खेतों में जला रहे, कम हो रही मिट्टी की उर्वरा शक्तिपशुपालकों पर भी पड़ रहा इसका प्रतिकूल असर प्रतिनिधि, मोहनिया (नगर) नये युग में किसान तेजी से वैज्ञानिक विधि की ओर भाग रहे हैं. कम लागत व मेहनत में किसान रासायनिक खादों व कृषि यंत्रों का प्रयोग कर अधिक उपज व लाभ प्राप्त करने की रेस में हैं. इसके प्रयोग से प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. क्षेत्र के किसान अत्याधुनिक कृषि यंत्रों के प्रयोग व वैज्ञानिक विधि से की जाने वाली खेती के रंग में रंग चुके हैं. आधुनिक किसान धान काटने के लिए हार्वेस्टर का प्रयोग कर रहे हैं. हार्वेस्टर से धान काटने के बाद बहुत से किसान जल्दी गेहूं की बुआई करने को लेकर खेतों में ही धान के पुआल को जला दे रहे हैं. कुछ किसान खेतों में पुआल को जला देना खेती के लिए फायदेमंद मानते हैं, क्योंकि इससे खर पतवार व कीड़े मकोड़े जल कर नष्ट हो जाते हैं. शायद उन्हें यह नहीं मालूम कि खेत के ऊपरी भाग की करीब डेढ इंच तक की मिट्टी ही उपजाऊ होती है, जो खेतों में पुआल या गेहूं के डंठल फूंके जाने से जल कर कंकरीली हो जाती है. इससे मिट्टी की जल संचरण की क्षमता कम होने के साथ ही उर्वरा शक्ति भी क्षीण होने लगती है. बप्रधानमंत्री ने भी इस बात का किया था जिक्र पुआलों को खेत में ही जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है. इस बात का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी कही थी और किसानों से अपील की थी कि ऐसा न करें. श्वेत क्रांति भी हो रही प्रभावित खेतों में पुआल व गेहूं के डंठल जलाये जाने का असर केवल उर्वरा शक्ति को ही नहीं प्रभावित करती, बल्कि पशुपालकों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले अधिकांश लोग पशुपालन कर अपनी जीविका चलाते हैं. आज उस पर भी ग्रहण लगने लगा है. इसका सीधा असर श्वेत क्रांति पर पड़ रहा है. आज आलम यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 20 प्रतिशत लोग मवेशी नहीं रख रहे हैं. चारा की बढ़ रही कीमत पुआल व गेहूं के डंठल को खेतों में जला देने से भूमिहीन ग्रामीणों के सामने पशुओं के चारा को लेकर सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है. पुआल की कुट्टी इस समय धान के सीजन में 350 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि जुलाई से अक्तूबर के बीच इसकी कीमत 350 से बढ़ कर 800 रुपये प्रति क्विंटल हो जाती है. यही हाल भूसा का रहता है. सीजन में 350 से 400 रुपया क्विंटल व आगे चल कर 900 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच जाता है. इसका सबसे बड़ा कारण खेतों में जलाये जा रहे पुआल व गेहूं का डंठल है. खेतों में जलाये जा रहे पुआल से जहां धरती का ताप बढता है वहीं इससे निकलने वाला धुआं वातावरण को भी प्रदूषित करता हैं.क्या कहते हैं बीएओ इस संबंध में प्रखंड कृषि पदाधिकारी गणेश प्रसाद कहते हैं कि किसानों द्वारा ऐसा किया जाना बिल्कुल गलत है. किसान जानकारी के अभाव में ऐसा करते हैं. इससे पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. फोटो:-1.खेत में जलाये गये पुआल
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खेतों में जला रहे, कम हो रही मट्टिी की उर्वरा शक्ति
खेतों में जला रहे, कम हो रही मिट्टी की उर्वरा शक्तिपशुपालकों पर भी पड़ रहा इसका प्रतिकूल असर प्रतिनिधि, मोहनिया (नगर) नये युग में किसान तेजी से वैज्ञानिक विधि की ओर भाग रहे हैं. कम लागत व मेहनत में किसान रासायनिक खादों व कृषि यंत्रों का प्रयोग कर अधिक उपज व लाभ प्राप्त करने की […]
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