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टूट गयी पाइप लाइन, नहीं मिला पानी

अनदेखी. तुर्कवलियां में बोरिंग होने के नौ माह बाद भी नहीं बना जलमीनार अधूरा कार्य छोड़ फरार हुई एजेंसी पदाधिकारियों के चहेतों को मिल रहा है जलमीनार के निर्माण का कार्य लगभग नौ लाख की लागत से बनना था मिनी जलमीनार मोहनिया सदर : मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना में शामिल हर घर नल का […]

अनदेखी. तुर्कवलियां में बोरिंग होने के नौ माह बाद भी नहीं बना जलमीनार

अधूरा कार्य छोड़ फरार हुई एजेंसी
पदाधिकारियों के चहेतों को मिल रहा है जलमीनार के निर्माण का कार्य
लगभग नौ लाख की लागत से बनना था मिनी जलमीनार
मोहनिया सदर : मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना में शामिल हर घर नल का जल योजना मोहनिया प्रखंड में हाथी का दांत बन कर रह गयी है. इसका सबसे बड़ा कारण कुछ पदाधिकारियों द्वारा अधिक कमीशनखोरी के चक्कर में अपने करीबी ठेकेदारों को जल मीनार लगाने का ठेका देना बताया जाता है, जो सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को अधूरा छोड़ कर ही फरार हो जा रहे हैं, जिसका ज्वलंत उदाहरण पानापुर पंचायत का तुर्कवलियां गांव है.
यहां जलमीनार का निर्माण करानेवाली एजेंसी ने बोरिंग कराने के नौ माह बाद भी न तो टावर बनवाया और न ही पानी के लिए टैंक लगवाया, जिसका परिणाम यह है कि लगभग साढ़े छह सौ आबादी वाले इस वार्ड के लगभग 10 घरों को ही किसी तरह पानी मिल रहा है. वह भी पिछले लगभग 20 दिनों से पूरी तरह बंद है, किसी तरह कुछ लोग सबमर्सिबल से पाइप जोड़ कर पानी ले रहे थे. इसी तरह का मामला पहले में अवारी में भी सामने आ चुका है, जिसमें जमीन की सतह पर ही एजेंसी ने पानी टंकी बना कर लगभग 42 लाख रुपये लेकर फरार हो गयी थी, जिसकी जांच एसडीएम द्वारा की गयी थी. हालांकि, आगे इस मामले में क्या हुआ किसी को मालूम नहीं.
महत्वाकांक्षी योजना को बनाया पंगु कथनानुसार चालू वर्ष के फरवरी माह में ही एजेंसी द्वारा गांव की गलियों में सतह के ऊपर ही पाइप लाइन बिछा कर छोड़ दी गयी. जबकि, सबको मालूम है कि यदि पानी सप्लाई होनेवाली पाइपों को जमीन के अंदर नहीं ढका जायेगा, तो गलियों से गुजरनेवाले वाहनों व मवेशियों के पैर पड़ने से पाइप टूट जायेगी. फिर भी एजेंसी ने इन पाइपों को खुला छोड़ना ही मुनासिब समझा, जिसका नतीजा यह हुआ कि पाइपें टूट गयीं.
इतना ही नहीं एजेंसी ने अब तक जलमीनार का निर्माण भी नहीं कराया. इस तरह सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को पंगु बनाया जा रहा है. ग्रामीणों में पाइप लाइन बिछाने के बाद काफी उम्मीदें थी कि अब आसानी से सभी घरों को शुद्ध पीने का पानी नसीब हो सकेगा. आज पीने के पानी की जिस तरह समस्याएं सामने आ रही है, उससे कम से कम लोगों को छुटकारा तो मिल जाता. लेकिन, कौन जानता था कि यह योजना सरकारी तंत्रों की उपेक्षा की शिकार हो जायेगी.
आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला
तुर्कवलियां के ग्रामीण कमल नारायण सिंह कहते हैं कि एजेंसी द्वारा जलमीनार नहीं बनाये जाने से इतनी बड़ी आबादी को पानी नहीं मिल पा रहा है. ग्रामीण उदयनाथ सिंह कहते हैं कि एजेंसी ने पानी सप्लाई होनेवाले पाइपों को गलियों में जमीन के ऊपर ही छोड़ दिया, जिसकी वजह से पाइपें टूट कर बिखर गयी. पानी क्या खाक मिलेगा ग्रामीणों को. ग्रामीण मनोज सिंह कहते हैं कि नौ माह बीत गया. एजेंसी जलमीनार बनाये बिना कहां गायब हो गयी पता नहीं. हमने कई बार बीडीओ से शिकायत की. लेकिन, आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. ग्रामीण बूटन साह ने कहा कि सबमर्सिबल से कुछ लोग पाइप जोड़ कर पानी लेते हैं. वह भी 10 दिनों से बंद है. अधिकारी और जनप्रतिनिधि कोई हम ग्रामीणों के पानी की समस्या पर ध्यान नहीं दे रहा है. सब एक दूसरे से मिले हुए हैं.
बोले अधिकारी
इस संबंध में उप विकास आयुक्त कृष्ण प्रसाद गुप्ता ने कहा कि हमको इसकी जानकारी नहीं है, यदि हमको किसी ग्रामीण से आवेदन मिलता है, तो हम पूरे मामले की जांच करेंगे. इसमें जो भी दोषी मिलेगा चाहें वह एजेंसी हो या पदाधिकारी सब पर कार्रवाई की जायेगी.
प्रशासन ने क्यों नहीं ली एजेंसी की खबर
लोग कहावत कहते हैं कि सैयां भये कोतवाल तो फिर डर काहे का उक्त पंक्तियां यहां चरितार्थ होती स्पष्ट नजर आ रही है. क्योंकि, इन एजेंसियों और कुछ प्रशासनिक पदाधिकारियों का चोली-दामन का साथ है. लोगों के कथनानुसार यदि ऐसा कहा जाये तो शायद कोई गलती नहीं होगी. क्योंकि, बोरिंग के नौ माह बाद भी जलमीनार का नहीं बनना, पानी सप्लाई के लिए बिछायी गयी पाइप लाइनों का टूट कर बिखर जाना और एजेंसी द्वारा कार्य को अधूरा छोड़ कर बीच में गायब हो जाना, ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी प्रशासन का इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया जाना, एजेंसी और पदाधिकारी की मिलीभगत की तरह स्पष्ट इशारा करता है, जिसका खामियाजा पानी से वंचित रहनेवाले ग्रामीण भुगत रहे हैं और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है. इस महत्वाकांक्षी योजना को अधर में छोड़नेवाली एजेंसी की खोज खबर लेने के लिए प्रशासन बिल्कुल तैयार नहीं दिखाई दे रहा है.

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