सत्याग्रह. आज शाम छह बजे मुजफ्फरपुर जंकशन पर पहुंचेंगे ‘गांधी’
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चंपारण सत्याग्रह स्मृति समारोह आज से
सत्याग्रह. आज शाम छह बजे मुजफ्फरपुर जंकशन पर पहुंचेंगे ‘गांधी’ चंपारण सत्याग्रह स्मृति समारोह आज से शुरू होगा. राजधानी पटना में इस मौके पर जहां दो दिन का विमर्श होगा, तो मुजफ्फरपुर में हैरिटेज वॉक के साथ सेमिनार का आयोजन किया गया है. गांधी रथ भी आज ही रवाना किया जायेगा, जो बापू के संदेशों […]
चंपारण सत्याग्रह स्मृति समारोह आज से शुरू होगा. राजधानी पटना में इस मौके पर जहां दो दिन का विमर्श होगा, तो मुजफ्फरपुर में हैरिटेज वॉक के साथ सेमिनार का आयोजन किया गया है. गांधी रथ भी आज ही रवाना किया जायेगा, जो बापू के संदेशों को लोगों के बीच फैलायेगा.
मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर में सौ साल पुरानी घटनाओं के नाट्य रूपांतरण के साथ समारोह की शुरुआत होगी. शाम छह बजे मुजफ्फरपुर जंकशन पर एलएस कॉलेज इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ भोजनंदन प्रसाद सिंह ‘गांधी’ के रूप में प्लेटफॉर्म नंबर-1 पर उतरेंगे. उनके साथ ‘राजकुमार शुक्ल’ के रूप में आरडीएस कॉलेज राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ अरु ण कुमार सिंह होंगे. दोनों की अगुवानी ‘जेबी कृपलानी’ के रूप में एलएस कॉलेज राजनीति विज्ञान विभाग के डॉ अवधेश कुमार सिंह ड्यूक हॉस्टल के 25 छात्र के साथ करेंगे. इसमें शहर के लोग भी शरीक होंगे.
20 अप्रैल, 2018 तक चलेगा समारोह
शहर में निकलेगी गांधी की सवारी
रेलवे स्टेशन से भाड़े की बग्घी पर ‘गांधी’, ‘राजकुमार शुक्ल’ व ‘जेबी कृपलानी’ को बैठा कर एलएस कॉलेज लाया जायेगा. बग्घी को घोड़े के बजाये ड्यूक हॉस्ल के 25 छात्र खींचेंगे. रास्ते में मोतीझील ओविरब्रज, कल्याणी चौक, छोटी कल्याणी चौक, टावर चौक, सरैयागंज, प्रधान डाकघर, डीएम आवास, जूरन छपरा चौक, माड़ीपुर चौक, चक्कर चौक, लेनिन चौक, छाता चौक पर विभिन्न स्कूल, कॉलेज व गैर सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधि उनका स्वागत करेंगे.
कल आयेंगे मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंगलवार को मुजफ्फरपुर आयेंगे. शाम पांच बजे उनके यहां पहुंचने का कार्यक्रम है. वह एलएस कॉलेज मैदान में होनेवाले मुख्य समारोह को देखेंगे. इसमें लेजर शो होगा. साथ ही गांधी और विल्सन की वार्ता के गवाह भी बनेंगे. मुख्यमंत्री इस मौके पर मौजूद लोगों को संबोधित भी करेंगे. शाम साढ़े सात बजे मुख्यमंत्री वापस पटना लौट जायेंगे.
एलएस कॉलेज में होगी सभा
एलएस कॉलेज मैदान में नविनर्मित मंच के पास ले जाया जायेगा, जहां परंपरागत तरीके से उनका स्वागत होगा. उसके बाद वहां जनसभा का आयोजन होगा, जिसे पहले ‘जेबी कृपलानी’ व बाद में ‘गांधी’ संबोधित करेंगे. रात्रि 9:20 बजे
एलएस कॉलेज में
जनसभा का समापन होगा. ‘गांधी’ के रात्रि विश्राम की व्यवस्था ड्यूक हॉस्टल के अधीक्षक क्वार्टर में की गयी है.
स्टेशन पर बजेगी रामधुन. हेरिटेज वाक के लिए जंकशन परिसर में जगह-जगह गांधी के विचारों के बैनर व पोस्टर लगाये गये है. ‘गांधी’ के ट्रेन से उतरने के आधा घंटे पहले ही जंकशन पर रामधुन बजने लगेगी. रेलवे प्रबंधन ने 15 अप्रैल को हेरिटेज वाक के कलाकारों को मोतिहारी जाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने का भी फैसला लिया है.
आज से निकलेगा ‘गांधी रथ’. महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए 10 अप्रैल से जिला मुख्यालय से ‘गांधी रथ’ निकलेगा. यह जिले के 16 प्रखंडों के सभी 385 पंचायतों व शहरी क्षेत्र के सभी 49 वार्ड से होकर गुजरेगी. यह अभियान पूरे एक साल तक चलेगा. ‘गांधी रथ’ से गांधी के जीवन पर आधारित एक घंटे या सवा घंटे की डॉक्यूमेंटरी फिल्म दिखायी जायेगी. ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्येक पंचायत में चार स्थलों व शहरी क्षेत्र में प्रति वार्ड एक स्थल पर यह डॉक्यूमेंटरी फिल्म दिखायी जायेगी. अभियान की सफलता के लिए जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर संचालन समितियों का गठन किया गया है.
राज कुमार शुक्ल ने मेरा दिल जीत लिया
चंपारण राजा जनक की भूमि है. जिस तरह चंपारण में आम के वन हैं, उसी तरह 1917 में वहां नील के खेत थे. चंपारण के किसान अपनी ही जमीन के 3/20 भाग में नील की खेती उसके असल मालिकों के लिए करने को कानून से बंधे हुए थे. इसे वहां तीन कठिया कहा जाता था. बीस कट्ठे का वहां एक एकड़ था और उसमें से तीन कट्ठे जमीन में नील बोने की प्रथा को तीन कठिया कहते थे. मुझे यह स्वीकार करना चाहिये,
राज कुमार शुक्ल
वहां जाने से पहले मैं चंपारण का नाम तक नहीं जानता था. नील की खेती होती है, इसका ख्याल भी नहीं के बराबर था. नील की गोटियां मैंने देखी थीं, पर वे चंपारण में बनी हैं और उनके कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं थी.
राजकुमार शुक्ल नाम चंपारण के किसान थे. उन पर दुख पड़ा था. यह दुख उन्हें अखरता था, लेकिन अपने इस दुख के कारण उनमें नील के इस दाग को सबके लिए धो डालने की तीव्र लगन पैदा हो गयी थी, जब मैं लखनऊ कांग्रेस में गया, तो वहां इस किसान ने मेरा पीछा पकड़ा. वकील बाबू आपको सब हाल बतायेंगे- वाक्य वे कहते जाते थे और मुझे चंपारण आने का निमंत्रण भी देते जाते थे.
वकील बाबू से मतलब था, चंपारण के मेरे प्रिय साथी, बिहार के सेवा जीवन के प्राण ब्रज किशोर बाबू से. राजकुमार शुक्ल उन्हें मेरे तंबू में लाये. उन्होंने काले आलपाका की अचकन, पतलून वगैरा पहन रखा था. मेरे मन पर उनकी कोई अच्छी छवि नहीं पड़ी. मैंने मान लिया कि वे भोले किसानों को लूटने वाले कोई वकील साहब होंगे.
मैंने उनसे चंपारण की थोड़ी कथा सुनी. अपने रिवाज के अनुसार मैंने जवाब दिया, खुद देखे बिना इस विषय पर मैं कोई राय नहीं दे सकता. आप कांग्रेस में बोलियेगा. मुझे तो फिलहाल छोड़ ही दीजिये. राजकुमार शक्ल को कांग्रेस की मदद की तो जरूरत थी ही. ब्रज किशोर बाबू कांग्रेस में चंपारण के बारे में बोले और सहानुभूति सूचक प्रस्ताव पास हुआ.
राज कुमार शुक्ल प्रसन्न हुए. पर इतने से ही उन्हें संतोष न हुआ. वे तो खुद मुझे चंपारण के किसानों के दुख बताना चाहते थे. मैंने कहा, अपने भ्रमण में मैं चंपारण को भी सम्मिलित कर लूंगा और एक दो दिन वहां ठहरूंगा. उन्होंने कहा, एक दिन काफी होगा. नजरों से देखिये तो सही. लखनऊ से मैं कानपुर गया था. वहां भी राज कुमार शुक्ल हाजिर ही थे. यहां से चंपारण बहुत नजदीक है. एक दिन दे दीजिए. अभी मुझे माफ कीजिए. पर मैं चंपारण आने का वचन देता हूं. यह कहकर ज्यादा बंध गया.मैं आश्रम गया, तो राजकुमार शुक्ल वहां भी मेरेे पीछे लगे ही रहे. अब तो दिन मुकर्रर कीजिये. मैंने कहा, मुझे फलां तारीख को कलकत्ते जाना है. वहां आइये और मुझे ले जाइये.
कहां जाना, क्या करना और क्या देखना, इसकी मुझे कोई जानकारी न थी. कलकत्ते में भूपेन बाबू के यहां मेरे पहुंचने के पहले उन्होंने वहां डेरा डाल दिया था. इस अनगढ़ परंतु निश्चयवान किसान ने मुझे जीत लिया. 1917 के आरंभ में कलकत्ते से हम दो व्यक्ति रवाना हुए. दोनों की एकसी जोड़ी थी. दोनों किसान जैसे ही लगते थे. राजकुमार शुक्ल जिस गाड़ी में ले गये, उस पर हम दोनों सवार हुए. सबेरे पटना में उतरे. पटना की मेरी यह पहली यात्रा थी. वहां किसी के साथ मेरा ऐसा परिचय नहीं था, जिससे उनके घर उतर सकूं. मैंने यह सोच लिया था कि राज कुमार शुक्ल अनपढ़ किसान हैं, तथापि उनका कोई वसीला तो होगा ही. ट्रेन में मुझे उनकी कुछ अधिक जानकारी मिलने लगी. पटना में उनका परदा खुल गया. राज कुमार शुक्ल की बुद्धि निदार्ेष थी. उन्होंने जिन्हें अपना मित्र मान रखा था, वे वकील उनके मित्र नहीं थे. बल्कि राज कुमार शुक्ल उनके आश्रित जैसे थे. किसान मुविक्कल और वकील के बीच चौमासे की गंगा के चौड़े पाट के बराबर अंतर था.
मुझे वे राजेंद्र बाबू के घर ले गये. राजेंद्र बाबू पूरी अथवा और कहीं गये थे. बंगले पर एक दो नौकर थे. मेरे साथ खाने की कुछ सामग्री थी. मुझे थोड़ी से खजूर की जरूरत थी. बेचारे राज कुमार शुक्ल बाजार से ले आये.
पर किसानों में तो छुआछूत का बहुत कड़ा रिवाज था. मेरी बाल्टी के पानी के छींटे नौकर को भ्रष्ट करते थे. नौकर को क्या पता कि मैं किस जाति का हूं. राज कुमार शुक्ल ने अंदर के पखाने का उपयोग करने को कहा. नौकर ने बाहर के पखाने की ओर इशारा किया. मेरे लिए इसमें परेशान या गुस्सा होने का कोई कारण न था. इस प्रकार के अनुभव कर करके मैं बहुत पक्का हो गया था. नौकर तो अपने धर्म का पालन कर रहा था और राजेंद्र बाबू के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर रहा था. इस मनोरंजक अनुभवों के कारण, जहां राज कुमार शुक्ल के प्रति मेरा आदर बढ़ा, वहां उनके विषय में मेरा ज्ञान भी बढ़ा. पटना से लगाम मैंने अपने हाथ में ले ली.
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