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40-42 प्रतिशत बच्चे स्कूल से बाहर

मुंगेर: मुंगेर जिले के प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में नामांकन के बावजूद लगभग एक लाख बच्चे नियमित रूप से विद्यालय नहीं जा रहे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जिले में प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में कुल 2 लाख 52 हजार 574 बच्चे नामांकित हैं, किंतु मात्र 1 लाख 47 हजार 712 बच्चे ही विद्यालय में […]

मुंगेर: मुंगेर जिले के प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में नामांकन के बावजूद लगभग एक लाख बच्चे नियमित रूप से विद्यालय नहीं जा रहे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जिले में प्राथमिक एवं मध्य विद्यालयों में कुल 2 लाख 52 हजार 574 बच्चे नामांकित हैं, किंतु मात्र 1 लाख 47 हजार 712 बच्चे ही विद्यालय में उपस्थित हो रहे. अर्थात उपस्थिति का प्रतिशत मात्र 58.48 है.
बच्चों को विद्यालय से जोड़ने एवं विद्यालय में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए सरकारी स्तर पर सर्वशिक्षा अभियान के माध्यम से करोड़ों रुपये इस जिले में खर्च हो रहे. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि नामांकन के बावजूद बच्चों की उपस्थिति विद्यालयों में बदहाल है. जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी केके शर्मा भी स्वीकारते हैं कि महज 60-62 प्रतिशत बच्चों की उपस्थिति विद्यालय में सुनिश्चित हो पाती है. नाम लिखाया, पर जाते नहीं स्कूल : जिले में लगभग एक लाख ऐसे बच्चे हैं जिनका नाम विद्यालय के पंजी में तो दर्ज है लेकिन वे स्कूल नहीं जाते. प्राथमिक विद्यालयों में कुल नामांकित बच्चों की संख्या 1 लाख 71 हजार 136 है जबकि उपस्थिति 1 लाख 3 हजार 653 हो रही है. इसी प्रकार मध्य विद्यालयों में नामांकित बच्चों की संख्या 81 हजार 438 है. जबकि उपस्थिति मात्र 44 हजार 56 है.
इस प्रकार वर्ग 1-5 तक के प्राथमिक विद्यालय में नामांकित कुल 67 हजार 483 बच्चे विद्यालय नहीं जा रहे. जबकि मध्य विद्यालय में नामांकित 37 हजार 389 बच्चे विद्यालय से बाहर हैं.
कहते हैं शिक्षा पदाधिकारी
जिला शिक्षा पदाधिकारी केके शर्मा ने बताया कि विद्यालयों में 60-62 प्रतिशत बच्चे ही उपस्थित हो पा रहे हैं. बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए शिक्षक, प्रधानाध्यापक एवं टोला सेवकों को निर्देश दिये गये हैं.
उपस्थिति पर ध्यान नहीं देते शिक्षक
विद्यालयों में शत-प्रतिशत बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए वर्ग शिक्षक से लेकर प्रधानाध्यापक एवं शिक्षा समिति के लोग जिम्मेदार हैं. साथ ही एससीएसटी के बच्चों को विद्यालय में उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए टोला सेवकों की नियुक्ति की गयी है, लेकिन ये जिम्मेदार लोग उपस्थिति पर ध्यान नहीं देते. फलत: नामांकन के बावजूद 40-42 प्रतिशत बच्चे विद्यालय से बाहर हैं.
पढ़ने-पढ़ाने में नहीं है रुचि
सरकारी विद्यालयों में नामांकन के बावजूद लगभग 41 प्रतिशत बच्चों के विद्यालय नहीं आने का मूल कारण बच्चे, शिक्षक एवं अभिभावकों में पढ़ने-पढ़ाने की रुचि नहीं है. जिला शिक्षा पदाधिकारी का कहना है कि अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय में तो नाम लिखा देते हैं लेकिन उसे दूसरे कार्यो में लगा देते. अभिभावकों में बच्चों को पढ़ाने के रुचि नहीं रहती. जिसके कारण नामांकित एवं उपस्थित बच्चों के आंकड़े में बड़ा गैप है.
नामांकन सरकारी में, प्राइवेट में पढ़ाई
बताया जाता है कि जिले में ऐसे बच्चों की संख्या भी काफी है जो सरकारी विद्यालयों में नामांकित तो हैं किंतु उनकी पढ़ाई प्राइवेट विद्यालयों में हो रही है. अभिभावक सरकार द्वारा चलने वाले विभिन्न योजनाओं जैसे छात्रवृत्ति, पोशाक का लाभ लेने के लिए अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में नामांकन करा रखे हैं और स्थानीय स्तर पर शिक्षकों पर दबाव बना कर कई बार फर्जी उपस्थिति भी बनवा लेते. जिसके कारण भौतिक रूप से सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या कम रहती है.
एमडीएम से भी नहीं बढ़ रही उपस्थिति
सरकार की महत्वाकांक्षी मध्याह्न् भोजन के तहत बच्चों को विद्यालय में उपस्थिति बढ़ाने की योजना भी फ्लॉप साबित हो रही है, क्योंकि मध्याह्न् भोजन के बहाने भी बच्चे विद्यालय तक नहीं पहुंच रहे. कुछ बच्चे तो विद्यालय आते हैं लेकिन मध्याह्न् भोजन ग्रहण नहीं करते.

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