मधेपुरा : कंधे पर स्कूल बैग, गर्दन में पानी का थर्मस. कभी-कभी हाथ में प्रोजेक्ट वर्क. उफ! इतना वजन लाद कर बच्चे स्कूल कैसे जाते हैं? …पर करें क्या. मजबूरी है. क्यों भाई, हाइटेक होते इस दौर में भी स्कूल बैग का वजन क्यों नहीं कम हो रहा? शिक्षा धीरे -धीरे तथाकथित तौर पर हाइटेक होती जा रही है.
निजी स्कूल अपने प्रचार में बढ़-चढ़ कर स्कूल में स्मार्ट क्लास उपलब्ध होने की बात करते हैं. लेकिन बच्चों के बस्ते का वजन कम नहीं हो रहा. किताबों से भरे बैग को उठाने में बच्चों के नाजुक कंधे सक्षम नहीं होते. एनसीइआरटी और सीबीएसई सहित अन्य शिक्षण बोर्ड बच्चों के दिमाग से किताबों के बोझ को कम करने व पढ़ाई के सुगम तरीके विकसित करने के लिए प्रयोग करते रहते हैं.
अब समय आ गया है कि स्कूल भी इस दिशा में कदम उठायें. स्मार्ट क्लास का है ट्रेंड स्मार्ट क्लास का अर्थ है क्लास में एक बड़े स्क्रीन पर प्रोजेक्टर से डिजीटल बुक को इंटरएक्टिव तरीके से पढ़ाया जाना. ऐसा माना जाता है कि अगर किसी तथ्य को विजुअलाइजेशन के जरिये बताया जाये तो बच्चे तेजी से सीखते हैं.
ठीक उसी तरह जैसे किसी फिल्म या एनीमेशन फिल्म को देख कर वे कहानी को याद कर लेते हैं. लेकिन कंप्लीट स्मार्ट क्लास की लागत अधिक होने के कारण अधिकतर इसका सस्ता विकल्प तलाश लेते हैं. जहां स्मार्ट क्लास को बिना किसी शिक्षक के संचालित किया जाता है वहीं इन विकल्पों में शिक्षक की जरूरत पड़ती है.
जब क्लास है स्मार्ट, तो बस्ता क्यों नहीं आम तौर मधेपुरा के निजी स्कूलों में अच्छी कंपनी की किताबें इस्तेमाल की जाती हैं. किताबों में अंतर्वस्तु ज्यादा हों तो किताबें मोटी हो जाती हैं. फिर हर विषय के लिए अलग नोटबुक भी होते हैं. कक्षा में अलग-अलग विषयों में बच्चों को प्रोजेक्ट वर्क भी दिया जाता है. बस्ते के साथ उसे भी ढोना पड़ता है.
कुल मिला कर कक्षा तीन के बच्चे के बस्ते का वजन आम तौर आठ किलो होता है. पूर्ण तकनीक से ही होगा बस्ते का बोझ कम : विशेषज्ञ फोटो – संदीप शांडिल्य – 34मधेपुरा . तकनीकी विशेषज्ञ संदीप शांडिल्य कहते हैं कि प्रत्येक विषय के अलग-अलग नोट्स और बुक के बदले क्लाउड कंप्यूटिंग को अपनाने की जरूरत है. यह ऐसा साफ्टवेयर होता है जिसके जरिये कई छात्र एक साथ अपने शिक्षक से एक ही समय में कंप्यूटर के जरिये जुड़े रहते हैं. वे अपनी बातों को एक-दूसरे से साझा कर सकते हैं.
वहीं हार्ड कॉपी तथा परंपरागत पुस्तकों की जगह साफ्ट कॉपी पर जोर दिया जाना चाहिए. ताकि पेपरलेस स्कूल का वातावरण तैयार किया जा सके. स्कूल की वेबसाइट पर वर्गानुसार डिस्कशन फोरम हो जहां विद्यार्थी ओपन नेट इंटरएक्शन के जरिये अपनी समस्या का समाधान कर सकें. शिकायत पुस्तिका से लेकर फीस जमा करने की व्यवस्था भी ऑनलाइन हो.
स्कूल परिसर को वाइफाइ और हॉट स्पॉट परिसर बनाने की भी जरूरत है ताकि छात्र परिसर के किसी भी कोने से तकनीक का पूर्ण उपयोग कर सकें. आंशिक तौर पर तकनीक को अपनाने से कभी भी बस्ते का बोझ कम नहीं किया जा सकता है.
स्कूलों को पूर्ण रूप से तकनीकी आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है. अभिभावक रख सकते हैं नजरकंप्यूटर की बेसिक जानकारी सभी शिक्षक और विद्यालय के कर्मी तथा अभिभावकों को होना ही चाहिए. परीक्षा ऑन लाइन, स्टूडेंट मॉनिटरिंग, ट्रैकिंग साफ्टवेयर, मोबाइल एप्स , ऑन लाइन लाइब्रेरी का उपयोग किया जाये. इसके जरिये छात्र द्वारा किये गये होमवर्क और उसकी प्रगति को अभिभावक भी ऑनलाइन देख सकेंगे और छात्र भी इंटरनेट का दुरूपयोग न कर सकें.
अभिभावक के लिए भी हो होमवर्क अभिभावकों को अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाते हुए तकनीक को अपनाने की जरूरत है. इसके बारे में संदीप शांडिल्य कहते हैं कि अभिभावक अपने बच्चों को तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें. बच्चे इंटरनेट का सही उपयोग कर रहे हैं या नहीं इसके लिए खुद मॉनिटरिंग साफ्टवेयर इस्तेमाल कर उनकी सारी गतिविधि पर ध्यान रख सकते हैं.
इसके लिए जरूरी है कि उन्हें भी बेसिक कंप्यूटर का ज्ञान हो. बच्चों के सामने स्कूल या शिक्षक पर कोई टिप्पणी करने से उन्हें परहेज करना चाहिए. पूर्ण तकनीक अपनाने के कारण बजट पर पड़ने वाले बोझ को अति आवश्यक मान कर उसे स्वीकार करना चाहिए. स्कूल प्रबंधन से इसके बारे में लगातार संपर्क में रहना चाहिए.
कहते हैं मनोविज्ञान विशेषज्ञ मनोविज्ञान विशेषज्ञ निर्भय कुमार कहते हैं कि भारतीय समाज में गुरूकुल की परंपरा अभी भी अवचेतन में जड़ जमाये है. नयी शिक्षण पद्धति को लोगों ने स्वीकार तो कर लिया है लेकिन उन्हें गुरू -शिष्य परंपरा पर विश्वास है. दूसरी ओर किसी भी नयी चीज को लेकर मन में दुश्चिंताओं का जन्म उससे दूर करता है.
तकनीक को अपनाने को लेकर भी यही समस्या है. लेकिन तकनीक को अपनाये बगैर उसे समझा नहीं जा सकता है. – निर्भय कुमार, मनोविज्ञान विशेषज्ञतकनीक जरूरी, पर अभिभावक भी हों जागरूकफोटो – वंदना कुमारी – – चंद्रिका यादव – – किशोर कुमार – – अमन कुमार – 38मधेपुरा . बस्ते का बोझ कम करने के बारे में स्कूल संचालक भी गंभीर हैं.
वे अपने- अपने तरीके से पहल भी कर रहे हैं. होली क्रॉस स्कूल की निदेशक वंदना कुमारी कहती हैं कि यह सही है कि पूर्णतया तकनीक पर निर्भरता से स्कूल बैग की अनिवार्यता समाप्त हो जायेगी.
स्कूल में पढ़ाई में अगले सत्र से तकनीक को और शामिल करने की योजना है. तकनीकी रूप से बदलाव में अभिभावक की अहम भूमिका है. सीबीएसइ बोर्ड की ओर से प्रत्येक माह ऑनलाइन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. सूचना देने के बाद भी सभी बच्चे इसमें भाग नहीं ले पाते जबकि व्हाट्स एप नंबर भी दिया गया है.
जबकि बच्चे चाहें तो इसमें घर से भाग ले सकते हैं. अभिभावकों को तकनीकी रूप से जागरूक होना होगा. सभी बड़ी प्रतियोगिता परीक्षाएं अब ऑन लाइन होने लगी हैं. अगर बच्चे अभी से इसमें पारंगत नहीं होंगे तो भविष्य में पिछड़ जायेंगे.
बदलाव तुरंत तो संभव नहीं है लेकिन धीरे- धीरे होगा जरूर. माया एकेडमी की प्राचार्य चंद्रिका यादव कहती हैं कि तकनीक तो अनिवार्य है ही लेकिन इसके बगैर भी बस्ते का बोझ कम किया जा सकता है. उनके स्कूल में क्लास वर्क और होम वर्क की कॉपी एक कर दी गयी है. इससे नोट बुक का वजन पचास फीसदी कम हो गया.
वहीं कुछ विषयों में स्कूल में पठन पाठन की व्यवस्था की जा रही है. उनकी किताबें नहीं दी जायेगी. स्कूल में प्रैक्टिकल को बढ़ावा दे कर भी किताबों का बोझ कम किया जा रहा है. कंप्यूटर विषय में यही किया जा रहा है. वहीं दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल के निदेशक किशोर कुमार कहते हैं कि स्कूल में शहरी और ग्रामीण दोनों पृष्ठभूमि के बच्चे आते हैं.
सभी अभिभावक कंप्यूटर, लैपटॉप या ई – नोटबुक बच्चों को मुहैया कराने में सक्षम नहीं होते. ऐसे में स्कूल को पूर्णतया तकनीक लागू कर पाना संभव नहीं है. धीरे – धीरे परिवर्तन होगा. अभिभावकों को इस दिशा में जागरूक होने की जरूरत है. किरण पब्लिक स्कूल के प्रबंध निदेशक अमन प्रकाश कहते हैं कि वह इस दिशा में पहले से ही सोचते रहे हैं.
इसलिए प्रकाशन के चयन में वह काफी सजग रहते हैं. एनसीइआरटी की पुस्तकें काफी पतली होती है. इससे बस्ते का वजन काफी कम हो जाता है. क्लास में एक ही नोट बुक का उपयोग किया जाता है. इसे छात्र घर पर फेयर कर लेते हैं.
स्मार्ट क्लास की दिशा में भी काम किया जा रहा है. पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण अभिभावकों की जागरूकता काफी जरूरी है तभी तकनीक को पूर्ण रूप से लागू किया जा सकेगा. तकनीक तो है जरूरी लेकिन चिंता भी है : अभिभावक फोटो – रोमा प्रियदर्शी – – चंदन कुमार – – मोनी सिंह – – बी एन विवेका -मधेपुरा . सिंहेश्वर निवासी अभिभावक रोमा प्रियदर्शी कहती हैं कि बच्चों के बैग में वही किताबें होनी चाहिए जिन विषयों को उस दिन पढ़ाया जाना है.
तकनीक के इस्तेमाल से बच्चों के बस्ते का वजन कम तो होगा लेकिन होमवर्क की मॉनिटरिंग मुश्किल हो जायेगी. मधेपुरा आजाद नगर निवासी अभिभावक चंदन कुमार ने बताया कि स्कूलों को पूर्ण तकनीक को अपनाना चाहिए. इससे किताबों पर निर्भरता घटेगी. वहीं हमारी मानसिकता में भी बदलाव जरूरी है.
हम अपने बच्चों में कम उम्र में ही डाक्टर और इंजीनियर को देखने लगते हैं. और हमें लगता है कि भारी -भारी किताबों को पढ़ कर ही मुकाम हासिल किया जा सकता है. मधेपुरा जयपालपट्टी निवासी मोनी सिंह कहते हैं कि तकनीक का उपयोग पढ़ाई में निहायत ही जरूरी है.
लेकिन इंटरनेट से पढ़ाई के दौरान किसी गलत वेबसाइट के कारण बच्चे की दिशा बदल न जाये, इसलिए डर लगता है. सरकार भी शैक्षणिक वेबसाइट पर नजर रखे और स्कूल प्रबंधन भी मॉनिटरिंग का इंतजाम करें तो अभिभावक निश्चिंत हो सकेंगे. विवि कुलानुशासक डा बी एन विवेका कहते हैं कि छात्र हमेशा शिक्षक की शुभकामना से ही फलते फूलते हैं.
मशीनीकरण से बच्चों में ज्ञान तो बढ़ता है लेकिन संवेदनशीलता नहीं आती. समय के साथ चलना अनिवार्यता है लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे समाज के लिए होते हैं. बस्ते का बोझ करने के लिए विद्यालय प्रबंधन को सही प्लानिंग करनी चाहिए. कहते हैं
समाजशास्त्री समाजशास्त्री आलोक कुमार कहते हैं कि एक ओर निजी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा ही नहीं बल्कि कंप्यूटरीकृत शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है वहीं सरकारी विद्यालयों में कंप्यूटर को जंग लग रहा है. इस तरह अगर चलता रहा तो समाज में साफ – साफ दो तरह के छात्र का निर्माण होगा. इससे समाज दो हिस्से में बंट जायेगा.