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धूल व प्रदूषण बना रहा अस्थमा का मरीज

स्वास्थ्य . अस्थमा दिवस पर पश्चिमी पाली में जागरूकता शिविर का आयोजन आज पूरे विश्व में 100 से 150 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अकेले भारत में लगभग 2 करोड़ अस्थमा के रोगी हैं, जो दुनिया के अस्थमा के मरीजों के लगभग 10 प्रतिशत हैं. किशनगंज : […]

स्वास्थ्य . अस्थमा दिवस पर पश्चिमी पाली में जागरूकता शिविर का आयोजन

आज पूरे विश्व में 100 से 150 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अकेले भारत में लगभग 2 करोड़ अस्थमा के रोगी हैं, जो दुनिया के अस्थमा के मरीजों के लगभग 10 प्रतिशत हैं.
किशनगंज : धूल, धुआं, बीडी, सिगरेट, रूई व कारपेट के रेशे, पशु व जानवर के संपर्क व फल और ठंडे खाद्य पदार्थो के सेवन से होने वाली एलर्जी के मरीजों की संख्या जिले में दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. आज पूरे विश्व में 100 से 150 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अकेले भारत में लगभग 2 करोड़ अस्थमा के रोगी हैं, जो दुनिया के अस्थमा के मरीजों के लगभग 10 प्रतिशत हैं. इनमें से लगभग 20 प्रतिशत 5 से 11 वर्ष के बच्चे हैं.
जो एक ¨चिंता का विषय है. ये बातें श्वास व हृदय एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा शिव कुमार ने कही. वे बुधवार को अस्थमा दिवस पर पश्चिम पाली में आयोजित एक शिविर में बोल रहे थे. उन्होंने बताया कि यातायात दवाब अधिक होने के कारण वातावरण में रसायन युक्त धुंआ मिश्रित रहता है. पालतू जानवर, जूट के रेशे भी वातावरण में तैरते हैं.
जगह-जगह कंस्ट्रक्शन कंपनियों का निर्माण कार्य भी चलता रहता है. नतीजा, जिले की आधी आबादी विभिन्न तरह की एलर्जी की शिकार हो चुकी है. इलाज नहीं मिलने और लगातार संपर्क में रहने के कारण यह एलर्जी अस्थमा में परिवर्तित हो जाती है. श्री कुमार ने बताया कि एलर्जी ज्यादातर बच्चों, किशोरों और महिलाओं को होती है.
जेनेटिक होती है अस्थमा व दमा : श्री कुमार ने बताया कि अस्थमा व दमा जेनेटिक बीमारी भी है. हर दसवां बच्चा अस्थमा जैसे लक्षणों से प्रभावित है. बेहतर होगा कि बच्चों को ठंडी खाद्य सामग्री खाने को न दें. धूल, धुआं, पालतू पशुओं व जानवरों से बचाएं. बीडी-सिगरेट पीते समय ध्यान रखें कि धुआं बच्चे को प्रभावित न करें. बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज शुरू कराएं.
लाइलाज है अस्थमा व सीओपीडी : उन्होंने ने कहा अस्थमा जेनेटिक होने के साथ लाइलाज भी है. अस्थमा के मरीजों के लिए इनहेलर जीवनदायिनी समान है. इसके इस्तेमाल से सांस नली की सिकुड़न कम होती है. दवा सीधे फेफड़ों तक पहुंच जाती है. लाइलाज बीमारी होने के कारण दवा से इसका प्रभाव कम हो जाता है. अचानक दम फूलने पर हर 20-20 मिनट बाद इनहेलर लें.
प्रदूषित पर्यावरण अस्थमा का बड़ा कारण
अस्थमा के प्रति जागरूक होने
की जरूरत
कॉकरोच और जंक फूड से बच्चों को अस्थमा
सावधानी बरतकर सामान्य जीवन जी सकते हैं अस्थमा रोगी
अस्थमा से बचने के लिए पालतू कुत्ते, बिल्ली व कबूतर से बनायें दूरी
आधुनिक जीवनशैली की देन है अस्थमा
सांस फूले सीटी बजे तो समझो अस्थमा है
उन्होंने ने बताया कि हमेशा खांसी, जुकाम व एलर्जी बने रहना भविष्य में अस्थमा के संकेत हैं. करीब बीस प्रतिशत महिलाएं भी अस्थमा मरीज होती हैं. चूल्हे पर काम करने, सब्जी आदि में तड़का लगाते समय धुआं फेफड़ों में पहुंचने, हुक्का व बीड़ी पीने, कमरे में मच्छर मार क्वाइल जलाने के कारण महिलाओं को यह बीमारी घेर लेती है.
एलर्जी व अस्थमा
से बचाव
अस्थमा रोगी को यह अच्छी तरह पता होता है कि अस्थमा का अटैक किन कारणों से पड़ता है, ऐसे रोगियों को अटैक के लिए जिम्मेदार कारणों से दूर रहना चाहिए. उन्होंने बताया कि मिसाल के तौर पर घर में धूल झाड़ने के बजाय गीले कपड़े से सफाई करनी चाहिए. घर को सीलन से बचाना चाहिए व पालतू जानवरों को नहीं पालना चाहिए. इसके अलावा स्प्रे व कॉस्मेटिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अत्यधिक ठंड व गरमी से भी बचना चाहिए
. ऐसा कर अस्थमा के अटैक से बचाव किया जा सकता है. रोगी अगर डॉक्टर की सलाह पर इन्हेलर का प्रयोग करता है तो वह सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है. डा कुमार ने कहा कि अस्थमा रोगियों के इलाज के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. प्रतिदिन योग व व्यायाम करके ओर धूल वाले स्थानों से बचाव कर अस्थमा रोगी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है.

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