खगड़िया : जिला मुख्यालय के शहर सहित दर्जनों गांवों को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए करोड़ो रुपये पानी की तरह बहा दिये गये. फिर भी शहर पानी के सैलाब से आज भी असुरक्षित है. अगर खगड़िया से लेकर दरभंगा जिले तक कहीं भी नदी का तटबंध टूटे तो शहर की सड़कों पर गाड़ियां नहीं बल्कि नाव चलेगी. जैसा कि वर्ष 2000,2002 एवं 2007 में आयी बाढ़ के दौरान देखने को मिला था. जानकार बताते हैं कि वर्ष 1987 के बाद के दौरान भी यही हुआ था.
अधूरी रह गयी योजना
ऐसा नहीं है कि नगर सुरक्षा तटबंध का निर्माण कार्य आरंभ नहीं हुआ. करीब सात साल पहले यानी वर्ष 2009-10 में तटबंध का निर्माण कार्य आरंभ हुआ. लेकिन सात साल बाद भी कार्य पूरा नहीं हो पाया. जबकि नगर सुरक्षा तटबंध को दो साल में ही पूरा कराने का लक्ष्य था. जानकार बतातें है कि जितना निर्माण हुआ है. उससे 6 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुका है. लेकिन निर्माण कार्य अधूरी रहने के कारण पानी से बचाव के लिए बनी योजना पर ही पानी फिर गया.
28.4 किमी बनना था तटबंध
विभागीय जानकारी के मुताबिक बेगूसराय जिले के बगरस स्लुइस गेट से अलौली प्रखंड के संतोष पुल तक करीब 28.4 किमी चनहा नदी पर तटबंध बनना था. चनहा नदी के दक्षिणी भाग पर उंचा व चौड़ा तटबंध का निर्माण कराया जाना था. ताकि बाढ़ के पानी को इधर आने से रोका जा सके. तटबंध का निर्माण पूरा हो जाने के बाद बखरी अनुमंडल के कई पंचायतों के साथ साथ सदर प्रखंड के एक दर्जन से अधिक पंचायत,अलौली के कई गांव सहित मानसी प्रखंड के गांव भी बाढ़ के पानी से सुरक्षित हो जायेंगे. अगर कभी बगरस से खगड़िया के बीच बूढ़ी गंडक का उत्तरी तटबंध टूटा है तभी इन क्षेत्रों में पानी प्रबेश कर पायेगा.
चार किमी कार्य है अधूरा
बभनगामा मौजा के करीब चार किमी तटबंध का निर्माण पूरा नहीं हो पाया है. जिस कारण इस महत्वपूर्ण परियोजना पर ग्रहण लगा हुआ है. बेगूसराय से संतोष पुल तक करीब 24 किमी लंबे तटबंध का निर्माण काफी पहले कराया जा चुका है. लेकिन बभनगामा मौजा में पड़ने वाले चार किमी हिस्से पर निर्माण अधूरा है. यहां करीब पांच वर्षों से काम रुका हुआ है. बताया जाता है कि यहां काम इसलिए नहीं हो पाया है क्योंकि यहां के किसानों ने काम को रोक दिया था.
भू-अर्जन का है पेच
भू अर्जन की पेच के कारण शहर एवं लाखों लोगों की सुरक्षा फसी हुई है. अगर तटबंध निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण का कार्य पूर्ण हो गया होता तो काफी पहले तटबंध भी बन गये होते. बभनगामा मौजा में इसलिए तटबंध नहीं बन पाये क्योंकि यहां कार्य आरंभ करने के पूर्व जमीन का अधिग्रहण नहीं किया और न ही किसानों को मुआवजा दिया गया. सूत्र बताते है कि मुआवजा नहीं मिलने से नाराज लोगों ने वर्ष 11-12 में ही काम रोक दिया. हालांकि उसके बाद भूअर्जन की प्रक्रिया तो हुई लेकिन उसकी रफ्तार कछुए से भी धीमी रही. जिस कारण अब तक यह काम पूरा नहीं हो पाया है जिसके कारण लोगों को भारी परेशानी होती है.
बीते दो दशक के दौरान यानी 1987 से 2007 के बीच चार बार बाढ़ के कारण शहर की सड़कों पर नावें चली थी. स्कूल कॉलेज,सरकारी दफ्तारों,अस्पताल में पानी प्रवेश कर गया था. कई महत्वपूर्ण फाइल नष्ट हुई थी. रेलवे लाइन के उत्तरी भाग अवस्थित लगभग सभी घरों में बाढ़ का पानी घुसा था. इन चार साल के बाद बाढ़ ने काफी नुकसान पहुंचाया था. बार बार आ रही बाढ़ से निजात दिलाने के लिए वर्ष 2007 के बाढ़ नगर सुरक्षा तटबंध बनाने का निर्णय लिया गया. ताकि शहर के साथ साथ खगड़िया के कई पंचायत एवं अलौली के कई गांवों को बाढ़ के पानी से सुरक्षित किया जाये.
करोड़ों खर्च फिर भी खतरा बरकरार : करोड़ों खर्च के बाद भी न शहर सुरक्षित हुआ न पंचायत और न ही गांव और इन क्षेत्र में रहने वाले लाखों की आबादी आज भी लोग बाढ़ के वक्त भय के साये में जीते हैं. उन्हें इस बात का डर सताता है कि कहीं इस बार भी बाढ़ का पानी उनके घर में न घुस जाये. बूढ़ी गंडक में उफान से शहर के कई इलाकों में बाढ़ का कहर टूटने लगता है.