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कचरे के ढ़ेर में दबी महादलित परिवारों की आस

मुंगेर : एक पुरानी कहावत है ‘ दीपक तले अंधेरा ‘. मुंगेर जिले में यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है. जिले के अन्य स्थानों की बात छोड़िए. किला परिसर क्षेत्र जहां प्रमंडल व जिले के सभी आलाधिकारियों का आवास व कार्यालय है वहीं मुख्य द्वार स्थित मुसहरी टोला के महादलित परिवार विकास से वंचित हैं. […]

मुंगेर : एक पुरानी कहावत है ‘ दीपक तले अंधेरा ‘. मुंगेर जिले में यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है. जिले के अन्य स्थानों की बात छोड़िए. किला परिसर क्षेत्र जहां प्रमंडल व जिले के सभी आलाधिकारियों का आवास व कार्यालय है वहीं मुख्य द्वार स्थित मुसहरी टोला के महादलित परिवार विकास से वंचित हैं.

लोगों के लिए न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है और न ही रहने के लिए उचित संसाधन. सामान्य सुविधा भी उपलब्ध नहीं नगर निगम मुंगेर के वार्ड संख्या-1 किला परिसर स्थित मुसहरी टोला नाम की एक महादलित बस्ती है. जिसकी आबादी लगभग 1600 की है. यहां छोटी-छोटी झुग्गियों में लगभग 150 महादलित परिवार अपना गुजर- बसर कर रहे हैं.

ये आज के आधुनिक युग में भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार तो दूर की बात यहां के लोग शुद्ध पेयजल व शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं. प्रशासनिक उपेक्षाओं के कारण यहां के महादलितों की आस कचरे के ढेर में दब चुकी है. आस मिशन योजना हुई फेल मुंगेर के पूर्व प्रमंडलीय आयुक्त हेमचंद सिरोही के अथक प्रयास से महादलितों के लिए आस मिशन योजना चलायी गयी थी जो उनके जाते ही वर्ष 2007 में बंद हो गयी.

इस योजना के तहत मुसहरी टोला के 60 महिलाओं को तीन समूहों में बांट कर रोजगार उपलब्ध कराया गया था. जिसके तहत बागबानी, फूलों की खेती एवं मछली पालन पर विशेष जोर दिया गया था. महिलाओं के मेहनत ने रंग प्रमलायी और यहां के फूल व मछलियों को भागलपुर के बाजार तक पहुंचाया जाने लगा. जिससे आय के नये स्रोत बने थे.

इसके एवज में महिलाओं को 50 रुपये प्रतिदिन मजदूरी के तौर पर तथा उत्पादन में भागीदार बनाया गया था. इसके लिए तीनों समूह का अलग-अलग बैंक खाता खुलवाया गया था. किंतु वर्ष 2007 में अचानक इस योजना को बंद कर दिया गया. साथ ही बैंक में जमा किये गये रुपये का भी आजतक कोई अता-पता नहीं है.

नतीजतन महादलित परिवार की मेहनती महिलाएं आज कूड़े-कचरे बीनने को विवश हैं. शौचालय व चापाकल बनी शोभाकिला परिसर स्थित मुसहरी टोला के लगभग 150 परिवार के पेयजल की सुविधा के लिए विधायक कोटे से दो डीपीटी चापाकल लगाये गये थे. किंतु रखरखाव के अभाव में दोनों ही चापाकल वर्तमान समय में बंद पड़ा हुआ है.

जिसके कारण महादलित परिवारों को नगर निगम द्वारा बनाये गये प्याऊ के पानी से अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है. मालूम हो कि नगर निगम द्वारा महादलित बस्ती में 12 शौचालय का निर्माण कराया गया है. जिसमें समरसेबुल तक की व्यवस्था उपलब्ध है. आश्चर्य की बात तो यह है कि एक भी महादलित ने आजतक इस शौचालय का उपयोग ही नहीं किया है.

क्योंकि समरसेबुल चलाने के लिए आजतक उसमें बिजली का कनेक्शन नहीं किया गया है. स्वास्थ्य व शिक्षा की स्थिति है बदतर सरकार गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के लुभावनी योजनाएं चला रही है. किंतु मुसहरी टोला निवासी महादलितों के लिए इन योजनाओं के कोई मायने नहीं रह जाते हैं.

इस बस्ती के लगभग 90 प्रतिशत बच्चे आज भी कूड़े-कचड़े बीनने शहर के विभिन्न गलियों में निकल जाते हैं. कारण यह है कि यहां के बच्चों की शिक्षा के लिए समाहरणालय के पीछे पानी टंकी पर एक भवनहीन विद्यालय की व्यवस्था दी गयी है. जहां पर्याप्त संख्या में शिक्षक की व्यवस्था नहीं है.

वहीं स्वास्थ्य सेवाओं की यदि बात की जाय तो यहां के लोगों को इलाज के लिए सदर अस्पताल का सहारा लेना पड़ता है. सरकारी योजनाओं से महरूम हैं कई परिवार मुसहरी टोली में वैसे तो लगभग डेढ़ सौ परिवार बसे हुए हैं. किंतु उनमें से लगभग सौ आदमी के पास ही लाल कार्ड, पीला कार्ड व गृहस्थी राशन कार्ड उपलब्ध है. वहीं यदि वृद्धा पेंशन की बात की जाय तो लगभग 20 लोगों को इसका लाभ मिल रहा है. बांकी के असहाय वृद्धों की कोई खोज खबर लेने बसती में नहीं पहुंचते.

यहां के युवाओं में इस बात को लेकर रोष है कि शादीशुदा हो जाने के बावजूद उन लोगों का मतदाता पहचान पत्र तक नहीं बन पाया है. जबकि यहां के युवाओं ने कई बार आवेदन भी दिये. कहते हैं महादलित मुसहरी टोला निवासी रवि मांझी व रीतु मांझी ने बताया कि पिछले आठ वर्षों से बस्ती के लोग जिल्लत की जिंदगी जी रहे हैं.

यहां के लोग रोजगार के अभाव में अपने व परिवार की दशा सुधारने में अक्षम है. आस मिशन योजना के तहत यहां के भविष्य को सुधारने की एक अच्छी योजना आरंभ की गयी थी जो वर्ष 2007 में ही बंद कर दी गयी. नतीजतन लोग कूड़ा-कचरा बीन कर जीवनयापन करते हैं.नहीं है कोई रोजगार आस मिशन योजना के तहत तीन समूह मेंथा स्वयं सहायता स्वावलंबी सहकारी समिति, पामा रोजी व कोलियस बनाये गये थे.

मेंथा की सदस्या गीता देवी, सकीना देवी, पामा रोजी की सदस्या फुदिया देवी, ममता देवी तथा कोलियस की सदस्या लुखरी देवी व तेतरी देवी ने बताया कि काफी मेहनत से उन लोगों ने अपने-अपने व्यवसाय को तरक्की पर पहुंचाया था. किंतु अचानक इस योजना को बंद कर दिया गया.

इतना ही नहीं बैंकों में उन लोगों ने अपने-अपने व्यवसाय से कमा कर जो रुपये जमा किये थे उसमें से एक रुपये का भी हिसाब आजतक उन लोगों को नहीं मिला है. जिसके कारण वे लोग पूरी तरह बेरोजगार हो चुके हैं. कहते हैं आयुक्त मुंगेर के प्रमंडलीय आयुक्त लियान कुंगा ने कहा कि

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