय में इनका बड़ा योगदान है. आयकर विभाग को सालाना 10 लाख रुपये का इंकम टैक्स भुगतान करती है. एसएसएलएनटी कॉलेज, धनबाद से स्नातक रेशमा सिन्हा बताती है कि बचपन से ही एक सफल उद्यमी बनना उनका सपना था.
छोटे शहर में आत्मनिर्भर बनकर अपनी एक पहचान बनाना एक कड़ी चुनौती थी. इसमें पति के साथ पूरे परिवार का सहयोग मिला. शादी के बाद बच्चों की पढ़ाई के लिए पटना में रही. इस दौरान वहां की स्वावलंबी महिलाओं को देख कर बारबार इच्छा जगती थी.
बच्चों के बड़े होने के बाद से अपने शहर को व्यवसाय के लिए चुना. व्यावसायिक क्षेत्र में महिला होने के बावजूद कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना किया. आज जिले के 90 प्रतिशत दुकानदार मेरी और मेरे काम की प्रशंसा करते हैं. शहर के लगभग 40 से 50 युवकों को रोजगार दिया हूं. अपने व्यवसाय में युवतियों को प्राथमिकता देती हूं.

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