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अयाची की परंपरा को आगे बढ़ाने पर चर्चा

मधुबनी : अयाची डीह विकास समिति द्वारा अयाची मिश्र के प्रतिमा के अनावरण के बाद दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक शास्त्र परक विषय वस्तु पर कई विद्वानों ने अपना विचार रखें. रविवार को लक्ष्मीश्वर एकेडमी के प्रागंण में कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डा. […]

मधुबनी : अयाची डीह विकास समिति द्वारा अयाची मिश्र के प्रतिमा के अनावरण के बाद दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक शास्त्र परक विषय वस्तु पर कई विद्वानों ने अपना विचार रखें. रविवार को लक्ष्मीश्वर एकेडमी के प्रागंण में कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डा. देवनारायण झा, डा. किशोर नाथ झा, भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद के अरूण कुमार मिश्र, जानकी देवी मेमोरियल दिल्ली विश्वविद्यालय के डा. सविता झा खान, जेएनयू के डा. अखलाख अहमद अंसारी, पंकज कुमार लगमा संस्कृति महाविद्यालय के प्रध्यापक डा. सदानंद झा ने अयाची और शंकर मिश्र के लौकिक पक्ष पर अपना प्राख्यान दिए.
न्याय और दर्शन में सामंजस्य जरूरी
सेमिनार में डा. देवनारायण झा ने कहा कि न्याय और दर्शन शास्त्र में समांजस्य आवश्यक है. न्याय शास्त्र और दर्शन शास्त्र की वजह से ही मिथिलांचल पूरे विश्व पर अपना राज्य किया. लेकिन, समय के साथ शास्त्रार्य की धुमिल होती प्रवृति के कारण विद्वानों की बैठार में भी कमी हुआ. सेमिनार में डा. किशोर नाथ झा ने शंकर मिश्र की दर्शन शास्त्र पर चर्चा कर कहा कि भवनाथ मिश्र अयाची मिश्र का संपूर्ण जीवन में दो पक्ष का ही महानता रहा. विद्या वैदुष्यक और दुसरा पक्ष अयाचना प्रवृती. लेकिन, दोनों पक्ष में किस पक्ष को सवल कहा जाय और किस पक्ष को दुर्बल ये कहना कठिन है. ”को वर छोट कहत अपराधु” इसी दोनों पक्ष के कारण अयाची मिश्र की प्रासंगिता आज भी जीवित है.
विचार को आगे बढाना हमारा दायित्व . सेमिनार में सविता झा खान ने कहा कि ज्ञान को पेशा से जोरकर शंकर मिश्र की दर्शन को विद्या संवाद से जोरकर अगर आगे बढ़ाया जाय तो अयाची शंकर की ज्ञान परंपरा जो अभि कुंठित है. वह आम लोगों के लिए सहज हो जायेगा. सेमिनार में जवाहरलाल विश्वविद्यालय के डा. अखलाख अहमद सिद्दीकी ने कहा कि शंकर मिश्र की दर्शन और विचार को अगर सही तरीका से ग्रहण किया जाय तो निश्चय ही समाज से सौभ्यता के साथ बुद्धि विकास की रास्ता खुलेगा. सेमिनार में लगमा संस्कृत महाविद्यालय के प्राध्यापक डा. सदानंद झा ने कहा कि वैसे तो हम अन्य राज्य में कई प्रकार के दर्शन शास्त्र न्याय शास्त्र के व्याख्यान माला में भाग लिया. लेकिन, मिथिलांचल में शास्त्रार्थ की परंपरा लगभग समाप्त हो गया था. इस परिस्थिति में आयोजन समिति द्वारा इस तरह की कार्यक्रम करना बेहतर है. न्याय दर्शन पर चर्चा से खुशी होती है. श्री झा ने कहा कि शंकर मिश्र पांच वर्ष की अवस्था में राजा को वालो हम जगतानन्द: नमे वाला सरोस्वती कविता ही नहीं सुनाएं बल्कि ” चलितश्श्रकितच्च्हन्न: प्रणाये तव भूपते सहशस्त्रशीर्षा पुरष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात्” कविता सुनाया शंकर मिश्र कवि नाटाकार धर्मशास्त्री और न्याय वैशेषिक का वाक्याकार भी थे.
सेमिनार में कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याख्याता डा. नंदकिशोर चौधरी ने कहा कि शंकर मिश्र लिखित गौरी दिगंबर प्रहसन जब बोलना शुरू किए तो श्रोता मंत्र मुग्ध् हो गया. श्री चौधरी ने प्रहसन में कहा कि गौड़ी शंकर की वर्णन कर कहा अयाची की अयाचना का वर्णन कर समाज के गइवार महिंसवार भी समझता है. सेमिनार में दोनों दिनों विभिन्न विश्व विद्यालय सहित अन्य प्रांत के विद्वान डा. अमरनाथ झा, प्रो. रत्नेश्वर मिश्र, प्रो. मणींद्रनाथ ठाकुर, प्रो. धमेंद्र कुमार, पंडित विनयानंद झा, प्रो. महानंद झा, अमलानाथ झा, डा. मित्रनाथ मिश्र, डा. विद्यानंद झा ने भी अपना विचार रखे. शंकर मिश्र द्वारा लिखित 14 पुस्तक का लिपी मिल चुका है. जिससे कई पुस्तक का प्रकाशन भी हो चुका है. मिश्र ने गौड़ी दिगंबर प्रहसन, कृष्ण विनोद नाटक, मनोभवपराभव नाटक, रसार्णव, दुर्गा-टीका, वादि विनोद, वैशेषिक सुत्र, कुसमांजलि पर अमोद, खण्डनखण्ड-खाद्य टीका, छंदोगाहि्नकोद्धार, श्राद्ध प्रदीप, प्रायश्चित प्रदीप पुस्तक का प्रकाशन होना है. इस पुस्तक में धर्म शास्त्रजन व न्याय जन कर्मकांड पर आधारित है.
हत्यारे ने ममता का गला घोंट दिया
सकरी . दहिवत माधोपुर पूर्वी पंचायत की पूर्व मुखिया तनुजा सिंह ने रूंधे गले से कहा कि हत्यारे ने ममता का गला घोंटा है़ इस दु:ख की घड़ी में सभी माताओं की संवेदनाएं मासूम प्रद्युम्न की मॉं के साथ है़ हम तो केवल सांत्वना ही दे सकते हैं मगर उस मॉं पर क्या बीतती होगी. जिसके दुलारे पुत्र की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई़ उस मासूम की माता पर जो दुखों का पहाड़ टूटा है यह सोचकर ही कलेजा छलनी हो जाता है़ भगवान से यही दुआ करती हूं कि पूरे परिवार को दस दु:ख को बर्दाश्त करने की सहन शक्ति दें.
दर्द समझ सकती है मां
हमारे प्रद्युम्न की नृशंस हत्या करने वाले हत्यारे को कोई भी मां कभी भी क्षमा नहीं कर सकती है़ जिसने एक मां की कोख सूनी कर दी. ऐसे लोगों को अविलंब सूली पर लटका देनी चाहिए़
एक माता ही दूसरे माता के दर्द को असल रूप में महसूस कर सकती है़ यह कैसा घोर अन्याय हो रहा है इस युग में. इस घटना से जहां एक ओर इस क्षेत्र के बच्चोंं के माता पिता भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डरने लगे हैं, वहीं दूसरी ओर घटना के विषय में सोचकर रातों को निंद आनी भी मुश्किल लगती है़ पूरे परिवार के साथ हमारी संवेदना है़ हत्यारे किसी भी कीमत पर नहीं छुटने चाहिए.
क्या कसूर था मेरे पोते का
प्रद्युम्न के दादा कृष्णकांत ठाकुर के आंखों के आंसू अब तो सूखने लगे हैं. जब कभी कोई उनसे मिलने जाता है तो वे हताश हो रोने लगते हैं. उन्हें तो अभी भी अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा है.
अपने पोते की मौत की खबर ने बूढ़े शरीर व आत्मा को बिल्कुल ही झकझोर कर रख दिया है़ रोने के दौरान ही हिचकी लेते हुए कहते हैं कि आखिर क्या बिगाड़ा था मेरे पोते ने किसी का़ वह तो दिपावली के मौके पर इस बार घर आने वाला था़ मगर भगवान ने यह सौभाग्य हमसे छीन लिया़ इतना कहकर वे अपने आंखों से गिरते आंसुओं को पोंछने की नाकाम कोशिश करने लगे़ कहा कि भगवान ऐसा दिन िकसी को न दिखाये.

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