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कुपोषण व बालश्रम में बीत रहा बचपन

कुपोषण व बालश्रम में बीत रहा बचपन -प्रभात पड़ताल बाल दिवस. गरीब बच्चों की सामाजिक स्थिति में नहीं हुआ सुधारफोटो नं. 4,5,6 कैप्सन-इसी तरह शहर में बालश्रम की उड़ रही धज्जियां. प्रतिनिधि, कटिहारसुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाये गये प्रतिबंध व केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये कानून के अस्तित्व में आने के वर्षों बाद भी बालश्रम की […]

कुपोषण व बालश्रम में बीत रहा बचपन -प्रभात पड़ताल बाल दिवस. गरीब बच्चों की सामाजिक स्थिति में नहीं हुआ सुधारफोटो नं. 4,5,6 कैप्सन-इसी तरह शहर में बालश्रम की उड़ रही धज्जियां. प्रतिनिधि, कटिहारसुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाये गये प्रतिबंध व केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये कानून के अस्तित्व में आने के वर्षों बाद भी बालश्रम की समस्या समाप्त नहीं हुई है. आज भी बच्चे अलग-अलग ट्रेडों में खतरनाक एवं गैर खतरनाक कामों में शामिल होकर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. शनिवार यानी 14 नवंबर को बाल दिवस है. इस दिवस को लेकर प्रभात खबर ने शुक्रवार बाल दिवस को लेकर बच्चों की विभिन्न स्थितियों पर पड़ताल की है. पड़ताल के दौरान यह बात उभर कर सामने आयी कि राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव की वजह से बच्चे आज भी स्कूल के बजाय होटल, गैरेज, ईंट भट्ठा सहित विभिन्न ट्रेडों में मजदूरी करने को विवश हैं. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार के राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना समिति, कटिहार के ताजा रिपोर्ट के अनुसार कटिहार जिले में अब भी 23 हजार से अधिक बाल मजदूर हैं. एनसीएलपी के द्वारा तीन माह पूर्व जिले के सभी 16 प्रखंडों में सर्वेक्षण करा कर बाल श्रमिक चिह्नित किया है. बालश्रम उन्मूलन को लेकर सरकार व गैर सरकारी स्तर पर किये जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद बाल श्रमिकों का यह आंकड़ा प्रगतिशील कटिहार व यहां के समाज को आईना जरूर दिखाता है. वहीं दूसरी ओर कुपोषण में भी बच्चों का बचपन झुलस रहा है. जिले में हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है. -राजनीतिक प्रशासनिक इच्छाशक्तिबालश्रम उन्मूलन को लेकर कटिहार जिले में केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा कई योजनाएं चलायी गयी. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार की इकाई राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना समिति द्वारा इस जिले में वर्ष 2007 से 100 बाल श्रमिक विशेष विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. इस बीच अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के द्वारा कटिहार जिले को बालश्रम मुक्त जिला बनाने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम किया. करीब एक-डेढ़ साल काम करने के बाद आइएलओ का प्रोजेक्ट बंद हो गया. इसके अतिरिक्त विभिन्न कल्याणकारी योजना से बाल श्रमिक परिवार को लाभान्वित करने का प्रावधान है. लेकिन राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से बच्चे आज भी काम करने को अभिशप्त हैं. -नहीं हो सकी टास्क फोर्स का गठनबालश्रम को रोकने के लिए बनी राज्य कार्य योजना के तहत जिला, प्रखंड व पंचायत स्तर पर बालश्रम की रोकथाम को लेकर टास्क फोर्स गठित करने का आदेश राज्य सरकार ने दो साल पहले दिया था. लेकिन आज तक प्रखंड व पंचायत स्तर पर टास्क फोर्स का गठन नहीं हो सका है. -यह है प्रावधानसुप्रीम कोर्ट के आदेश व बाल श्रमिक निषेध अधिनियम 1986 के तहत 14 वर्ष तक के बच्चों से किसी भी तरह का मजदूरी करना प्रतिबंधित है. बाल मजदूरी करने वाले नियोजक से अधिनियम के तहत 3 माह से एक वर्ष तक की सजा व 10 से 20 हजार रुपये तक के जुर्माना का प्रावधान है. सरकारी कर्मचारी व पदाधिकारी द्वारा बच्चे से काम लेने पर उसके विरुद्ध दंडात्मक व विभागीय कार्रवाई का प्रावधान है. -सरकारी प्रयास बेअसरबाल श्रमिक को मुक्त कराने को लेकर श्रम संसाधन विभाग द्वारा जिले में धावा दल का गठन किया गया है. लेकिन संसाधन के अभाव में धावा दल सक्रिय रूप से काम नहीं कर रहा है. वर्ष 2014-15 में करीब 45 बाल श्रमिक को धावा दल द्वारा मुक्त कराया गया है. हालांकि जिले में बाल संरक्षण को लेकर जिला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति, चाइल्ड लाइन आदि कई सरकारी इकाई है. इस तरह के तमाम सरकारी व गैर सरकारी इकाई होने के बावजूद कटिहार जिला बालश्रम का कलंक लगाये हुए है. -केस स्टडी-एककटिहार जक्शन के पार्सल गोदाम के समीप 12 वर्षीय सोनू हर दिन कचड़ा चुनता है. सोनू को नशा का भी आदत है. कचड़ा चुन कर वह अपना भूख मिटाता है. गुरुवार को जब उनसे बातचीत करने की कोशिश किया तो वह भाग निकला. -केस स्टडी-दोशहर के न्यू मार्केट रोड के सब्जी मंडी में बंटी कुमार आलू-प्याज की दुकान पर बैठता है. बंटी का उम्र करीब 11 वर्ष है. पूछने पर वह कहता है कि इसी आलू-प्याज की कमाई से 5 सदस्यों का परिवार चलता है. हालांकि वह यह भी स्वीकार करता है कि वह स्कूल भी जाते हैं. -कुपोषण में दम तोड़ता बचपनजिले के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में कुपोषण की वजह से बच्चों का समग्र विकास नहीं हो पाता है. औसतन हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है. सदर अस्पताल परिसर में 20 बेड का एक जिला स्तरीय पोषण पुनर्वास केंद्र हैं, जो जिले भर के अति कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए है. लेकिन सरकार की नीतियों की वजह से सब बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है. फलस्वरूप बचपन का कुपोषण जिंदगी भर पीछा नहीं छोड़ता है. यद्यपि आंगनबाड़ी केंद्र में कुपोषित व अतिकुपोषित बच्चों के लिए कुछ सुविधा दिये जाने का प्रावधान है. जबकि आंगनबाड़ी केंद्र की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. -कटिहार जिले में बाल श्रमिकों की संख्याएनसीएलपी द्वारा अभी हाल में बाल श्रमिकों का सर्वे कराया गया है. एनसीएलपी एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार कटिहार जिले में बाल श्रमिकों की कुल संख्या 23955 है. यह बाल मजदूर होटल, ढाबा, मोटर गैरेज, ईंट भट्ठा, घरेलू मजदूरी, खेत कृषि कार्य आदि कामों में संलिप्त है. ताजा आंकड़ों के अनुसार बाल श्रमिकों की प्रखंडवार संख्या इस प्रकार है. प्रखंड बाल श्रमिकों की संख्याकटिहार 2633मनसाही 441 हसनगंज 400 मनिहारी 1794प्राणपुर 860समेली 988 कुरसेला 456अमदाबाद 1370 बलरामपुर 783 कदवा 3124 डंडखोरा 592 आजमनगर 2174 कोढ़ा 2346बारसोई 1800 बरारी 2814 फलका 1380 कुल 23955(स्रोत – एनसीएलपी, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार)

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