लखीसराय : प्रखंड के अलीनगर पंचायत अंतर्गत पोखरामा गांव स्थित पंचायतन सूर्य मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां सूर्योपासना का विशेष महत्व है. हर वर्ष छठ पर्व के मौके पर यहां छठ व्रतियों व श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लोग मंदिर के समीप बने तालाब में भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित कर छठ मइया की आराधना करते हैं.
पोखरामा ही नहीं जिले भर के लोग यहां छठ करने आते हैं. छठ के मौके पर मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है. किऊल-जमालपुर रेलखंड के कजरा रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर उत्तर पश्चिम व अलीनगर के समीप एनएच 80 से महज तीन किलोमीटर दूर स्थित वर्तमान सूर्य मंदिर अपने तरह का पहला पंचायतन सूर्य मंदिर है. यहां पांचों देव एक साथ विराजमान हैं. मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्यनारायण विराजमान है.
जबकि इशान कोण में भगवान शिव, अग्नेय कोण में भगवान गणेश, नेऋत्य कोण में भगवान विष्णु व वायव्य कोण में आदि शक्ति मां दुर्गा विराजमान है. मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य के रथ का वजन सात सौ किलोग्राम है. 1200 वर्ग फीट में बने मंदिर की नींव पोखरामा के राम किशोर सिंह ने दो अप्रैल 2000 में रखी थी. मंदिर का निर्माण पूरा होने के उपरांत 11 मई 2006 को प्राण प्रतिष्ठा हुई. मान्यताओं के मुताबिक यहां सदियों से सूर्योपासना की परंपरा रही है.
सूर्यगढ़ा में कभी सूर्यवंशी लोगों का शासन था. यहां निवास करनेवाले सूरजा संप्रदाय के लोग प्रतिदिन भगवान सूर्य को जल अर्पित करते थे. दूध की पहली धार सूर्य को चढ़ाते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि भगवान सूर्य की निष्ठापूर्वक पूजन से व्यक्ति दैहिक, दैविक व भौतिक तापों से मुक्ति पा लेता है और उसकी सर्वकामना की सिद्ध होती है. पारिवारिक शांति देती हैं छठ मइया लखीसराय. प्रतिवर्ष कार्तिक मास में मनाये जाने वाला छठ पर्व लोगों की आस्था से जुड़ा है.
यह पर्व तुरंत फलदायक, मनोकामना सिद्धि व संतान सुख देनेवाला माना जाता है. मान्यता है कि निष्ठापूर्वक छठ मइया की आराधना से पारिवारिक सुख शांति व असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है. इसके अलावे संतान, धन व यश की प्राप्ति होती है. कार्तिक मास में होनेवाले महापर्व छठ का विशेष महत्व है. इसके लिए श्रद्धालु आश्विन पूर्णिमा से ही तैयारी शुरू कर देते है. अपने घरों की साफ-सफाई कर लोग महापर्व के लिए आवश्यक सामग्री की खरीदारी में जुट जाते हैं.
तड़के से ही ग्रामीण महिलाएं छठ मइया की महिमा मंडित गीतों को गाती नदी तट तक जाती हैं. चहुंओर श्रद्धा व भक्ति की मंदाकिनी बहती नजर आती है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का दिन होता है. इस दिन व्रती उपवास रख कर संध्या समय गुड़ से बनी खीर, पूड़ी, नेवैद्य आदि से छठ मइया की पूजा कर प्रसाद ग्रहण करती हैं.
षष्ठी तिथि सूर्योपासना का दिन होता है. यह तिथि सर्वदा समस्त कामनाओं को देने वाला होता है. जो व्यक्ति अपनी जय की इच्छा रखता है उसे षष्ठी को सभी समयों में प्रयत्नपूर्वक उपवास रखनी चाहिए. इस तिथि को व्रती बिना अन्न जल ग्रहण किये सबेरे से ही स्नान कर पकवान बनाने में जुट जाती है. इस कार्य में घर की अन्य महिलाएं पूरी स्वच्छता के साथ हाथ बंटाती हैं.
संध्या में बांस या पीतल के सूप में नारियल, मूली, सेब, डाभ, संतरा, मौसमी, सिंघाड़ा, किसमिस, गन्ना, सिंदूर, मखाना, अक्षत, पान, सुपारी, लाल धागा के साथ दीया जला कर नदी तट पर पानी में खड़े होकर अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करती हैं. सप्तमी तिथि को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित कर चार दिवसीय अनुष्ठान संपन्न होता है.
मान्यताओं के मुताबिक सूर्य पूरब दिशा का स्वामी होता है, इसलिए उगते सूर्य को अर्घ्य देने का चलन है. वहीं सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त होता है. जिसका स्वामी शनि है. इसलिए अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सप्तमी तिथि को तड़के उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने के पश्चात श्रद्धालु व्रती का चरण स्पर्श कर हैं. छठ पर्व में नदी या तालाब के तटों पर प्रसाद ग्रहण करने का अपना अलग महत्व है. इस दिन काफी संख्या में लोग अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी करते हैं. जिस कारण नदी या तालाब की तटों पर ढोल-बाजे के साथ उत्सवनुमा माहौल बना रहता है.