शहरी चकाचौंध में फीकी पड़ गयी मवेशी मेला की रौनक
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शहरी चकाचौंध में फीकी पड़ गयी मवेशी मेला की रौनक औराई : बिहार के प्रमुख हरिहर सोनपुर मेले के बाद दूसरी हैसियत रखने वाला भैरवस्थान स्थित मवेशी व गुदरी मेला की रौनक दिनों-दिन फींकी पड़ती जा रही है. यह मेला महाशिवरात्रि से शुरू होकर होली के एक दिन पहले तक चलता है. यह मेला ब्रिटिश […]
औराई : बिहार के प्रमुख हरिहर सोनपुर मेले के बाद दूसरी हैसियत रखने वाला भैरवस्थान स्थित मवेशी व गुदरी मेला की रौनक दिनों-दिन फींकी पड़ती जा रही है. यह मेला महाशिवरात्रि से शुरू होकर होली के एक दिन पहले तक चलता है. यह मेला ब्रिटिश काल से लगता है लेकिन आधुनिकता ने अब इस गंवई संस्कृति की कमर को तोड़ दिया है. धीरे-धीरे लोग भी अब मेले से दूर होते जा रहे हैं. यहां पर मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा समेत नेपाल से बड़ी संख्या में मवेशी लेकर पहुंचने वाले किसान व मवेशी के व्यवसायी मेला से मुंह मोड़ रहे हैं. सोमवार को सीतामढ़ी के बेलसंड थाना के लहासी निवासी व्यवसाई गुड्डू कुमार, शिवहर निवासी धनेशवर राय ने बताया कि एक जोड़ी बैल बेचने पर मेला प्रशासन द्वारा 1020 रुपैया मेला शुल्क के रूप में वसूला जाता है,
जबकि सुविधा के नाम पर कुछ भी व्यवस्था नहीं होती है. इस कारण अब मवेशी लेकर आने वाले लोग मेला से मुंह मोड़ रहे हैं. होलिका दहन की पूर्व संध्या तक लगनेवाले इस मेले का इतिहास बताते हुए स्थानीय 90 वर्षीय बुजुर्ग मदन प्रसाद शाही ने बताया कि उनके जमाने में मेला यहां के गांव जवार में रहने वाले लोगों के मनोरंजन का मुख्य साधन हुआ करता था. लेकिन अब वीरान पड़ता जा रहा है. महिलाएं सभी घरेलू काम को निबटाकर रात में मेला का विशेष गाना गाते हुए मेला घूमने जाती थी. उस समय कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे. लेकिन अब कला के नाम पर अश्लील गाने बजते हैं.
दुकानदार रामप्रताप कुशवाहा ने बताया कि पहले दूर दराज के लोग मेला से पूरे वर्षभर का मसाला, विवाह का फर्नीचर, कपड़ा समेत अन्य सामानों की खरीदारी करते थे, पर अब आधुनिकता व सामाजिक परिवर्तन के कारण लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं. स्थानीय अमर शाही, जितेंद्र कुमार ने बताया कि मेला में फर्निचर, गुदरी के सामानों की खरीदार समेत सर्कस, थियेटर देखने वाले दर्शक बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं.
मेला का टेंडर प्रशासनिक स्तर पर निकाला गया था मगर बोली नहीं लगने के कारण मेला के राजस्व की वसूली अंचलाधिकारी अपने स्तर से स्थानीय लोगों की मदद से करवा रहे हैं.
बैलों का दाम (जोड़ा में)
बकछल्ला 35 से 45 हजार
कईला 40 से 50 हजार
बाछा सफेद 50 से 60हजार
बैल चार दांत 50 से 80हजा
बैल दो दांत 40 से 60 हजार
बैल अदंत 25 से 50 हजार
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