मधुबनी : पति के लंबी आयु की कामना लिये बीते 14 जुलाई से मनाये जाने वाली फुललोढी पर्व अंतिम पड़ाव में पहुंच गया है. मंगलवार को अंतिम फूललोढी में नव विवाहिता शामिल हुई. इसके बाद बुधवार को पर्व मधुश्रावणी की समाप्ति होगी. इसमें व्रती को पर्व के दौरान टेमी दागने की रश्म भी पूरी की जायेगी. इस पर्व को लेकर हर ओर हर्षोल्लास व उमंग है.
तैयारी में मंगलवार को लोग लगे रहे.मंगलवार को इस पर्व को लेकर अंतिम फुललोढी किया गया. मंदिरों पर नव विवाहिताओं की टोली अपने अपने साथियों व परिवार के सदस्यों के साथ फुललोढी करने निकली. मधुश्रावणी पर्व पूरे तौर पर महिला पंडित के द्वारा ही संपन्न कराया जाता है. महिला पंडित को भी दान दक्षिणा व वस्त्र दिये जाते हैं. इस पर्व को मनाने के लिये कई परदेसी गांव आ गये हैं.
ससुराल से भेजा जाता है सामान
पूजा करने के लिये मधुश्रावणी का हर सामान ससुराल से ही आता है. परंपरा रही है कि नव विवाहिता के मायके के सभी सदस्यों के लिये कपड़ा, व्रती के लिये जेबरात, विभिन्न प्रकार के कपड़ा, भोज के लिये सामान भी ससुराल से ही आता है. वहीं चना को अंकुरित कर इसे भेजे जाने का भी रिवाज है. एक बार फिर व्रती के ससुराल से नाग नागिन सहित विषहारा के सभी बहनों को मिट्टी से बना कर उसे रंग रोगन कर, मैना पत्ता व अन्य पूजा सामग्री के साथ भेजा जाता है. पूरे पूजा के दौरान आस्था व श्रद्धा के साथ विषहारा की पूजा अर्चना की जाती है व गीत गाये जाते हैं. हर दिन पांच बीनी कथा भी ब्रतियों को सुनायी जाती है. कहा जाता है कि जो महिला ये पांचो बीनी नियमित रूप से पढती हैं उसे हर प्रकार के सुख प्राप्त होते है. परिवार में कभी भी सर्पदोष की शिकायतें नहीं होती.
विषहरि, विषहरि करथि पुकार….राम कतहु ने भेटै छथि जननी हमार…..
विषहरि, विषहरि करथि पुकार…. राम कतहु ने भेटै छथि जननी हमार
फूल दे रे मलिया भैया, दूध दे गुआर…. राम बासी दे रे पटवा भैया लेसब प्रहलाद
गौड़ी पूजा से होती है शुरुआत
इस पर्व में माता गौड़ी की पूजा का भी विशेष प्रावधान व महत्ता है. माता गौड़ी की ही पूजा से हर दिन इस पर्व को शुरू किया जाता है. व्रती पूजा करती है तो गांव की महिलाएं गीत गाती रहती है. हे सीता प्यारी केहन तप केलौं, गौड़ी पूजि पूजि वर मांगि लेलौं
रामचंद्र सन स्वामी कोना मांगि लेलौं, हे सीता प्यारी केहन तप केलौं..
गौड़ी पूजा की इसी प्रकार के गीत के बीच व्रती पूजा अर्चना करती है. फिर साईठ की पूजा अर्चना की जाती है. इसके बाद शुरू होता है माता विषहारा की पूजा अर्चना. घंटो पूजा की जाती है.
अंगना में थाल कीच दुआईरे भैंसूर, राम कोने बाटे औती विषहरि बाजत नुपूर
नीप देब थाल कीच, हंटि जैत भैंसूर, राम ओही बाटे ओती विषहरि बाजत नुपूर …… महिलाएं दूध, लाबा, चंदन विभिन्न प्रकार के प्रसाद से विषहारा को प्रसन्न करती हैं व पति के दीर्घायु होने की कामना करती है. पूजा के दौरान 15 दिनों तक व्रती ससुराल से आये अरबा अरबाईन भोजन ही ग्रहण करती है.
मैना पत्ता पर होती है पूजा . मधुश्रावणी पूजन मे नवविवाहिता मैना पात पर नाग नागिन की बनी आकृति पर दूध लावा चढाकर अपने सुहाग के साथ – साथ सपरिवार के लिए मंगलकामना करती है. कहा जाता है कि माता पार्वती ने अपने कठिन व्रत के फलस्वरूप इसी सावन मास मे शंकर जी को वर के रूप में प्राप्त की थी. मौना पंचमी के मौके पर नाग देवता की पूजा के बाद शाम में धान का लावा और मिट्टी को मिलाकर तथा इसे अभिमंत्रित कर घर आंगन दरवाजा के विभिन्न भागों में छीटा जाता है. मधुश्रावणी में मिट्टी और गोबर से बने नाग की पूजा की जाती है. नवविवाहिता पर सिंदूर और चंदन से तथा दूसरे पत्ता पर सिंदूर व पीठार से बने
नाग देवता की आकृति का पूजन करती है. पूजन समय में गौरी गीत, विषहारा गीत, महेश वाणी आदि गीत के गायन की परंपरा है.
सखियों संग व्रती ने किया अंतिम फूललोढी