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भूदान में मिली जमीन का नहीं हो रहा दाखिल-खारिज

भूदान में मिली जमीन का नहीं हो रहा दाखिल-खारिज फोटो संख्या : 14फोटो कैप्सन : जिला भूदान कार्यालय प्रतिनिधि , मुंगेर आचार्य विनोवा भावे की अगुवाई में 1951 में आरंभ हुए भूदान आंदोलन के 6 दशक से ज्यादा हो गये. बावजूद इसके राजस्व विभाग का आलम यह है कि भूदान के लाभान्वित लाभुक के जमीन […]

भूदान में मिली जमीन का नहीं हो रहा दाखिल-खारिज फोटो संख्या : 14फोटो कैप्सन : जिला भूदान कार्यालय प्रतिनिधि , मुंगेर आचार्य विनोवा भावे की अगुवाई में 1951 में आरंभ हुए भूदान आंदोलन के 6 दशक से ज्यादा हो गये. बावजूद इसके राजस्व विभाग का आलम यह है कि भूदान के लाभान्वित लाभुक के जमीन के दाखिल-खारिज हुई और न ही अंचल से रसीद कट रहा है. यह भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी के उस आदेश की अनदेखी करना है. जिसमें उनका स्पष्ट निर्देश है कि अंचलवार कैंप लगा कर परचाधारियों को कब्जा दिलाये. जमीन की दाखिल खारिज कर उसकी रसीद कटाने की व्यवस्था करें. लेकिन मुंगेर में यह पूरी तरह से खोखला साबित हो रहा है. आज भी परचाधारी दाखिल खारिज के लिए भटक रहे हैं. असरगंज के मौजा विक्रमपुर में चंद्रधारी सिंह ने रहमतपुर में खाता नंबर 44, खेसरा नंबर 3 के तहत 3 एकड़ 10 डिसमिल जमीन भूदान में दी. इस जमीन को 7 दिसंबर 1997 को यहां के किसान बलराम यादव, रसिक लाल यादव, अधिक लाल यादव, सिकंदर यादव के बीच वितरित किया गया. आज भी उनके जमीन का दाखिल खारिज नहीं हो पाया है. दाखिल खारिज नहीं होने की वजह से ये भूदान किसान भटक रहे है. भूदान की सबसे बड़ी त्रासदी यह हैं कि भूदान में जो जमीन भूमिहीनों को दी गयी. उनमें अधिकांश पर तो दबंगों का कब्जा है. जो जमीन लाभान्वित को मिला भी है तो राजस्व विभाग की लापरवाही की वजह से उस जमीन के वास्तविक मालिक नहीं बन पाये है. जिसके कारण आज भी भूदान में मिली जमीन की स्थिति काफी ढुलमुल हाल में है. मंत्री से लेकर विभाग के प्रधान सचिव की समीक्षा बैठकों में लगातार अधिकारियों को निर्देश दिये जाने के बावजूद भी अधिकारियों का रवैया भूदान के प्रति सकारात्मक नहीं है. भूदान के कार्यों में तेजी लाने के लिए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग तथा एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट पटना की ओर से अंचलाधिकारियों और अपर समाहर्ताओं को अलग-अलग ढंग से भूदान एक्ट के प्रावधानों के क्रियान्वयन के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया. बावजूद इसके भूदान का वास्तविक लाभ सरजमीं पर उतरता नहीं दिख रहा है.

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