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बच्चों को स्मार्ट बनाने के नाम पर भी फीस !

बच्चों को स्मार्ट बनाने के नाम पर भी फीस ! शिक्षा का मंदिर या मंडी: -प्राइवेट स्कूलों के जाल में छटपटा रहे अभिभावक -मनमानी शुल्क वृद्धि व पुस्तकों की कीमत से संकट-आरटीइ के निर्देशों की बेखौफ उड़ा रहे है धज्जियां संवाददाता, मुजफ्फरपुर स्कूल काे शिक्षा का मंदिर कहा जाता है, लेकिन यह मिथक बनता जा […]

बच्चों को स्मार्ट बनाने के नाम पर भी फीस ! शिक्षा का मंदिर या मंडी: -प्राइवेट स्कूलों के जाल में छटपटा रहे अभिभावक -मनमानी शुल्क वृद्धि व पुस्तकों की कीमत से संकट-आरटीइ के निर्देशों की बेखौफ उड़ा रहे है धज्जियां संवाददाता, मुजफ्फरपुर स्कूल काे शिक्षा का मंदिर कहा जाता है, लेकिन यह मिथक बनता जा रहा है. जिस तरह चमक-दमक दिखाकर अभिभावकों को लूटने की होड़ मची है उससे स्कूल कैंपस मंदिर की जगह मंडी बन गये हैं. जब मन चाहा फीस बढ़ा दिये, जब जी में आया नयी सुविधा के नाम पर वसूली शुरू कर दी. स्कूल में ही पुस्तक व स्टेशनरी के साथ-साथ यूनीफॉर्म, जूता सहित अन्य सामान भी मिलने लगा है. खास बात यह है कि प्राइवेट स्कूल संचालक खुलेआम आरटीइ के निर्देशों की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं. प्रशासन व विभाग के अधिकारी बेपरवाह है, जिससे उनका हौसला बढ़ा हुआ है. प्राइवेट स्कूलों की चकाचौंध के चलते हर अभिभावक अपने बच्चे का दाखिला कराने वहीं कराने की सोंचता है. भले इसके लिये घरेलू खर्च में कटौती करनी पड़े, या फिर किसी से उधार में पैसे लेने पड़े. अभिभावकों की इसी ललक का फायदा स्कूल संचालक उठाते हैं और तरह-तरह उन्हें अपने जाल में फंसाने की कोशिश करते हैं. हर साल फीस में मनमानी बढ़ोत्तरी तो होती ही है, फीस स्ट्रक्चर भी सबकी समझ में नहीं आता. वहीं पुस्तकों की बढ़ती कीमत भी मुश्किल में डाल रही है. गोशाला रोड निवासी शैलेंद्र कुमार ने गुरुवार को अपने बच्चे का एडमिशन एक नामचीन स्कूल में कराया. फीस की रसीद हाथ में आयी तो कई चीजें उनकी समझ से बाहर थी. अन्य शुल्क के साथ ही स्मार्ट क्लासेज फीस का भी जिक्र था, जिससे वे हैरान दिखे. बताया कि फीस में भी हर महीने दो सौ और वाहन चार्ज में डेढ़ सौ रुपये की बढ़ोत्तरी कर दी गयी है. पत्र जारी करने तक सिमटा प्रशासन प्रशासन व शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर आरटीइ के निर्देश लागू कराने की जिम्मेदारी है, लेकिन उनकी भूमिका केवल पत्र जारी करने तक ही सिमट कर रह जाती है. हर साल सत्र शुरू होने से पहले अभिभावक आवाज उठाते हैं और अधिकारी दिशा-निर्देश जारी करते हैं, लेकिन नतीजा कोई नहीं निकलता. खींचतान में ही एडमिशन का वक्त आ जाता है और अभिभावक लाचारी में स्कूल की मुंहमांगी फीस भरने को तैयार हो जाते हैं. काेई आवाज उठाता है तो सीधा जवाब मिलता है कि अपने बच्चे को दूसरी जगह ले जाओ. हर साल बदल जाता है सेलेबस जवाहर रोड निवासी अभय कुमार के दो बेटे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं. बड़ा तीसरी कक्षा में गया और छोटा दूसरी कक्षा में. पिछले सत्र में दोनों इसी स्कूल में थे. अभय का कहना है कि अगर सेलेबस चेंज नहीं होता तो बड़े बेटे की किताब छोटे के काम आ जाती. अब दोनों के लिये नयी पुस्तकें खरीदनी पड़ी. दरअसल कोई निगरानी न होने के चलते प्राइवेट स्कूलों का सेलेबस हर साल बदल जाता है, जिससे अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाती है. अगर एक ही परिवार के दो बच्चे एक कक्षा के अंतर पर पढ़ते हों, तब भी उन्हें फायदा नहीं मिलता.

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