आजमनगर : मजदूरों को अपने पंचायत में ही रोजगार देने के िलए लायी गयी मनरेगा योजना कई महीनों में उद्देश्य से भटकती नजर आ रही है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में सिर्फ कुछ हीं मजदूरों को सौ दिन का रोजगार मयस्सर हो पाया है. प्रखंड में कुल जॉब कार्डधारियों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है. […]
आजमनगर : मजदूरों को अपने पंचायत में ही रोजगार देने के िलए लायी गयी मनरेगा योजना कई महीनों में उद्देश्य से भटकती नजर आ रही है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में सिर्फ कुछ हीं मजदूरों को सौ दिन का रोजगार मयस्सर हो पाया है. प्रखंड में कुल जॉब कार्डधारियों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है. इसमें एक्टिव मजदूरों की संख्या लगभग पांच हजार से ज्यादा है. इन जॉब कार्डधारियों ने वर्ष 2016-17 में एक लाख से ज्यादा मानव कार्य दिवस में कार्य किया है.
प्रखंड में कुल 28 पंचायतें हैं. जिन मजदूरों को मनरेगा में काम मिला भी है, वो मजदूरी के भुगतान के लिए पिछले 3-4 महीनों से मुखिया रोजगार एवं मनरेगा कार्यालय का चक्कर लगा कर थक चुके हैं. इससे मजदूर तबके के लोग पलायन को मजबूर हैं. इसका अनुमान आजमनगर, खुरियाल, कमलपुर, भवानीपुर, सालमारी स्टेशनों से खुलने वाली ट्रेनों में हो रही भीड़ से सहज ही लगाया जा सकता है.
रोजाना इन ट्रेनों में मजदूरों की रहती है भीड़
कटिहार रेलवे स्टेशन कोसी व सीमांचल का सबसे बड़ा स्टेशन व पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे का सबसे बड़ा रेल डिवीजन होने की वजह से कटिहार स्टेशन से खुलने वाली ट्रेन या स्टेशन से होकर परिचालित होने वाली ट्रेनों से मजदूरों की पूरी जमात दूसरे राज्यों में कमाने के लिए जाती है. कटिहार से अमृतसर जाने वाली ट्रेन आम्रपाली एक्सप्रेस, महानंदा एक्सप्रेस, नार्थ ईस्ट, सीमांचल एक्सप्रेस में रोजाना हजारों की संख्या में मजदूरों का पलायन दूसरे राज्यों में हो रहा है.
इन मजदूरों को यदि यहां पूरे साल काम मिले, तो निश्चित रूप से पलायन पर रोक लग सकती है. लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है. स्टेशन पर प्रतिदिन सैकड़ों मजदूर मिल जायेंगे, जो रोजी-रोटी के सिलसिले में पंजाब, हरियाणा व दिल्ली की ओर रुख करते हैं.
पंजाब, हरियाणा बना इनका ठिकाना
कोसी और सीमांचल क्षेत्रों से अपने रोजी-रोटी के लिए मजदूर खासकर पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों का रुख करते हैं. गौरतलब है कि पछिया हवा चलने से इन राज्यों में गेहूं की फसल की कटनी शुरू हो गयी है. इन राज्यों में मजदूरों की कमी होने की वजह से उन्हें दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूरों से काम करवाना पड़ता है.
इसके एवज में मजदूरों को अच्छी मजदूरी मिल जाती है. इसलिए बिहार के मजदूर इस फसल कटनी के समय में इन राज्यों में जाने के लिए विवश हो जाते हैं. पूर्णिया जिला के धमदाहा निवासी बेचन कुमार, छोटू आदि का कहना है कि हमलोगों के पास अपनी जमीन भी नहीं है. ताकि हमलोग खेती कर सकें. गरीबी की हालत में हमें कुछ पैसे कमाने के लिए परदेश का रुख करना पड़ता है.