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भारतीयता को महात्मा गांधी ने गहराई से समझा

मुजफ्फरपुर : भारतीयता को महात्मा गांधी ने जितनी गहराई से समझा, वह अद्वितीय है. भारतीय चिंतन में पृथ्वी को माता, आकाश को पिता और तमाम जीवधारियों और वनस्पतियों को सहयोगी माना है. भारतीयता एक परंपरा है, नदी की तरह निरंतर प्रवाहमान है. यह सतत है, स्वच्छ है. इन बातों को गांधी ने आगे बढ़ाया. यह […]

मुजफ्फरपुर : भारतीयता को महात्मा गांधी ने जितनी गहराई से समझा, वह अद्वितीय है. भारतीय चिंतन में पृथ्वी को माता, आकाश को पिता और तमाम जीवधारियों और वनस्पतियों को सहयोगी माना है.
भारतीयता एक परंपरा है, नदी की तरह निरंतर प्रवाहमान है. यह सतत है, स्वच्छ है. इन बातों को गांधी ने आगे बढ़ाया. यह बातें शनिवार को आरडीएस कॉलेज में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बीआरयू बिहार विवि के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो महेंद्र मधुकर ने कहीं.
उन्होंने कहा, भारतीय संस्कृति सतत संघर्ष से बनी है. इसे गांधी ने बखूबी समझा. गांधी ने लोगों के नवोत्थान का काम किया. गांधी ने प्रकृति से सामंजस्य और साहचर्य की संस्कृति को बढ़ाया.
गांधी ने सब कुछ प्रेम और करुणा के तत्वों को केंद्र में रखकर किया. इसी के बल पर भारत की विविधता को एक सूत्र में बांधा. गांधी ने धर्म को कर्म से जाेड़ा और उसे धारण करने पर बल दिया. अध्यक्षता आरडीएस कॉलेज के प्रो. व्यास मिश्रा ने की. संस्थान के सचिव अरविंद वरुण ने विषय प्रवेश कराया. उन्होंने कहा, ईश्वर ही सत्य है की अवधारणा को गांधी ने आगे बढ़ाया. मंच संचालन डॉ अरुण कुमार सिंह ने किया.
इस मौके पर संस्थान के संरक्षण लक्षणदेव प्रसाद सिंह, प्रभात कुमार, कामता प्रताप, इंदिरा कुमारी, डॉ श्याम किशोर सिंह, डॉ सत्येंद्र प्रसाद सिंह, रमण कुमार, डॉ एमएन रजवी, रमेश चंद्र, भोजनंदन प्रसाद सिंह, डॉ कहकशां, सत्य प्रकाश, डॉ संजय सुमन, विजय कुमार जायसवाल, शैलेंद्र कुमार सिंह, साेनू सरकार, विनय प्रशांत, रमेश कुमार, डीके विद्यार्थी, डॉ ममता कुमार, अनिल शंकर ठाकुर, रणजीत कुमार, अनिल कुमार, मुद्रिका सिंह ने विचार रखे.

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