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बेटी की शादी करनी होती, तो पीएम समझ पाते पिता का दर्द

दोपहर एक बजे खाली हुआ कैश, मुश्ताक का टूटा धैर्य मुजफ्फरपुर : आप ये सारा रुपया ले लीजिए. शादी में जितनी उधारी है सब चुका दीजिए. मेरे पास इतना हिम्मत नहीं है कि दो हजार के लिए पूरा दिन बैंक में खड़ा रहूं. सात बजे से लाइन में लगा हूं. दोपहर के एक बज गये […]

दोपहर एक बजे खाली हुआ कैश, मुश्ताक का टूटा धैर्य

मुजफ्फरपुर : आप ये सारा रुपया ले लीजिए. शादी में जितनी उधारी है सब चुका दीजिए. मेरे पास इतना हिम्मत नहीं है कि दो हजार के लिए पूरा दिन बैंक में खड़ा रहूं. सात बजे से लाइन में लगा हूं. दोपहर के एक बज गये हैं, अब आप कहते हैं कि पैसा खत्म हो गया है. क्या तमाशा लगा कर रखा है. हर बार कह रहे हैं कैश चल दिया है.
कब तक पहुंचेगा, बताइए. परिवार के कितने लेागों को लाइन लगवायें बताइए. आक्रोश के साथ लाचारगी का यह मिला-जुला स्वर मझौलिया के मुश्ताक अहमद का था. वे हेड पोस्ट ऑफिस में क्लर्क से जोर-जोर से चिल्ला कर अपनी बात कह रहे थे. मुश्ताक ने कहा कि बेटी की शादी में कितनी परेशानी होती है,
वह पीएम क्या जाने. बेटी की शादी करते तो समझते कि क्या-क्या जुगाड़ करना पड़ता है. यहां विभिन्न काउंटरों पर कतारबद्ध दो सौ से अधिक महिला व पुरुषों ने मुश्ताक की बात पर सहमति जतायी. काउंटर क्लर्क ने भी कहा, सर हम समझ रहे हैं आपकी परेशानी, लेकिन हम क्या करें. मेरे पास रुपया होता तो तुरंत आपका काम कर देता. लेकिन जब तक कैश नहीं आता है, मेरे हाथ भी बंधे हैं. आक्रोशित मुश्ताक ने कहा कि 11 को बेटी की शादी थी. बड़े नोट बंद होने की घोषणा के बाद रिश्तेदारों ने एक-दो हजार से मदद की. टेंट, सामियाना, लाइट साउंड सहित अन्य सामान का बकाया है. अब वे तगादा कर रहे हैं. हम क्या करें. कितने दिन की मोहलत लें.

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