मधुबनी : मिथिला की सांस्कृतिक काफी समृद्ध रही है. इसका इतिहास भी स्वणिर्म रहा है. पूरे विश्व में इस प्रकार की सांस्कृतिक विरासत और कहीं नहीं है. पर अब हमारे मिथिलांचल में भी पाश्चात्य सभ्यता आने लगी है. जो हमारे स्वर्णिम इतिहास और गौरवमयी सांस्कृतिक धरोहर को ठेस पहुचा सकती है.
ऐसे में आवश्यकता आ गयी है कि हम इस धरोहर को सहेजें. यह किसी आदमी के बस की बात नहीं है. इसके लिये पूरे समाज को एक साथ आगे आना जरूरी है. इसकी गौरवाशाली सांस्कृतिक परंपरा को अक्षुण्ण रखने के लिए हमें आगे आना होगा. ये बातें मिथिला लोक फाउंडेशन के चेयरमेन व अंग्रेजी के विद्वान डाॅ बीरबल झा ने कही. रविवार को नगर परिषद के विवाह भवन में मिथिला लोक फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित पाग बचाउ अभियान में डाॅ झा ने कहा कि मिथिला की पहचान पाग है. 14 वीं शताब्दी के इतिहास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यहां लोगों में सिर ढकने की परंपरा थी.
यहां के लोग वृक्ष के पत्ते से अपना सिर ढकते थे. जैसे जैसे मानव विकसित होता गया. पत्ता का स्थान कपड़ा ने ले लिया. यहां पुरानी धोती से अनेकों रंग में रंगकर पाग बनायी जाने लगी. जो अब तक कायम है. उन्होंने कहा कि अगर यहां पाग सम्मान का प्रतीक है तो यह सम्मान यहां के प्रत्येक लोगों के लिए होना चाहिए. इससे जात-पात उंच नीच तथा अमीर गरीब का भेदभाव दूर होगा. साथ ही समतामूलक समाज की स्थापना होगी.