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दांत के डॉक्टर कर रहे खांसी-बुखार का इलाज

भभुआ (सदर) : जिले में चिकित्सा व्यवस्था का हाल बदतर हो चुका है. सरकार आम नागरिकों को मुफ्त में चिकित्सीय सुविधा सहित दवाएं दे रही है, लेकिन उस चिकित्सीय सुविधा और दवाओं का क्या मतलब जब उसकी जांच करने और मर्ज की दवा लिखने वाला ही न हो. सदर अस्पताल सहित पूरे जिले में चिकित्सकों […]

भभुआ (सदर) : जिले में चिकित्सा व्यवस्था का हाल बदतर हो चुका है. सरकार आम नागरिकों को मुफ्त में चिकित्सीय सुविधा सहित दवाएं दे रही है, लेकिन उस चिकित्सीय सुविधा और दवाओं का क्या मतलब जब उसकी जांच करने और मर्ज की दवा लिखने वाला ही न हो. सदर अस्पताल सहित पूरे जिले में चिकित्सकों की कमी के चलते मरीजों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है.
लोग अस्वस्थ होने के बाद उम्मीद से सरकारी अस्पताल आते हैं, लेकिन यहां चिकित्सकों की कमी के चलते उनकी उम्मीद धरी की धरी रह जा रही है. सदर अस्पताल सहित जिले में नियमित चिकित्सकों के 114 पद सृजित हैं. लेकिन यहां मात्र 44 नियमित चिकित्सक कार्यरत हैं, जबकि 70 पद अब भी रिक्त हैं. इसी प्रकार संविदा चिकित्सकों के 48 पद में 29 पर ही चिकित्सक कार्यरत हैं, जबकि 19 पद रिक्त हैं.
जिले में चिकित्सकों की कमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सदर अस्पताल के ओपीडी में आये सामान्य मरीजों का इलाज दांत के डॉक्टर द्वारा किया जा रहा है. चिकित्सक भी बिना आला लगाये जांच किये बगैर मरीज के कहे अनुसार दवा लिख दे रहे हैं.
वहीं ओपीडी में ही नेत्र चिकित्सक की जगह नेत्र सहायक से आने वाले मरीजों की जांच अस्पताल प्रबंधन द्वारा करायी जा रही है. गौरतलब है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए ग्रामीण तबके के गरीब लोगों सहित आर्थिक रूप से कमजोर लोग ही इलाज के लिए आते हैं और उन्हें मालूम नहीं रहता कि वह जिससे इलाज करा रहा हैं, वह किस मर्ज के डॉक्टर हैं.
दो-दो शिफ्टों में करना पड़ रहा काम:सदर अस्पताल में इन दिनों डॉक्टरों की घोर कमी है. खुद डॉक्टर भी इस कमी से परेशान हैं, क्योंकि उन्हें भी कमी के चलते दो-दो शिफ्टों में ड्यूटी करनी पड़ रही है. कुछ डॉक्टरों को अस्पताल में ड्यूटी के दौरान ही ट्रेनिंग और प्रखंडों में लगे स्वास्थ्य शिविरों में भेज दिया जा रहा है.
बुधवार को सदर अस्पताल के ओपीडी स्थित महिला विभाग में तैनात डॉ रचना पटेल की ड्यूटी थी. लेकिन उन्हें अस्पताल में ड्यूटी के दौरान ही चल रहे जच्चा बच्चा सुरक्षा के तहत आयोजित ट्रेनिंग में भेज दिया गया. इधर ग्रामीण इलाकों से इलाज के लिएआयी महिलाएं ओपीडी में लेडी डॉक्टर को ढूंढ़ती रही. वैसे ही अस्पताल के इमरजेंसी में डॉ सिद्धार्थ राज सिंह की ड्यूटी थी.
लेकिन, 11 बजे तक इमरजेंसी में ड्यूटी कराने के बाद उन्हें स्कूलों में लगे नि:शक्त जांच शिविर में जांच के लिए भगवानपुर भेज दिया गया. अस्पताल के अधिकारियों से इस संबंध में बात की जाती है, तो वह प्रदेश स्तर पर डॉक्टरों की कमी की जानकारी भेज देने की बात करते हुए इस अहम मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया जाता है. जबकि प्रदेश स्तर के पदाधिकारी इन परेशानियों से मुंह मोड़ मूकदर्शक बने हुए हैं.

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