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90 फीसदी अनुदान पर मिलेंगे ढैंचा व मूंग के बीज

बिहारशरीफ : जिले के किसानों को ढैंचा व मूंग की खेती हरी खाद के लिए करने पर 90 फीसदी तक अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया जायेगा. जिला कृषि पदाधिकारी ने जिले के सभी प्रखंड कृषि पदाधिकारियों की बैठक में इस आशय का निर्देश दिया. उन्होंने बताया कि एक किसान को दो एकड़ की खेती के […]

बिहारशरीफ : जिले के किसानों को ढैंचा व मूंग की खेती हरी खाद के लिए करने पर 90 फीसदी तक अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया जायेगा. जिला कृषि पदाधिकारी ने जिले के सभी प्रखंड कृषि पदाधिकारियों की बैठक में इस आशय का निर्देश दिया. उन्होंने बताया कि एक किसान को दो एकड़ की खेती के लिए आठ किलो मूंग एवं 20 किलो ढैंचा के बीज दिये जा सकते हैं. सभी प्रखंडों के प्रगतिशील किसान, अनुसूचित जाति के किसान,

बंटाई एवं लीज पर खेती करनेवाले किसानों को इसका लाभ मिलेगा. जिला कृषि पदाधिकारी ने बीएओ को बताया कि गेहूं एवं दलहन फसल की कटाई के उपरांत खाली पड़े खेतों की मृदा स्वास्थ्य जांच के लिए नमूना संग्रह कराने का भी निर्देश दिया. उन्होंने बताया कि 30 मई तक जिले से लगभग 32 हजार नमूना संग्रह करने का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही यह निर्देश दिया कि नमूना ग्रिड से लिया जायेगा. सिंचित भूमि के लिए एक ग्रिड ढाई हेक्टेयर का होगा, जबकि असिंचित भूमि के लिए एक ग्रिड 10 हेक्टेयर का होगा. ग्रिड का निर्धारण जीपीएस आधारित मोबाइल फोन के जरिये लिया जायेगा. नमूना संग्रह के कार्य के लिए किसान सलाहकार, कृषि समन्वयक एवं अन्य कर्मियों की टीम बनायी गयी है.

उम्मीद की जाती है कि खरीफ वर्ष शुरू होने के पहले ज्यादा से ज्यादा किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध करा दिया जायेगा, ताकि किसानों को खेती पर आनेवाली लागत को कम किया जा सके व ज्यादा से ज्यादा किसानों को लाभान्वित किया जा सके.

उन्होंने बताया कि ढैंचा व मूंग की फसल को 25 से 45 दिन बाद खेत में पानी कर जुताई कर मिट्टी को पलट देनी चाहिए, जिससे फसल खेत में पूरी तरह सड़ जाये. इससे किसानों को उस खेत में पर्याप्त मात्रा में यूरिया उपलब्ध हो जाती है. किसानों को ऐसे खेतों में यूरिया या तो डालना ही नहीं पड़ता है

या फिर बहुत कम मात्रा में डालना पड़ है. एक आंकड़े के अनुसार 70 प्रतिशत नाइट्रोजन की पूर्ति ढैंचा हरी खाद का प्रयोग करने से हो जाती है. इसके कारण किसानों को उर्वरक पर खर्च की बचत हो जाती है. साथ ही इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता में भी आशातीत वृद्धि हो जाती है. बैठक में सभी प्रखंडों के कृषि पदाधिकारी, कृषि समन्वयक मौजूद थे.

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