मुंगेर: भूदान आंदोलन कभी भूमिहीनों के लिए एक बड़ा सपना बन कर आया था. लेकिन सरकारों की इच्छा शक्ति, लाल फीताशाही और कुटिल चालों में इस महत्वाकांक्षी योजना को ध्वस्त कर दिया. राज्य के मुख्यमंत्री और बिहार भूदान यज्ञ कमिटी के अध्यक्ष शुभमूर्ति के प्रयास के बावजूद किसान अपनी जमीन से बेदखल हैं.
विनोवा भावे के भूदान आंदोलन में मुंगेर में 19 हजार 502 एकड़ 5 डिसमिल जमीन प्राप्त हुई थी. इस जमीन में 10,488.57 एकड़ भूमि संपुष्ट थी. 10,167.77 एकड़ अयोग्य भूमि थी. जिसमें मात्र 9,334.84 एकड़ भूमि 10133 लोगों के बीच वितरित की गयी. वितरित की जाने भूमि के लाभांवितों में 2530 हरिजन, 2273 आदिवासी, 5185 पिछड़ी जाति तथा 401 अन्य लोग हैं.
भूदानी जमीन के मालिक आधे लोग इस जमीन से बेदखल हैं और अपनी जमीन पर हक चाहते हैं. कई लोगों का कब्जा तो जमीन पर है. लेकिन दाखिल खारिज नहीं होने के कारण वे जमीन के असली मालिक नहीं बताये जा रहे हैं. अंचलाधिकारी राजस्व संपुष्टि, जमाबंदी, सर्वेक्षण का नक्शा नहीं होने और अमीन की अनुपलब्धता की भी बहाना बनाते हैं. धरहरा प्रखंड का करैली नक्सली घटना के कारण सुर्खियों में रहा है और नक्सलवाद का एक मुख्य कारक भूमि का असमान वितरण भी रहा है. सरकार के निर्देश पर यहां के अंचलाधिकारी शिवपूजन प्रसाद सिंह ने एक शिविर लगाया और शिविर के बाद कुछ मामले सामने आये. इसके तहत 30 भूदान परचाधारियों को जमीन पर दखल दिलाने में कामयाबी हासिल हुई. भूदान किसानों की अलग-अलग कहानी है.
तारापुर के चौरगांव निवासी गिरजा बिंद जमीन का रसीद तो वे कटा रहे थे. लेकिन जमीन पर उनका कब्जा नहीं था. इसके लिए उन्होंने अंचलाधिकारी से लेकर जिला पदाधिकारी तक गुहार लगाया. लेकिन कुछ नहीं हुआ. आखिरकार वे मुख्यमंत्री के जनता दरबार पहुंचे. तब प्रशासन हरकत में आयी और बेदखल करने वालों से थाने में बांड भरवाया गया. बांड तो भर दिया लेकिन दूसरे ही दिन उसकी धान काट ली गयी. भूमि सुधार में भूमि सुधार उप समाहर्ता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. लेकिन इस कार्यालय का आलम यह है कि इस कार्यालय से भूदान की जमीन की संपुष्टि पुस्तिका ही गायब है. इस कारण भूदान के कार्यो को सरजमीं पर उतारने में और अधिक कठिनाई हो रही है. बिहार भूदान यज्ञ अधिनियम अपने आप में ताकतवर है और इसमें बहुत सारे प्रावधान है. बावजूद इसके अधिकारियों के स्तर पर इस नियम का अनुपालन नहीं किया जा रहा है.