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सरकारी अस्पताल में रजिस्ट्रेशन प्राइवेट अस्पताल में प्रसव

मुजफ्फरपुर : सरकार के तमाम जागरूकता कार्यक्रमों और प्रोत्साहन के बावजूद सरकारी अस्पतालों में नहीं, बल्कि महिलाएं निजी अस्पतालों में ही बच्चों को जन्म देती हैं. जबकि सरकारी अस्पताल में महिलाएं रजिस्ट्रेशन करा रही है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े पर अगर नजर डाले तो जून माह में महज 30 प्रतिशत ही महिलाएं प्रसव कराने सरकारी […]

मुजफ्फरपुर : सरकार के तमाम जागरूकता कार्यक्रमों और प्रोत्साहन के बावजूद सरकारी अस्पतालों में नहीं, बल्कि महिलाएं निजी अस्पतालों में ही बच्चों को जन्म देती हैं. जबकि सरकारी अस्पताल में महिलाएं रजिस्ट्रेशन करा रही है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े पर अगर नजर डाले तो जून माह में महज 30 प्रतिशत ही महिलाएं प्रसव कराने सरकारी अस्पताल पहुंची है.
जबकि इस माह में सरकारी अस्पतालों में करीब 13 हजार महिलाएं रजिस्ट्रेशन करायी थी. जून माह में 16 पीएचसी, सदर अस्पताल व एसकेएमसीएच में 13 हजार रजिस्ट्रेशन महिलाएं प्रसव के लिये करायी थी. जबकि महज 4 हजार 469 महिलाएं ही प्रसव कराने पहुंची हैं. इधर उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल एसकेएमसीएच में जून माह में 567 महिलाएं प्रसव करायी हैं.
हर साल 70 हजार महिलाओं का निजी अस्पताल में प्रसव
हर साल कुल चिह्नित गर्भवतियों में 70 हजार से अधिक निजी अस्पतालों में चली जाती हैं. इसमें जुटी सभी एजेंसियों के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं. हाल ही में वित्तीय वर्ष 2017-18 की रिपोर्ट को देखकर सरकार ने कड़े निर्देश दिये हैं. इस वर्ष में कुल एक लाख 28 हजार गर्भवतियों को चिह्नित किया गया था, लेकिन 16 पीएचसी, एसकेएमसीएच व सदर अस्पताल को मिलाकर मात्र 49 हजार गर्भवती पहुंची है. कई निर्देशों के बाद भी चालू वित्तीय वर्ष में हाल और खराब है.
जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में ही किसी पीएचसी में दस प्रसव नहीं हो रहा है. इस कमी को लेकर डीएम मो सोहैल ने कड़ी आपत्ति की है. उन्होंने साफ कहा है कि एक पीएचसी में कम से कम एक दिन में दस प्रसव कराएं. इसके लिए जो भी अभियान है, उसको पूरा किया जाए. सीएस शिवचंद्र भगत ने बताया कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान में चिह्नित गर्भवतियों का संस्थागत प्रसव कराना अनिवार्य कर दिया गया है. आशा व एएनएम अभियान नजर रखी जा रही हैं. सभी पीएचसी से रिपोर्ट मांगी गई है कि प्रसव की संख्या उनके यहां कम क्यों हैं.

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