।। संजीव कुमार ।।
बरियारपुर : वर्ष 1961 में स्थापित प्रमंडलीय ग्राम स्वराज संघ बरियारपुर आज सरकार की उदासीनता के कारण बंदी के कगार पर पहुंच गया है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं बरियारपुर आकर चरखा उद्योग का शुभारंभ किया था. लेकिन संसाधनों के अभाव में अब खादी ग्राम उद्योग में चल रहे चरखे की पहिया नहीं घुम पा रही है.
नतीजतन एक ओर जहां इस उद्योग धंधा से लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. वहीं दूसरी ओर प्रमंडल स्तरीय का इस खादी ग्रामोद्योग के कार्यो पर भी प्रश्न चिह्न् लग गया. अब सवाल उठता है महात्मा गांधी के सपनों को आखिर कौन साकार करेगा.
* अतीत था सुनहरा
बरियारपुर खादी ग्रामोद्योग एवं नया छावनी ग्रामोद्योग में पूर्व में रेशमी कपड़ा, सूती कपड़ा एवं कंबल बनाने के लिए प्रसिद्ध था. यहां सैकड़ों की संख्या में बुनकर काम करते थे. चरखा व करघा की आवाज हमेशा गूंजती रहती थी. परंतु वर्तमान समय में मात्र 20 चरखा व 5 करघा चल रहे हैं. बुनकरों की संख्या भी एक चौथाई से कम हो गयी.
खासकर महिलाओं को जो रोजगार के अवसर प्राप्त होते थे. अब कम हो गयी है. जबकि बरियारपुर खादी ग्रामोद्योग केंद्र शेखपुरा, बरबीघा, जमुई एवं लखीसराय केंद्रों का ट्रेनिंग सेंटर बन गया है. ग्राम स्वराज संघ का यह ट्रेनिंग सेंटर आज सरकार की उदासीनता के कारण भवन का निर्माण भी अधूरा पड़ा हुआ है. अगर यही स्थिति बनी रही तो बरियारपुर वासियों के लिए खादी ग्रामोद्योग आने वाले समय में केवल याद बनकर रह जायेंगी.
बरियारपुर खादी ग्रामोद्योग के मंत्री सह बिहार वेलफेयर ट्रस्ट के सचिव विनय कुमार सिंह ने बताया कि 15 वर्षो से सरकार द्वारा कोई आवंटन नहीं मिला है. इस संस्था के 90 लाख रुपये ब्लॉक हो गये थे. जिस कारण यहां का कार्य प्रभावित हुआ. पूर्व में यहां का उत्पादन 36 लाख रुपये पर चला गया था. लेकिन वर्तमान में 20 लाख के लगभग ही उत्पादन एवं 40 लाख रुपये की बिक्री पर पहुंचा है.
केवीआइसी द्वारा स्फूर्ति प्रोग्राम के तहत रोजगार को बढ़ाने की व्यवस्था की जा रही है. जिसके माध्यम से मशीन एवं कच्च माल भी उपलब्ध कराया जायेगा. अब तो आने वाला वक्त ही बतायेगा कि सिर्फ कागजों तक ही खादी ग्रामोद्योग बरियारपुर का विकास सीमित रह जाता है अथवा वाकई में इसका विकास भी होता है.