मुजफ्फरपुर: घरों में प्रयोग होने वाला रसोई गैस या व्यावसायिक गैस सिलिंडर एक्सपायर नहीं होता है, बल्कि रिजेक्ट होता है. इसको लेकर आम लोगों में गलतफहमी है. नये गैस सिलिंडर की वैलिडिटी दस साल होती है. पहले यह सात साल तक थी. दस साल के बाद उसकी जांच होती है, फिर वह सिलिंडर अगले पांच साल के लिए वैलिड हो जाता है. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के नए सकरुलर में इसका जिक्र है. उक्त जानकारी इंडियन ऑयल के शेरपुर स्थित गैस रिफिलिंग प्लांट के वरिष्ठ प्रबंधक कृष्ण मोहन ठाकुर ने दी.
रिजेक्ट सिलिंडर एजेंसी को लौटाएं
प्रबंधक ने बताया कि केवल शेरपुर प्लांट में हर माह करीब 30,000 गैस सिलिंडर की टेस्टिंग होती है. वहीं हर माह 10 से 12 हजार नये सिलिंडर यहां आते हैं. सेंटर में प्रति दिन करीब 20 हजार सिलिंडर में रिफिलिंग होती है. ग्राहकों को पुराना सिलिंडर नहीं दिये जाते हैं. अगर गलती से किसी के घर रिजेक्टेड सिलिंडर पहुंचता है तो उसे एजेंसी को लौटा दें. एजेंसी उसे लेने से इंकार नहीं कर सकती. किसी प्रकार की पर गैस पासबुक पर दिये गए टॉल फ्री नंबर पर उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
कैसे
ऐसे करें पहचान
1. हर सिलेंडर पर ए-13, बी-13, सी-13, डी-13 जैसे कोड लिखे होते हैं. ए-13 का अर्थ है सिलेंडर 2013 की पहली तिमाही तक वैलिड है. बी से दूसरी तिमाही, सी से तीसरी व डी से चौथी तिमाही तक सिलिंडर वैध है. वर्ष 2007 के सकरुलर में सिलिंडर की वैधता सात साल से बढ़ा कर दस साल कर दी गई तो यह ए-13 का वैधता ए-16 यानी वर्ष 2016 की प्रथम तिमाही तक हो गई.
2. सभी सिलेंडर पर ऊपरी हिस्से में अंदर लोहे अंदर चौड़ी पट्टी पर यह पेंट से लिखा होता है. साथ ही यह सिलिंडर में कई जगहों पर अंकित रहता है. नये गैस सिलिंडर की जांच 21 केजी प्रति सेमी स्क्वायर पर जांच होती है, जबकि दोबारा इसकी जांच 5-6 केजी प्रति सेमी पर होती है.
3. प्लांट में सिलिंडर की रिफिलिंग से पूर्व उसकी वैधता की जांच होती है. कई बार तो दस साल के भीतर पेंट उड़ने, पिचकने, ऊपरी हिस्सा मुड़ने पर उसे दुरुस्त करने के लिए कंपनी में भेज दिया जाता है, जहां से ठीक करके वापस भेजा जाता है.
कई जांच के बाद पहुंचता है सिलिंडर
प्लांट में ऑपरेशन ऑफिसर नदीम अली ने बताया कि पहले सिलिंडर की वैधता की जांच होती है. इसके बाद रिफिलिंग होती है. फिर उसके ऊपर के नॉजल की जांच होती है. गैस लीक होने पर नॉजल बदला जाता है. इस दौरान वजन भी मापा जाता है. अधिक होने पर निकाला जाता है तो कम होने पर गैस भरी जाती है. ये सारी प्रक्रिया मशीन से होती है. हर टर्निग प्वाइंटर पर निगरानी के एक व्यक्ति होता है. इसके बाद प्लांट में वाटर टैंक में सिलिंडर डुबाया जाता है ताकि लीकज का पता चल सके. वाटर टैंक पर पांच साल से काम कर रहे कर्मी ने बताया कि आज तक उसने लाखों सिलेंडर की टेस्टिंग की लेकिन किसी में लीकेज नहीं मिला. लीकेज केवल नॉजल के पास से ही होता है. तय मानक के अनुसार प्रत्येक सिलेंडर के नॉजल से 0.5 ग्राम गैस प्रति घंटा निकलता है. इससे अधिक गैस निकलने पर लीकेज माना जाता है.
घरेलू का न करें व्यावसायिक उपयोग
घरेलू सिलिंडरके रेगुलेटर नोजल पर 2.4 एमएम का दबाव डालता है जो उसके पिन को डैमेज नहीं करता है. लेकिन हलवाई, बाहर गैस रिफिलिंग करने वाले जिस रेगुलटर का प्रयोग करते है वह अधिक दबाव देता है. इससे नॉजल का पिन डैमेज हो जाता है. इसके बाद गैस लीक होने लगती है. सिलिंडर तौल कर लें.