मधुबनीः मधुबनी पेंटिंग को विश्व में चर्चित बनाने वाली महा सुंदरी देवी अब नहीं रहीं. शहर से सटे रांटी गांव में सुबह नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन से कला प्रेमियों में शौक है.
सांस लेने में तकलीफ की शिकायत होने पर उन्हें हर्ट हॉस्पिटल मंगरौनी में भरती कराया गया था, जहां उनका निधन हुआ. देश-विदेश में मिथिला पेंटिंग के लिए चर्चित महासुंदरी देवी के निधन पर देश ही नहीं विदेशों से शोक संवेदनाएं आ रही हैं. शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा.
महासुंदरी देवी की मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था. वे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजी जा चुकीं हैं. 90 साल की महासुंदरी देवी में मिथिला पेंटिंग बनाने की बच्चों की तरह ललक थी. 92 की उम्र में भी वे जब हाथों में ब्रस व पेंट लेती थी तो लगता था कि उम्र का उनपर कोई असर नहीं है. पिछले 50 साल से भी अधिक उम्र से वे मिथिला पेंटिंग बना रही थीं. देश के लगभग सभी प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति इनके कला से अवगत थे. मिथिला पेंटिंग के प्रसिद्ध डिजाइनर भाष्कर कुलकर्णी व कलाप्रेमी उपेंद्र महारथी भी उनकी कला के दीवाने थे.
महासुंदरी देवी को शिल्पगुरु पुरस्कार से भी नवाजा गया था. मिथिला पेंटिंग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए इन्हें दिल्ली में आयोजित पुरस्कार समारोह में छह लाख रुपये,अंगवस्त्रम व अन्य प्रतीकों से सम्मानित किया गया था. इन्हें देश की प्रसिद्ध तुलसी सम्मान से भी पुरस्कृत किया गया था. राष्ट्रीय मिथिला चित्रकला सम्मान भी उन्हें मिला था.
कलाप्रेमियों की रही पसंद
लगभग 66 देशों के कलाप्रेमी महासुंदरी देवी की कला को चाहने वाले थे. इनमें अधिकांश उनसे मिलने उनके घर आये व उनकी कलाकृतियों को अपने साथ ले गये. उनकी बनायी 85 तरह की अरिपन को जर्मनी की कलाप्रेमी एरिका मोआइजर अपने साथ ले गयी. पेरिस के लेखक प्रो. इब्स पिको ने अपनी प्रकाशित पुस्तक दी हर्ट ऑफ मिथिला में उनकी बनायी चित्रों को प्रमुखता से स्थान दिया है.