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दीमक की भेंट चढ़ रही हैं लाखों की पुस्तकें
जिला मुख्यालय स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में रखी लाखों रुपये की हजारों पुस्तकों को दीमक चट कर रहा है. हालात यह है कि पुस्तकालय में रखी अधिकतर पुस्तकें न तो पढ़ने लायक रह गयी हैं और न ही देखने लायक. मधेपुरा : समाहरणालय के ठीके आगे स्थित केंद्रीय पुस्तकालय वरीय पदाधिकारियों के सामने अपनी बदहाल स्थिति […]
जिला मुख्यालय स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में रखी लाखों रुपये की हजारों पुस्तकों को दीमक चट कर रहा है. हालात यह है कि पुस्तकालय में रखी अधिकतर पुस्तकें न तो पढ़ने लायक रह गयी हैं और न ही देखने लायक.
मधेपुरा : समाहरणालय के ठीके आगे स्थित केंद्रीय पुस्तकालय वरीय पदाधिकारियों के सामने अपनी बदहाल स्थिति पर आंसू बहा रह है. जिला मुख्यालय में केंद्रीय पुस्तकालय होने के बावजूद पुस्तकालय में सुविधाओं का घोर अभाव है. पुस्तकालय जाने आने के लिए भी लोगों को कई बार सोचना पड़ता है. पूर्व में मुख्य सड़क से पुस्तकालय तक जाने के लिए सीधा रास्ता था.
लेकिन मुख्य सड़क के पास घेराबंदी होने से वह रास्ता अवरूद्ध हो गया है. वर्तमान में डूडा कार्यालय के बगल से वहां तक रास्ता जाती है. लेकिन वहां निमार्ण कार्य चलने के कारण लोगों को आने जाने में परेशानी हो रही है. हालांकि शिक्षाविदों का मानना है कि पुस्तकालय के लिए वह जगह ही ठीक नहीं है. इसके लिए जहां शिक्षण संस्था कॉलेज स्कूल हो वहां पुस्तकालय होना चाहिए.
उद्देश्यहीन बना केंद्रीय पुस्तकालय
1988 में स्थापित जिला केंद्रीय पुस्तकालय मूल उद्देश्य से कोसो दूर है. केंद्रीय पुस्तकालय तक जब छात्र ही नहीं पहुंच रहे है तो इसके औचित्य पर सवाल खड़ा होना लाजिमी है. 28 वर्ष पूर्व जब मधेपुरा में केंद्रीय पुस्तकालय खुलने की बात हुई तो लोगों को लगा कि अब छात्रों को अध्ययन के लिए किताबें आसानी से मिलना शुरू हो जायेगा. लेकिन हालात ठीक इसके विपरित देखा जा रहा है.
धूल मिट्टी से सराबोर हैं पुस्तकें
पुस्तकों के खुले में रहने के कारण धूल मिट्टी से शराबोर हो गया है. यहां पुस्तक पढने के लिए गाहे बगाहे आने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. यहां लाचारी वश बाजार में किताब उपलब्ध नहीं होने के बाद ही लोग भूले भटके ही पुस्तक पढने आते हैं.
जिला मुख्यालय में सिर्फ एक पुस्तकालय होने के बावजूद आम लोगों की सुविधा और रख रखाव की ओर अब तक प्रशासन की नजर नहीं पड़ी है. जिस कारण पुस्तकालय अब तक बदहाल स्थिति में हैं. पुस्तकालय का खुलने का समय आठ बजे सुबह से ग्यारह बजे तक और तीन बजे से शाम छह बजे तक है. लेकिन इस दौरान अव्यवस्था के कारण कम ही लोग पुस्तकालय में नजर आते हैं.
पुस्तकालय के सदस्य भी वहां बैठ कर पढना मुनासिब नहीं समझते हैं. जबकि पुस्तकालय में उर्दू, बंगला, हिंदी साहित्य की पुस्तकें मौजूद है. साथ ही इतिहास एवं अन्य विषयों से संबंधित कई विद्धानों की किताबें मौजूद हैं. पुस्तकालय में एक हॉल और एक कमरा बना है. हॉल के अंदर दो टेबल, दो बड़ा बेंच, आठ कुर्सी मौजूद है.
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