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बीमारी की जांच के लिए ग्लूकोमीटर उपकरण उपलब्ध
जापानी इनसेफ्लाइटिस से प्रभावित रहे बच्चों की बेहतर चिकित्सा के लिए सदर अस्पताल में आठ बेड का एक विशेष वार्ड बनाया गया है. साथ ही भर्ती बच्चों के लिए आवश्यक कई दवाएं भी उपलब्ध करायी गयी है. वार्ड में भर्ती बच्चों के समुचित इलाज में कोई दिक्कत न हो, इसके लिए फिलहाल पांच चिकित्सकों सहित […]
जापानी इनसेफ्लाइटिस से प्रभावित रहे बच्चों की बेहतर चिकित्सा के लिए सदर अस्पताल में आठ बेड का एक विशेष वार्ड बनाया गया है. साथ ही भर्ती बच्चों के लिए आवश्यक कई दवाएं भी उपलब्ध करायी गयी है.
वार्ड में भर्ती बच्चों के समुचित इलाज में कोई दिक्कत न हो, इसके लिए फिलहाल पांच चिकित्सकों सहित कई पारा मेडिकल स्टाफ की डयूटी लगायी गयी है. इस बीमारी को लेकर जिले के सभी अस्पतालों को अलर्ट कर दिया गया है.
सदर अस्पताल में बनाया गया आठ बेडों का स्पेशल वार्ड
पांच चिकित्सकों सहित पारा मेडिकल स्टाफ की लगायी गयी ड्यूटी
बिहारशरीफ : चिकित्सा क्षेत्र में भले ही आज भी बच्चों में होने वाली जापानी इनसेफ्लाइटिस एक अबूझ पहले रही हो , लेकिन इस बीमारी से पीड़ित रहे बच्चों को बेहतर इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जिले का स्वास्थ्य महकमा तैयार हो गया है. इस बीमारी पर काबू पाने और इससे पीड़ित बच्चों की तुरंत चिकित्सा मुहैया कराने को लेकर जिले के सभी अस्पतालों को पूरी तरह अलर्ट कर दिया गया है.
सदर अस्पताल में जापानी इनसेफ्लाइटिस से प्रभावित रहे बच्चों के इलाज के लिए अलग से एक विशेष वार्ड बनाया गया है. फिलहाल इस वार्ड में कुल आठ बेड उपलब्ध हैं लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो यहां बेडों की संख्या और बढ़ायी जा सकती है. इसके अलावे इस वार्ड में भर्ती बच्चों के लिए सदर अस्पताल में पारासीटा मोल व ओआरएस सहित कई आवश्यक दवाएं उपलब्ध करायी जा रही है. भर्ती बच्चों का इलाज तुरंत किया जा सके, इसके लिए फिलहाल यहां पांच चिकित्सकों सहित अन्य पारा मेडिकल स्टाफ की डयूटी लगायी जायेगी.
जांच के लिए ग्लूकोमीटर उपलब्ध
जापानी इनसेफ्लाइटिस बीमारी की जांच के लिए सदर अस्पताल में ग्लूकोमीटर उपकरण उपलब्ध है. इसलिए यहां बनाये गये विशेष वार्ड में भर्ती बच्चों की जांच के बाद सहज ही यह पता चल जायेगा कि वह इस बीमारी से प्रभावित है या नहीं.
बीमारी के यह है लक्षणबुखार, ऐठन, फिट आना, मन भारी होना, शरीर कांपना, अद्र्वनिद्रा, झटका आना आदि.
ऐसे होता है इलाज
जापानी इनसेफ्लाइटिस से प्रभावित बच्चों को सघन चिकित्सा केंद्र में भर्ती कराना चाहिए. वहां बच्चे को कृत्रिम वेंटिलेशन पर रखा जाता है. तत्पश्चात एंटी वायरल और रोधी दवाएं दी जाती है. करीब चार से पांच दिनों तक सघन चिकित्सा केंद्र में रहने के बाद अमूनन मरीज चंगा हो जाता है.
पीड़ित बच्चे की हो सकती है मौत
जापानी इनसेफ्लाइटिस से प्रभावित बच्चों का अगर ससमय इलाज नहीं कराया गया तो उसकी मौत भी हो सकती है. इससे प्रभावित बच्चों के मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन आ जाती है. नतीजतन मस्तिष्क धीरे- धीरे काम करना बंद कर देता है. ससमय इलाज नहीं कराये जाने पर बच्चे कोमा में चले जाते हैं .
मच्छर काटने से होती है यह बीमारी
मेडिकल जगत में हालांकि इस बीमारी के सटीक कारणों का पता नहीं चल सका है. इसलिए यह बीमारी आज भी एक अबूझ पहेली समझी जाती है. बावजूद मेडिकल पेशे से जुड़े एक तबके की मानें तो यह एक वारयल बीमारी है जो कि मच्छरों के काटने से उत्पन्न होता है.
16 कुप्रभावित जिलों में नालंदा भी शामिल
जापानी इनसेफ्लाइटिस से सूबे के करीब सोलह जिले प्रभावित रहे हैं. बताते चलें कि सूबे के सोलह जिलों में शामिल मुजफ्फपुर, वैशाली, गया, दरभंगा, गोपालगंज, जहानाबाद, नवादा, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, सारण, सीवान, वैशाली, पटना के साथ अपना नालंदा जिला भी इस बीमारी से प्रभावित रहा है.
क्या कहते हैं अधिकारी :
‘‘ जापानी इनसेफ्लाइटिस से पीड़ित बच्चों के बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल में आठ बेड का एक स्पेशल वार्ड बनाया गया है. इस वार्ड में बीमारी की जांच के लिए ग्लूकोमीटर सहित आवश्यक दवाएं उपलब्ध करायी गयी है. वार्ड में फिलहाल पांच चिकित्सकों सहित अन्य पारा मेडिकल स्टाफ की डयूटी बांटी गयी है. ’’
डॉ शैलेंद्र कुमार, उपाधीक्षक, सदर अस्पताल, बिहारशरीफ
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