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किताब के पैसे से सूद कमा रहा शिक्षा विभाग

मुजफ्फरपुर: शिक्षा विभाग किताब और पत्र-पत्रिकाओं के पैसे से सूद कमा रहा है. कॉरपस फंड के पैसे पर मिले सूद के पैसे से पुस्तक और पत्र-पत्रिकाएं खरीदनी थी. लेकिन, अधिकारियों ने इस पैसे का उपयोग नहीं किया. पैसा बैंक में पड़ा हुआ हैं. इस राशि से खरीदी गई पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाओं को स्कूलों के पुस्तकालय […]

मुजफ्फरपुर: शिक्षा विभाग किताब और पत्र-पत्रिकाओं के पैसे से सूद कमा रहा है. कॉरपस फंड के पैसे पर मिले सूद के पैसे से पुस्तक और पत्र-पत्रिकाएं खरीदनी थी. लेकिन, अधिकारियों ने इस पैसे का उपयोग नहीं किया. पैसा बैंक में पड़ा हुआ हैं. इस राशि से खरीदी गई पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाओं को स्कूलों के पुस्तकालय में रखनी थी. लेकिन अधिकारियों के कारनामा के कारण ऐसा नहीं हुआ. यह कारनामा जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में हुआ है. इस मामले का खुलासा महालेखाकार की अॉडिट रिपोर्ट 2014-15 से हुआ है.

ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि निदेशक शोध और प्रशिक्षण ने 26 मई 2004 को जिला शिक्षा पदाधिकारी को 11.50 लाख रुपये आवंटित किया था. निदेशक ने निर्देश दिया था कि जिले में स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में कॉरपस फंड की राशि को कम से कम तीन वर्षों के लिए सावधि जमा के अंतर्गत रखा जायेगा. बैंक को निर्देश जायेगा कि मैच्युरिटी पर स्वत: सावधि जमा का नवीकरण कर दिया जायेगा.

पुन: वर्ष 2004-2005 में अवशेष राशि 8.50 लाख रुपये बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से एक मार्च 2005 के माध्यम से जिला शिक्षा पदाधिकारी को उपलब्ध कराया जायेगा. जांच में पाया गया कि 11.50 लाख रुपये 31 जुलाई 2004 से 31 जुलाई 2007 की अवधि के लिए और 8.50 लाख रुपये दिनांक 19 अप्रैल 2005 से 19 अप्रैल 2008 अवधि के लिए सावधि जमा की किया गया. जांच में पाया कि जिला शिक्षा पदाधिकारी उस सूद की राशि का व्यय पुस्तकालय के लिए पुस्तक और पत्र-पत्रिकाओं में नहीं किया. दोनों सावधि जमा पर दिनांक 10 दिसंबर 2013 तक प्राप्त राशि का सूद 8.80 लाख रुपये व्यर्थ बैंक में पड़े हुए हैं.

महालेखाकार की लेखा परीक्षा ने विभाग से पूछा कि जिला स्तरीय समिति का गठन लेखा परीक्षा की तिथि तक क्यों नहीं किया जा सका. जिससे सूद की राशि का उपयोग पुस्तकालय के लिए पुस्तक व पत्र-पत्रिकाओं के लिए नहीं किया जा सका. इस कारण यह योजना फेल कर गया. इसके जवाब में विभाग ने कहा कमेटी का गठन नहीं होने के कारण व विभागीय निर्देश प्राप्त नहीं होने के कारण राशि पड़ी हुई है. इस जवाब को महालेखाकार ने खारिज कर दिया.

माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से 31 मार्च 2003 को जारी अधिसूचना के द्वारा बिहार सार्वजनिक पुस्तकालय कॉरपस फंड नियमावली 2003 बनायी गई थी. 11 वें वित्त आयोग की अनुशंसा पर 37 जिलों को 20 लाख रुपये की दर से पैसा दिया गया था. इस राशि से प्रति वर्ष प्राप्त होने वाले ब्याज की राशि का उपयोग पुस्तकालय के लिए नई पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं की खरीदारी के लिए किया जाना था. ताकि पाठकों को नई पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने के लिए मिल सके. कॉरपस फंड के सूद से प्राप्त आय का 80 फीसदी पुस्तक और 20 फीसदी पत्र-पत्रिकाओं की खरीदारी पर खर्च किया जाना था. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

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