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डुमरिया खुर्द में होती है सौ वर्षों से मां की पूजा

डुमरिया खुर्द में होती है सौ वर्षों से मां की पूजा खुले मैदान में रामलीला का मंचन है विशेषभव्य मंदिर की छटा है निरालीफोटो 1 मेंकैप्सन: मंदिर का दृश्यप्रतिनिधि, परबत्ताप्रखंड में दशहरा को लेकर माहौल भक्तिमय हो गया. शारदीय नवरात्र के अवसर पर गली गली में दुर्गा सप्तशती की गूंज सुनायी देने लगी है. विगत […]

डुमरिया खुर्द में होती है सौ वर्षों से मां की पूजा खुले मैदान में रामलीला का मंचन है विशेषभव्य मंदिर की छटा है निरालीफोटो 1 मेंकैप्सन: मंदिर का दृश्यप्रतिनिधि, परबत्ताप्रखंड में दशहरा को लेकर माहौल भक्तिमय हो गया. शारदीय नवरात्र के अवसर पर गली गली में दुर्गा सप्तशती की गूंज सुनायी देने लगी है. विगत एक दशक में प्रखंड विभिन्न पंचायतों के कई गांवों में भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ है. प्रखंड के कवेला पंचायत अंतर्गत डुमडि़या खुर्द गांव स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर इस कड़ी में शामिल है. गंगा किनारे स्थित इस मंदिर की भव्यता एवं मन्नतों के पूरा होने का पौराणिक इतिहास इसे खास बनाती है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिवर्ष बढती जा रही है. ऐसी मान्यता है कि यहाँ की मां भगवती की एक विशेषता यह है कि यहां फुलाईस के द्वारा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. यहां दशहरा के अवसर पर हर वर्ष खुले मैदान में रामलीला का आयोजन होता है जो अपने आप में विशेष है. ग्रामीण रविन्द्र झा ने बताया कि पहले यहां पूजा के दौरान बलि प्रथा का प्रचलन था जिसे साठ वर्ष पहले स्थायी रुप से खत्म कर दिया गया. मंदिर के पुजारी ने वासुकी मिश्र बताया कि इस मंदिर की स्थापना 1902 में हुआ था तथा पहले यह मंदिर वर्तमान स्थल से दो किलोमीटर पश्चिम में स्थित था. गंगा के कटाव के कारण मंदिर गंगा में समा गया. कटाव से प्रभावित लोगों ने एक निश्चित स्थान पर आश्रय लिया. यहां नरसिंह लाला नामक व्यक्ति ने अस्थायी मंदिर बनाकर मां की पूजा अर्चना शुरू कर दिया. कालांतर में यह परिवार विस्थापित होकर भागलपुर तथा मुंगेर में बस गया. तब ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मां दुर्गा को एक फूस के घर में स्थापित कर पूजा शुरू कर दिया. पंडित वासुकी मिश्र ने बताया कि वे 1976 से इस मंदिर में मां की पूजा करते आ रहे हैं. माना जाता है कि यहां आने वाले भक्त कभी निराश नहीं लौटते हैं. गांव के शिव कुमार राय बताते हैं कि डुमडि़या खुर्द में सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा है. यहां मेला के अवसर पर नाटक, जागरण आदि का आयोजन होता है. यहां दूर्गा पूजा के अवसर पर दूर दूर से लोग अपनी आस्था व्यक्त करने तथा मन्नतें पूरी होने के बाद भगवती का आभार प्रकट करने आते हैं. इस दौरान लोग कीमती चढावा चढाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं. ग्रामीणों के सहयोग से अब एक भव्य मंदिर बन जाने से यह दर्शनीय भी हो गया है.

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