इसके लिए तना छिद्रक (बेटोसेरा रिफोर्माकुलाटा) व बार्क विटिल (क्राइफाइलस स्किार्पिकोलिसा) जिम्मेवार हैं, जो हवा व कीट के जरिये पेड़ों तक पहुंच रही है. वैज्ञानिकों का कहना है, आम से जिस तरह से इस बीमारी ने धावा बोला है, उससे आम की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है.
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फलों के राजा आम पर फफूंद-कीटों का हमला
मुजफ्फरपुर: फलों का राजा ‘आम’ गंभीर रोग से ग्रस्त हो रहा है. इसकी पत्तियां सूख रही है. पतले व मोटे तने सड़कर गिर रहे हैं. पेड़ से लस्सा गिर रहा है. ये ऐसा रोग है, जो आम के पेड़ों को ही समाप्त करनेवाला है. वैज्ञानिकों के शोध में ये बात सामने आयी है कि दो […]
मुजफ्फरपुर: फलों का राजा ‘आम’ गंभीर रोग से ग्रस्त हो रहा है. इसकी पत्तियां सूख रही है. पतले व मोटे तने सड़कर गिर रहे हैं. पेड़ से लस्सा गिर रहा है. ये ऐसा रोग है, जो आम के पेड़ों को ही समाप्त करनेवाला है. वैज्ञानिकों के शोध में ये बात सामने आयी है कि दो प्रकार के कीट व फफूंद इस बीमारी को फैला रहे हैं.
यह रिपोर्ट राजेंद्र कृषि विवि पूसा व कृषि विज्ञान केंद्र सरैया के वैज्ञानिक हेम चंद्र चौधरी, डॉ एके सिंह, डॉ केके सिंह व सुनीता कुमारी ने बनायी है. शोध के दौरान पता चला है कि लेसियोडिप्लोडिया थियोबोर्नी एक प्रकार का फफूंद है, जो इस रोग को फैलाने के लिए जिम्मेवार है. वैज्ञानिकों का कहना है कि आम का पौधा को विकास के कई चरणों से गुजरता है. इसमें कई तरह की बीमारियां होने का खतरा होता है. आम के लिए गमोसिस रोग गंभीर समस्या के रूप में उभरा है.
सिकुड़ रही पत्तियां, सड़ रही डाली
यह रोग तो अमूमन आम उत्पादक सभी राज्यों में तेजी से पनपा है, लेकिन बिहार में आम के पौधों के देखरेख में कोताही की वजह से गंभीर रूप से सामने आया है. इसका प्रकोप होने पर पहले आम की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं. पत्ते गिरने लगते हैं. तना व पेड़ की डालियों के छिलके फटने लगते हैं. इसके बाद आम के तना से लस्सा जैसा रिसाव होने लगता है. भोजन व पोषक तत्वों को पहुंचाने वाले उत्तक बंद हो जाते हैं. इसके बाद पौधा सूखा जाता है.
बीमारी लगने के बाद प्रारंभिक दौर में शाखाओं का अगला हिस्सा सूखने लगता है. तना व शाखा के ग्रसित भाग के छिलके का रंग बदल जाता है. यह बीमारी पेड़ की पतली टहनी से से शुरू होती है और तने की ओर बढ़ने लगती है. इस दौरान लगभग छह माह में पौधा सूख जाता है.
कीटों का जारी है हमला
तना छिद्रक (बेटोसेरा रिफोर्माकुलाटा). ये कीट आम के पेड़ में फरवरी से अक्तूबर तक नुकसान पहुंचाता है. इसी समय में यह रोग फैलाने वाले सूक्ष्म जीव को ग्रसित पौधा से स्वस्थ पौधा तक पहुंचाता है. यह कीट पेड़ के छाल के नीचे के उत्तक को चट कर रहा है, जिसकी वजह से पौधा कमजोर होता जाता है. इसके प्रकोप के बाद पौधों की पत्ति.ों में पानी पहुंचना बंद हो जाता है और पेड़ सूखने लगता है.
बार्क विटिल (क्राइफाइलस स्किार्पिकोलिस). इससे संक्रमित पेड़ की शाखाओं के नजदीक से जांच करने पर उनमें छोटे-छोटे छिद्र दिखाई देते हैं. इसमें बार्क विटिल अपने बच्चे छोड़ देते हैं, जो इस रोग को आगे बढ़ाते हैं.
आम में विटामिन की भरमार
आम आर्थिक दृष्टिकोण से एशिया का सबसे स्वादिष्ट फल है. इसमें प्रचुर मात्र में विटामिन ए व सी पाया जाता है. विश्व में आम उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है. आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार,कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु में आम की व्यवसायिक खेती है. लोग अलफांसो, वैंगलोरा, बैंगनापल्ली, दशहरी, फजली, सुकुल, लंगरा, नीलम, चौसा, स्वर्णरेखा, सिपिया, कृष्णभोग, बंबई ग्रीन, जरदालु, सफेद मालदा जैसे आम पसंद करते हैं.
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