बेरुचि4पांच साल में 100 पुरुष भी नहीं करा सके नसबंदी, महिलाओं की संख्या हजारों में
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नसबंदी से भाग रहे पति, पत्नियां संभाल रहीं मोर्चा
बेरुचि4पांच साल में 100 पुरुष भी नहीं करा सके नसबंदी, महिलाओं की संख्या हजारों में बड़ी कठिन है पुरुष नसबंदी की डगर भभुआ सदर : ‘परिवार नियोजन में साझेदारी, अब होगी पुरुषों की सक्रिय भागीदारी’ यह स्लोगन परिवार नियोजन के प्रति जागरूक करने की ओर साफ-साफ इशारा कर रहा है. इसको ले अब तक पुरुष […]
बड़ी कठिन है पुरुष नसबंदी की डगर
भभुआ सदर : ‘परिवार नियोजन में साझेदारी, अब होगी पुरुषों की सक्रिय भागीदारी’ यह स्लोगन परिवार नियोजन के प्रति जागरूक करने की ओर साफ-साफ इशारा कर रहा है. इसको ले अब तक पुरुष उदासीन बने हुए हैं. यूं कहा जाये कि परिवार नियोजन के मामले में पुरुषों की भागीदारी महिलाओं के अपेक्षा काफी कम है, जो देश की बढ़ती जनसंख्या की गति पर विराम लगाने में रोड़ा प्रतीत हो रहा है. यह विडंबना ही है कि 21वीं सदी में दुनिया कहां से कहां चली गयी है.
लेकिन, पुरुष रुढ़ीवादी सोच के चलते नसबंदी से दूर भाग रहे हैं. पुरुष नसबंदी का कड़वा सच यह है कि पांच साल में इस जिले में नसबंदी करवानेवाले पुरुषों की संख्या 100 भी नहीं है. जबकि, इसके विपरीत बंध्याकरण करवानेवाली महिलाओं की संख्या हजारों में है. परिवार नियोजन में बात एकदम साफ है कि नसबंदी से पति भाग रहे और पत्नियां ही मोर्चा संभाल रहीं़
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर चांद ब्लॉक के सिहोरिया गांव की रहनेवाली आशा शांति देवी बताती हैं कि नसबंदी के लिए गांव के पुरुष बात करना भी पसंद नहीं करते हैं. महिलाएं अगर नसबंदी करवाना चाहती हैं तो उनको भी अपने पति और सास से सहमति लेनी पड़ती है. इसलिए भी बहुत समस्या होती है. नसबंदी या बंध्याकरण के लिए महिलाओं के साथ-साथ उनके परिवार की भी काउंसेलिंग करनी पड़ती है. गांव की महिलाएं भी दो बच्चे होने के बाद भी परिवार नियोजन अपनाने से कतराती हैं.
अब नसबंदी का तरीका सहज नसबंदी के प्रति पुरुषों की उदासीनता के पीछे का कारण गलत भ्रांतियां है, जिससे पुरुष उबर नहीं पा रहा है. पुरुषों के बीच यह बात फैली हुई है कि नसबंदी कराने के पश्चात व्यक्ति नपुंसक हो जाता है. लेकिन, इस बात में कहीं से भी सच्चाई नहीं है. अब तो नसबंदी का तरीका इतना सहज है कि इसमें कोई चीर-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती.
स्वास्थ्य विभाग सक्रिय नहीं नसबंदी के प्रति महिलाओं की तरह पुरुषों में भी चेतना आये. इसके लिए स्वास्थ्य विभागों के अधिकारी व कर्मचारी सक्रिय नहीं हैं. हर साल सरकार की ओर से नसबंदी के टारगेट दिये जाते हैं. लेकिन, सरकार के दिये टारगेट कभी भी शत-प्रतिशत नहीं पूरे हो पाते. इस मामले में सिविल सर्जन डॉ नंदेश्वर प्रसाद कहते है कि जागरूकता सहित कई कार्यक्रम चलाये जाते हैं. लेकिन, महिलाओं के अपेक्षा पुरुष आज भी इसके प्रति जागरूक नहीं हो सके हैं. सीएस ने कहा कि पुरुष नसबंदी पखवारे के तहत लोगों को पुरुष नसबंदी के आसान तरीकों को समझाते हुए इसमें तेजी लाने का प्रयास किया जा रहा है.
प्रोत्साहन राशि भी नहीं आ रही कोई काम
नसबंदी के प्रति पुरुष सजग हो. इसके लिए प्रोत्साहन राशि की भी व्यवस्था है. बावजूद पुरुषों में सजगता नहीं बढ़ रही है. सरकार की ओर से प्रति नसबंदी करानेवाले व्यक्ति को तीन रुपये देने की व्यवस्था है. वहीं मोटीवेटर को 400 रुपये दिये जाते हैं. लेकिन, इस सब के बाद भी नसबंदी के सलाना आंकड़ों में कोई खास इजाफा होते नहीं दिखाई पड़ रहा है.
नसबंदी व बंध्याकरण के आंकड़े
वर्ष पुरुष महिला
2013-14 00 1480
2014-15 02 1356
2015-16 56 3817
2016-17 11 2224 (नवंबर तक)
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