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महिला के खिलाफ हिंसा को हथियार बनाते हैं पुरुष

मुजफ्फरपुर : समाज ने पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग मानक तय किये हैं. जब कोई पुरुष या महिला उस मानक को तोड़ते हैं, तो सहसा अजीब सा महसूस होता है. महिलाएं यदि समाज के तय मानक से इतर व्यवहार या काम करती हैं, तो पुरुषसत्तात्मक समाज हिंसा को हथियार बनाता है. केयर इंडिया सर्वे […]

मुजफ्फरपुर : समाज ने पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग मानक तय किये हैं. जब कोई पुरुष या महिला उस मानक को तोड़ते हैं, तो सहसा अजीब सा महसूस होता है. महिलाएं यदि समाज के तय मानक से इतर व्यवहार या काम करती हैं, तो पुरुषसत्तात्मक समाज हिंसा को हथियार बनाता है. केयर इंडिया सर्वे के अनुसार, 56% पुरुषों व 28% बच्चों ने यह स्वीकार किया है कि उनके घरों में महिलाओं को शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है. यह सर्वे मुजफ्फरपुर व पूर्वी चंपारण जिले में भी हुआ था.

ये बातें जेंडर रिसर्च सेंटर के मुख्य परामर्शी आनंद माधव ने कहीं. वे प्रभात खबर के पत्रकारों के लिए मिठनपुरा के द पार्क होटल में आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे.

समाज कल्याण विभाग के महिला विकास निगम के उपक्रम जेंडर रिसर्च सेंटर (जेआरसी) की ओर से आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का गुरुवार को पहला दिन था. सेक्स व जेंडर काे परिभाषित करते हुए आनंद ने कहा कि सेक्स एक बायोलॉजिकल टर्म है, वहीं जेंडर महिलाओं व पुरुषों के लिए समाज द्वारा निर्धारित मान्यता. कार्यशाला की शुरुआत में एमइ2 फिल्म्स के बैनर तले व श्रुति आनंदिता वर्मा के निर्देशन में बनी 16 मिनट के डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘भोर’ दिखायी गयी. इसमें शारीरिक, मानसिक व घर में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की मनोस्थिति के बारे में बताया गया. साथ ही पुरुषों के दोहरे चरित्र का भी चित्रण किया गया.
कार्यशाला के मुख्य अतिथि प्रमंडलीय आयुक्त अतुल प्रसाद ने कहा कि महिला उत्पीड़न वास्तव में मानसिकता से जुड़ा मामला है. समाज पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग मानदंड रखता है. उन्होंने हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक सर्वे का जिक्र करते हुए कहा कि एक ही बायोडाटा छात्रों के दो अलग-अलग ग्रुप को दिया गया. अंतर सिर्फ इतना था कि एक को बताया गया कि यह पुरुष का बायोडाटा है, जबकि दूसरे को महिला का. जिस ग्रुप को पुरुष का बायोडाटा बताया गया, उसमें सिर्फ गुण दिखायी दिये. वहीं दूसरे ग्रुप ने संबंधित महिला को अतिमहत्वाकांक्षी बताया. समाज की सोच बदलने के लिए उन्होंने मीडिया से आगे आने की अपील की. धन्यवाद ज्ञापन प्रभात खबर के स्थानीय संपादक शैलेंद्र कुमार ने किया.
महिलाएं भी खुल कर नहीं आती हैं सामने. टीआइएसएस की फैक्लटी सांदली ठाकुर ने संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से हाल ही में महिला हिंसा के संबंध में जारी रिपोर्ट का जिक्र करते
हुए कहा कि हिंसा व उत्पीड़न की
शिकार महिलाएं खुल कर सामने नहीं आतीं. इसका लाभ असामाजिक
तत्व उठाते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक तीन में से एक महिला शारीरिक हिंसा
की शिकार होती है. शारीरिक हिंसा के कारण जिन तीन महिलाओं की मौत होती है, उनमें से दो के साथ उनके घर में ही हिंसा होती है. हिंसा की शिकार महिलाओं में से 40% से भी कम महिलाएं मदद मांगती हैं. 10% से कम महिलाएं पुलिस के पास जाती हैं.
महिला से ‘रेप’ इज्जत पर हमला कैसे! सांदली ठाकुर ने समाज की मानसिकता पर सवाल उठाये. उन्होंने कहा कि महिलाओं को हमेशा इज्जत से जोड़ कर देखा जाता है. यही कारण है कि जब कोई बाहरी तत्व कहीं हमला करता है, तो सबसे पहले वहां की महिलाओं को अपना शिकार बनाता है. किसी महिला के साथ रेप होने का मतलब मान लिया जाता है उस परिवार की इज्जत चली गयी. महिला को इज्जत मानने का ही नतीजा है कि उसका दर्द उसे जीवन भर सहना पड़ता है. समाज में उसका पुनर्वास मुश्किल हो जाता है. रेप से इज्जत का क्या संबंध? इसे महज एक एक्सिडेंट माना जाना चाहिए. इसके लिए आंदोलन भी शुरू हो चुका है.
जेंडर आधारित बजट की जरूरत. सांदली ठाकुर ने कहा कि एक ही परिवार की महिला व पुरुषों की आवश्यकता अलग-अलग होती है. महिलाएं घर में ही रह कर अलग-अलग तरह के काम करती हैं. लेकिन, उन्हें काम के बदले कोई भुगतान नहीं किया जाता. इस कारण समय के साथ वह कमजोर होती जाती हैं. ऐसे में जरूरत है जेंडर आधारित बजट बनाने की. वित्त विभाग इसके लिए पहल कर रही है. सरकार ने कई योजनाएं सिर्फ महिलाओं के लिए बनायी हैं. इस पर अमल भी हो रहा है.
जेंडर ओरिएंटेशन पर आयोजित कार्यशाला के पहले दिन बोले वक्ता
प्रभात खबर के मुजफ्फरपुर, बेतिया, समस्तीपुर व सीतामढ़ी के पत्रकारों ने लिया हिस्सा
समाज कल्याण विकास के महिला विकास निगम के उपक्रम जेंडर रिसर्च सेंटर का है आयोजन
16 मिनट की डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘भोर’ का हुआ प्रदर्शन
श्रुति फिल्मों से पेश कर रहीं समाज की तसवीर
महिला उत्पीड़न व लिंग भेद आज के समय की गंभीर समस्या है. इसे जागरूकता से ही दूर किया जा सकता है. लेकिन इसके पहले पुरुषवादी सोच को बदलना होगा. महिलाओं की वास्तविक स्थिति समझनी होगी. उनकी क्षमता को कमतर आंकने के बजाये उसे बेहतर करने का माहौल देना होगा. यह कहना था टीवी धारावाहिकों से अपना मुकाम बना चुकी सूबे की चर्चित फिल्मकार व निर्देशक श्रुति आनंदिता वर्मा का. उन्होंने कहा कि बिहार की बेटी होने के नाते उन्होंने महिला उत्पीड़न पर शॉर्ट फिल्म बनायी थी
. इसे 2015 में बेस्ट शॉर्ट फिल्म व बेस्ट निर्देशन का नेशनल अवार्ड मिला था. फिल्म का निर्देशन पति अमिताभ वर्मा को दिया गया. उन्होंने बताया कि वे पति के साथ महिला उत्पीड़न शॉर्ट फिल्मों का निर्माण कर रही हैं. फिल्मकार श्रुति ने कहा कि वे फिल्मों के जरिये लोगों को सच्चाई से अवगत कराती हैं व उनसे संवाद करती हैं. उन्होंने कहा कि बिहार में जीविका, विद्युत व शिक्षा विभाग के लिए भी उन्होंने काम किये हैं. इसका श्रेय ऊर्जा विभाग के एमडी प्रत्यय अमृत को जाता है.
उन्होंने मेरे काम को समझा व इसके लिए मौका दिया. श्रुति ने कहा कि वे सामाजिक मुद्दों पर 13 शॉर्ट फिल्में बना रही हैं. इसके अलावा आर्मी पर केंद्रित एक फीचर फिल्म का भी निर्माण कर रही हैं.
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का 160 दिनों में निबटारा
जेंडर रिसर्च सेंटर के फैकल्टी अविनाश कुमार ने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न व कानूनी प्रावधान पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि प्रत्येक सरकार व गैर सरकारी कार्यालयों में महिला उत्पीड़न से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए अांतरिक परिवाद समिति (आइसीसी) का गठन अनिवार्य है. इसकी चेयरपर्सन महिला होगी.
वहीं सदस्यों में कार्यालय की एक महिला, दो पुरुष व एक एनजीओ के सदस्य होंगे. आइसीसी के समक्ष सिर्फ महिलाकर्मी ही शिकायत दर्ज करा सकती है. शिकायत मिलने के 90 दिनों के अंद समिति सुनवाई पूरी करेगी. अगले 10 दिनों के अंदर रिपोर्ट देगी. रिपोर्ट देने के 60 दिनों के अंदर प्रबंधन को मामले में कार्रवाई करनी होगी. यदि कोई महिला झूठी शिकायत करती है, तो उसे भी वहीं सजा मिलेगी, जो किसी आरोपित को मिलती. उन्होंने कहा कि महिलाकर्मी आइसीसी के समक्ष शिकायत के साथ-साथ पुलिस को भी शिकायत कर सकती है.

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